क्या-क्या सिखा सकती है एक झाड़ू?
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
तो झाड़ू अब ‘लेटेस्ट’ फैशन है! बड़े-बड़े लोग एक अदना-सी झाड़ू के लिए ललक-लपक रहे हैं! फोटो छप रही है! धड़ाधड़! यहाँ-वहाँ हर जगह झाड़ू चलती दिखती रही है!
बिल्ली के भाग्य से छींका नहीं टूटेगा?
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
नमो अब अमेरिका यात्रा पर हैं. अब वहाँ नमो-नमो हो रहा है! नमो वाक़ई बड़े कुशल खिलाड़ी हैं. ख़बरें बनाना जानते हैं. ख़बरों में रहना जानते हैं. मौक़ा कोई हो, बात कोई हो, यह ‘नमो-ट्रिक’ देश पहली बार देख रहा है कि राग नमो-नमो कैसे हमेशा चलता रहे!
रात तय करती है सुबह किसकी होगी
दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
डूबती रात के अंधेरों में जब वासना से विरक्त होकर कोई अपने लक्ष्य से भिड़ता है तो जान लीजिए उसका मन किसी बड़ी दिशा की और बढ़ चुका है।
मोदी समझ रहे हैं, स्वयंसेवक भी समझें
दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
गरीबी, गुरबत, गाली और गद्दारियों की तोहमतों के बीच कोई कैसे जिये? पंचर जोड़ना, हजामत बनाना, कबाड़ का काम, पुताई का ठेका और कसाई की जिंदगी।
फिर होंगे हिंदी चीनी भाई भाई
राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक, निवेश मंथन
चीनी राष्ट्रपति झी जिनपिंग के पहले भारत दौरे के लिए मोदी सरकार बेताब है।
शीला की बात पर हंगामा क्यों
अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :
पंद्रह साल तक दिल्ली की गद्दी संभालने वाली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा है कि अगर बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में पहुँच गयी है तो उसे सरकार बना लेनी चाहिए।
बदले-बदले से सरकार नजर आते हैं
राजीव रंजन झा :
मोदी सरकार के 100 दिन पूरे होने का लेखा-जोखा हो, उनके जापान दौरे के आर्थिक-कूटनीतिक फलितार्थ हों या अभी-अभी सामने आये विकास दर के आँकड़े हों, इन सबमें एक बात समान रूप से निकल कर सामने आ रही है।
यही सब होगा तो साख कहाँ से आयेगी?
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
बच्चे थे, तब से सुन रहे हैं! शायद तब से अब तक हजारों बार सुन-पढ़ चुके हैं! न्याय न सिर्फ होना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए! तो बाकी बातें छोड़ दीजिए, बस जी कर रहा है कि यही एक सवाल माननीय पी. सदाशिवम जी से पूछूँ।
हिंदुत्व में अनुभव व तप का अनादर!
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
भाजपा के असली निर्णायक मंडल से अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी का निष्कासन किस बात का सूचक है? भाजपा के कार्यकर्ता और आम जनता दोनों ही असमंजस में हैं।
बीजेपी के बुजुर्ग नेताओं की चुनौती
श्रीकांत प्रत्यूष, संपादक, प्रत्यूष नवबिहार :
प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनने के बावजूद बीजेपी के अन्दर परिवर्तन का दौर थमा नहीं है। वैसे पार्टी स्तर पर इस तरह के परिवर्तन की शुरुआत तो नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते राष्ट्रीय राजनीति में दखल के साथ ही शुरू हो गयी थी, जो अब उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद साफ दिखने लगी है।
इस हार का मतलब क्या है?
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
चार राज्यों में हुए उपचुनावों में भाजपा की वैसी दुर्गति तो नहीं हुई, जैसी उत्तराखंड में हुई थी याने कोई राज्य ऐसा नहीं है, जहाँ भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टी जीती न हो।
मुख्यमंत्रियों की मान-रक्षा
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकारी कार्यक्रमों में आजकल बड़ा मजेदार नजारा देखने को मिलता है। वह चाहे जहाँ जाये, चाहे हरियाणा, महाराष्ट्र या झारखंड वहाँ के मुख्यमंत्रियों को तो शामिल होना ही पड़ता है।