एक विफल देश का शोक गीत !
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
पाकिस्तान प्रायोजित हमलों से तबाह भारत आज दुखी है, संतप्त है और क्षोभ से भरा हुआ है। उसकी जंग एक ऐसे देश से है जो असफल हो चुका है, नष्ट हो चुका है और जिसके पास खुद को संयुक्त रखने का एक ही उपाय है कि भारत के साथ युद्ध के हालात बने रहें। भारत का भय ही अब पाकिस्तान के एक रहने का गारंटी है।
चुन लीजिए, आपको क्या चाहिए!
क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
पहला सवाल : अगर किसी सरकारी कर्मचारी, अफसर या न्यायिक अधिकारी को किसी अपराध के लिए सजा मिलती है, तो वह तो अपनी नौकरी पर कभी वापस नहीं रखा जा सकता, तो फिर ऐसा ही पैमाना राजनेताओं के लिए क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए? सजायाफ्ता नेता पर आजीवन रोक क्यों नहीं लगनी चाहिए?
‘आप’ की झाड़ू, ‘आप’ पर!
क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
आम आदमी पार्टी का बनना देश की राजनीति में एक अलग घटना थी। वह दूसरी पार्टियों की तरह नहीं बनी थी। बल्कि वह मौजूदा तमाम पार्टियों के बरअक्स एक अकेली और इकलौती पार्टी थी, जो इन तमाम पार्टियों के तौर-तरीकों के बिलकुल खिलाफ, बिलकुल उलट होने का दावा कर रही थी। उसका दावा था कि वह ईमानदारी और स्वच्छ राजनीतिक आचरण की मिसाल पेश करेगी। इसलिए 'आप' के प्रयोग को जनता बड़ी उत्सुकता देख रही थी कि क्या वाकई 'आप' राजनीति में आदर्शों की एक ऐसी लकीर खींच पायेगी कि सारी पार्टियों को मजबूर हो कर उसी लकीर पर चलना पड़े।
चीफ जस्टिस साहब, चंद्र बाबू की आँखें ढूँढ़ रही हैं आपको!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
बताइए तो एक शरीफ आदमी को इतने-इतने साल जेल में रखना कहाँ तक मुनासिब है? जिन लोगों ने भी शहाबुद्दीन साहब की जमानत और रिहाई का रास्ता प्रशस्त किया, वे तमाम लोग संयुक्त रूप से अगले भारत रत्न के हकदार हैं। इनमें मैं जमानत देने वाले उन जज साहब की भी पैरवी कर रहा हूँ, न्याय का माथा ऊँचा करने में जिनके उल्लेखनीय योगदान की कोई चर्चा ही नहीं कर रहा।
हमारा कश्मीर, तुम्हारा बलूचिस्तान
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देर से ही सही भारत की सरकार ने एक ऐसे कड़वे सच पर हाथ रख दिया है जिससे पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान को मिर्ची लगनी ही थी। दूसरों के मामले में दखल देने और आतंकवाद को निर्यात करने की आदतन बीमारियाँ कैसे किसी देश को खुद की आग में जला डालती हैं, पाकिस्तान इसका उदाहरण है। बदले की आग में जलता पाकिस्तान कई लड़ाईयाँ हार कर भारत के खिलाफ एक छद्म युद्ध लड़ रहा है और कश्मीर के बहाने उसे जिलाए हुए है। पड़ोसी को छकाए-पकाए और आतंकित रखने की कोशिशों में उसने आतंकवाद को जिस तरह पाला-पोसा और राज्याश्रय दिया, आज वही लोग उसके लिए भस्मासुर बन गये हैं।
सलमान खुर्शीद क्या पाकिस्तान के एजेंट हैं?
