भीड़ के पीछे दूल्हा चलता है, सेनापति तो आगे चलता है
रत्नाकर त्रिपाठी :
बनारस की सड़क पर इतना बड़ा जमावड़ा देखे मुद्दत हो गयी थी। अद्भुत दृश्य था, अगर ये मेला होता, तो इसे बनारस की नाग-नथैया और नाटी-इमली के भरत-मिलाप की तरह लक्खा मेले का दर्जा मिल जाता। माँ गंगा की गोद में मूर्ति विसर्जन की माँग लेकर आबाल-वृद्ध सड़क पर थे। भीड़ की खूबसूरती ये थी कि 80 % लोग एक-दूसरे को जानते नहीं थे, लेकिन 'एक मांग-एक धुन', उन्हें आपस में माला के मोतियों की तरह पिरोये हुई थी।
तब बहुत बदल चुका होगा देश!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :
तीन कहानियाँ हैं! तीनों को एक साथ पढ़ सकें और फिर उन्हें मिला कर समझ सकें तो कहानी पूरी होगी, वरना इनमें से हर कहानी अधूरी है! और एक कहानी इन तीनों के समानान्तर है। ये दोनों एक-दूसरे की कहानियाँ सुनती हैं और एक-दूसरे की कहानियों को आगे बढ़ाती हैं और एक कहानी इन दोनों के बीच है, जिसे अक्सर रास्ता समझ में नहीं आता। और ये सब कहानियाँ बरसों से चल रही हैं, एक-दूसरे के सहारे! विकट पहेली है। समझ कर भी किसी को समझ में नहीं आती!
यह छोटा-सा कदम उठेगा हुजूर?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
शर्म कहीं मिलती है? दिल्ली में कहीं मिलती है? अपने देश में कहीं मिलती है? यहाँ तो कहीं नहीं मिलती! किसी को उसकी जरूरत ही नहीं है! यह देश की राजधानी का आलम है। जहाँ बड़ी-बड़ी सरकारें हैं। वहाँ अस्पतालों की ऐसी बेशर्मी, ऐसी बेहयाई है कि शर्म कहीं होती तो शर्म से चुल्लू भर पानी में डूब मरती! लेकिन दिल्ली में कुछ नहीं हुआ। न अस्पतालों को, न सरकारों को! सब वैसे ही चल रहा है, जैसे कुछ हुआ ही न हो!
संघ के दरबार में सरकार!
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
हाजिर हो! सरकार हाजिर हो! तो संघ के दरबार में सरकार की हाजिरी लग गयी! पेशी हो गयी! एक-एक कर मन्त्री भी पेश हो गये, प्रधान मन्त्री भी पेश हो गये! रिपोर्टें पेश हो गयीं! सवाल हुए, जवाब हुए। पन्द्रह महीने में क्या काम हुआ, क्या नहीं हुआ, आगे क्या करना है, क्यों करना है, कैसे करना है, क्या नहीं करना है, सब तय हो गया। तीन दिन, चौदह सत्र, सरकार के पन्द्रह महीने, संघ परिवार के अलग-अलग संगठनों के 93 प्रतिनिधियों की जूरी, हर उस मुद्दे की पड़ताल हो गयी, जो संघ के एजेंडे में जरूरी है!
मारिया साहब का प्रमोशन : इनाम या सजा?
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
सर्दियों की उस रात मैं मामा के साथ हीटर के आगे बैठा था। सामने फोन रखा था, जो हर मिनट घनघनाता था।
आरक्षण के खिलाफ हवाई घोड़े!
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
क्या यह महज संयोग ही है कि हार्दिक पटेल ने आरक्षण का मुद्दा तभी उठाया, जब जातिगत जनगणना के पूरे आँकड़े मोदी सरकार दबाये बैठी है? सवाल पर सोचिए जरा! जातिगत जनगणना के शहरी आँकड़े तो अभी बिलकुल गुप्त ही रखे गये हैं, और आरक्षण का बड़ा ताल्लुक शहरी आबादी से ही है। लेकिन केवल ग्रामीण आँकड़ों का भी जो जरा-सा टुकड़ा सरकार ने जाहिर किया है, उसमें भी ओबीसी के आँकड़े उसने पूरी तरह क्यों छिपा लिये? यह नहीं बताया कि कितने ओबीसी हैं? क्यों? ओबीसी के आँकड़े बिहार चुनाव में मुद्दा बन जाते? बनते तो क्यों? ओबीसी के आँकड़ों में ऐसा क्या है, जिसे सरकार अभी सामने नहीं आने देना चाहती! इसलिए क्या यह वाकई संयोग है कि ठीक इसी समय गुजरात से ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी जाती है?
क्यों ‘आरक्षण-मुक्त’ भारत का नारा?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
गुजरात के पाटीदार अनामत आन्दोलन (Patidar Anamat Andolan) के पहले हार्दिक पटेल को कोई नहीं जानता था। हालाँकि वह पिछले दो साल में छह हजार हिन्दू लड़कियों की 'रक्षा' कर चुके हैं! ऐसा उनका खुद का ही दावा है! बन्दूक-पिस्तौल का शौक हार्दिक के दिल से यों ही नहीं लगा है।
मुसलिम हलचल के चार कोण!
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
अल्पसंख्यक राजनीति में नयी खदबदाहट शुरू हो गयी है! एक तरफ हैं संघ, बीजेपी और एनडीए सरकार, दूसरी तरफ है मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड, तीसरा कोण है मजलिस इत्तेहादुल मुसलिमीन के असदुद्दीन ओवैसी का और चौथा कोण है मुसलिम महिलाओं की एक संस्था भारतीय मुसलिम महिला आन्दोलन।
खो रही है चमकः कुछ करिए सरकार
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
नरेन्द्र मोदी के चाहने वाले भी अगर उनकी सरकार से निराशा जताने लगे हों तो यह उनके संभलने और विचार करने का समय है। कोई भी सरकार अपनी छवि और इकबाल से ही चलती है। चाहे जिस भी कारण से अगर आपके चाहने वालों में भी निराशा आ रही है तो आपको सावधान हो जाना चाहिए।
भारत-पाक रिश्तेः कब पिघलेगी बर्फ
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
नरेन्द्र मोदी की पाकिस्तानी प्रधान मन्त्री से मुलाकात और उनका पाकिस्तान जाने का फैसला साधारण नहीं है। आखिर एक पड़ोसी से आप कब तक मुँह फेरे रह सकते हैं? बार-बार छले जाने के बावजूद भारत के पास विकल्प सीमित हैं, इसलिए प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी की इस साहसिक पहल की आलोचना बेमतलब है।
लालू-नीतीश मोर्चा हारे हैं, जंग अभी बाकी है
सुशांत झा, पत्रकार :
बिहार विधान परिषद में 24 सीटों में से 23 के नतीजे आ चुके हैं, इसमें अभी तक इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भाजपा और उसकी समर्थक लोजपा 13, जद-यू 5, राजद 3 और कांग्रेस 1 सीट जीत चुकी है।
सवालों में सरकार
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
नरेन्द्र मोदी की सरकार के लिए सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे सिंधिया, स्मृति ईरानी और पंकजा मुंडे के मामलों ने नया संकट खड़ा कर दिया है। विपक्ष को बैठे बिठाए एक मुद्दा हाथ लग गया है, तो लंदन में बैठे ललित मोदी रोज एक नया ट्विट करके मीडिया और विरोधियों को मसाला उपलब्ध करा ही देते हैं।