राजीव रंजन झा :
चाहे प्रधानमंत्री बनना हो या दिल्ली के आधे-अधूरे राज्य की विधानसभा का सदस्य बनना, उसके लिए कोई डिग्री आवश्यक नहीं है। लेकिन यदि कोई चुनावी प्रक्रिया में झूठा शपथपत्र दाखिल करे तो यह एक गंभीर मसला हो जाता है।
यदि कोई अपनी फर्जी डिग्री बना कर कहीं जमा कराये तो यह धोखाधड़ी और जालसाजी का अपराध बनता है। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि डिग्री पर विवाद निरर्थक है। यदि किसी ने जालसाजी से बनायी डिग्री कहीं जमा की हो तो उसे जेल जाना चाहिए।
लेकिन अभी तक का किस्सा क्या है? प्रधानमंत्री की डिग्री पर संदेह का माहौल बनाया गया आम आदमी पार्टी की तरफ से। खुद अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी की डिग्रियाँ फर्जी होने का आरोप लगाया। पर संबंधित विश्वविद्यालय खुद बता रहे हैं कि इन डिग्रियों में कुछ गलत नहीं है। सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री और सत्तारूढ़ दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रधानमंत्री की डिग्रियाँ सार्वजनिक की हैं। इन सबके बाद भी आम आदमी पार्टी के तमाम प्रवक्ता पूरी ठसक के साथ सीधा आरोप लगा रहे हैं कि ये डिग्रियाँ बिल्कुल फर्जी हैं।
अब तो दो में से एक ही बात सही हो सकती है। या तो डिग्रियाँ फर्जी हैं, या फिर बिल्कुल सच्ची हैं। दोनों खेमों में से किसी एक तरफ से तो अपराध हुआ है। इसलिए या तो केजरीवाल लोकसभा चुनाव में मोदी की “फर्जी डिग्री” के आधार पर जमा शपथपत्र को “झूठे” साबित करते हुए मोदी के निर्वाचन को चुनौती दें, या फिर भाजपा/केंद्र सरकार आम आदमी पार्टी की ओर से झूठा आरोप लगाने वालों को अदालत में घसीटे। भाजपा प्रवक्ता डिग्री के मुद्दे पर टीवी पर बहस करें और जवाब दें, वह तो ठीक है। पर यह मामला प्रधानमंत्री की आपराधिक अवमानना का है, इसलिए अपराधियों पर मुकदमा चलना चाहिए।
अमित शाह और अरुण जेटली के संवाददाता सम्मेलन के बाद भी जिस जोश-खरोश और आत्मविश्वास के साथ आशुतोष और आशीष खेतान ने जवाबी संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि नरेंद्र मोदी की डिग्रियाँ फर्जी हैं, उसे देख कर तो लगता है कि नरेंद्र मोदी का 2014 के लोकसभा चुनाव का नामांकन रद्द कराने का सुनहरा मौका उनके पास है। केजरीवाल अदालत जायें और नरेंद्र मोदी के शपथ-पत्र में गलत जानकारी देने की शिकायत करते हुए मुकदमा दायर करें।
अगर केजरीवाल ऐसा नहीं करते तो अरुण जेटली और अमित शाह को चाहिए वे केजरीवाल, आशुतोष और आशीष खेतान पर अवमानना का मुकदमा दायर करें। यह मामला अपने तार्किक अंजाम पर पहुँचना चाहिए।
(देश मंथन, 09 मई 2016)