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
सलमान खुर्शीद ने पिछले साल नवंबर में पाकिस्तान जाकर भारत विरोधी बयान दिया था। कहा था कि “भारत ने पाकिस्तान के अमन के पैगाम का उचित जवाब नहीं दिया। मोदी अभी नये हैं और स्टैट्समैन कैसे बना जाता है, यह उन्हें सीखना है।“ यानी मोदी से अदावत की आड़ में सलमान खुर्शीद ने अपने वतन भारत को ही अमन का दुश्मन और गुनहगार बना डाला।
गौवंश की रक्षा की योजना बतायें मोदी
संदीप त्रिपाठी :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा कि 80% गौरक्षक फर्जी हैं। हो सकता है, उनकी बात सही हो। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह देखा गया कि तमाम ऐसे तत्वों, जिनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा या हिंदूवादी विचारधारा से कोई संबंध नहीं था, न ही वे कभी मोदी समर्थक रहे, ने छोटे-छोटे संगठन बना लिये जिनके नाम में हिंदू या गाय शब्द जोड़ लिये। इन संगठनों के नाम में हिंदू प्रतीकों की आड़ में ये तत्व अनाप-शनाप कार्य करने लगे, जिनकी हवा न मोदी को थी, न भाजपा को, न संघ को। लेकिन इन संगठनों के कार्यों से ये लोग बदनाम होते रहे। दिलचस्प यह कि ऐसे कई संगठनों के कर्ता-धर्ता ऐसे लोग पाये गये जो भाजपा विरोधी संगठनों के पदाधिकारी रहे।
कश्मीरी व्यापारियों में तलाशें समस्या का हल
संदीप त्रिपाठी :
संसद में कश्मीर पर बहस चल रही है। विपक्ष सलाह दे रहा है कि कश्मीर मसले पर संवेदनशील होने की जरूरत है, हमें कश्मीर और कश्मीरियत को बचाना है। विपक्ष के कई दलों के नेताओं के कथन को सुनें तो लगेगा कि पूरी कश्मीर समस्या की जड़ में मोदी सरकार का कश्मीर के प्रति असंवेदनशील रवैया है। अगर इस सरकार का रवैया संवेदनशील होता तो कश्मीर की समस्या खत्म हो गयी होती।
कलिखो पुल : आत्महत्या या साजिश
संदीप त्रिपाठी :
अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री 47 वर्षीय कलिखो पुल मुख्यमंत्री आवास स्थित अपने कमरे में फंदे से लटके पाये गये। कलिखो पुल वही हैं जिन्होंने नवंबर-दिसंबर, 2015 में अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नबाम तुकी के खिलाफ बगावत की थी और कांग्रेस विधायक दल के लगभग आधे विधायक कलिखो पुल के साथ आ गये थे।
इस गर्जन-तर्जन से क्या हासिल?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
जब पूरा पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान कश्मीर में आग लगाने की कोशिशें में जुटा है तब हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह पाकिस्तान क्यों गये, यह आज भी अबूझ पहेली है। वहाँ हुयी उपेक्षा, अपमान और भोजन छोड़ कर स्वदेश आ कर उनकी ‘सिंह गर्जना’ से क्या हासिल हुआ है? क्या उनके इस प्रवास और आक्रामक वक्तव्य से पाकिस्तान कुछ भी सीख सका है? क्या उसकी सेहत पर इससे कोई फर्क पड़ा है? क्या उनके पाकिस्तान में दिए गए व्याख्यान से पाकिस्तान अब आतंकवादियों की शहादत पर अपना विलाप बंद कर देगा? क्या पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान भारत के प्रति सद्भाव से भर जाएगा और कश्मीर में आतंकवादियों को भेजना कर देगा? जाहिर तौर पर इसमें कुछ भी होने वाला नहीं है।
क्या गुल खिलायेगी कांग्रेस की अँगड़ाई
संदीप त्रिपाठी :
उत्तर प्रदेश पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुका है। कांग्रेस ने हिंदी हृदय प्रदेश में अपना अस्तित्व बचाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दी है। इस क्रम में बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने रोड शो किया। यह कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की स्टाइल है। शिखर पर जाना है तो सबसे मजबूत से लड़ो। नि:संदेह उत्तर प्रदेश से अगर प्रधानमंत्री हैं और लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने इस सूबे की 80 में से 73 (भाजपा-71, अपना दल-2) सीटों पर कब्जा किया हो तो प्रधानमंत्री की सीट शक्ति की सबसे बड़ी प्रतीक तो मानी ही जायेगी।
कश्मीर में कुछ करिए : स्पष्ट संदेश दीजिए कि ‘नहीं मिलेगी आजादी’
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
गनीमत है कि कश्मीर के हालात जिस वक्त बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं, उस समय भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में नहीं है। कल्पना कीजिए कि इस समय केंद्र और राज्य की सत्ता में कोई अन्य दल होता और भाजपा विपक्ष में होती तो कश्मीर के मुद्दे पर भाजपा और उसके समविचारी संगठन आज क्या कर रहे होते। इस मामले में कांग्रेस नेतृत्व की समझ और संयम दोनों की सराहना करनी पड़ेगी कि एक जिम्मेदार विपक्ष के नाते उन्होंने अभी तक कश्मीर के सवाल पर अपनी राष्ट्रीय और रचनात्मक भूमिका का ही निर्वाह किया है।