कैसे बने दलितों के मसीहा
राकेश उपाध्याय, पत्रकार:
यदि राजनीतिक दल अपने मताग्रहों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता संकट में पड़ जाएगी और संभवत: वह हमेशा के लिए खो जाए। इसलिए हम सबको दृढ़ संकल्प के साथ इस संभावना से बचना है। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने महान देश की स्वतंत्रता की रक्षा करनी है। -डॉ. भीमराव अंबेडकर, संविधान सभा में दिए गये भाषण का हिस्सा...
अगर यह मेरा भारत है, तो मैं शर्मिंदा हूँ
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
जिन लोगों ने देशद्रोह के नारे लगाए या लगवाए, वे ठसक से रह रहे हैं, आप उन्हें छू भी नहीं सकते, वे राहुल गाँधी, सीताराम येचुरी और अरविन्द केजरीवाल समेत देश के ढेर सारे नेताओं के रोल मॉडल हैं। लेकिन जिन लोगों ने देशप्रेम के नारे लगाये और तिरंगा फहराया, उन्हें अपनी पहचान तक छुपानी पड़ रही है।
सिर्फ बिरयानी और फिल्में
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
पाकिस्तान से खबरें आ रही हैं, जिनके मुताबिक पाकिस्तान सरकार का कहना है कि पठानकोट में आतंकीकांड भारत सरकार ने खुद ही कराया है। पाकिस्तानी बयान के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
कांग्रेस की सांप्रदायिक और देशद्रोही राजनीति का रिजल्ट है एनआईटी की घटना
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला और उसके साथियों ने मुम्बई धमाकों के गुनहगार याकूब मेमन के समर्थन में कार्यक्रम किये, लेकिन कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने पूरे मामले को जातीय रंग दे कर उन लोगों को हीरो बना दिया।
सूखा बड़ा कि आईपीएल?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:
अक्ल बड़ी कि भैंस? सूखा बड़ा कि आईपीएल? पहले सवाल पर तो देश में आम सहमति है। आज से नहीं, सदियों पहले से। दूसरा सवाल अभी कुछ दिन पहले ही उठा है। और देश इसका जवाब खोजने में जुटा है कि सूखा बड़ा है कि आईपीएल? लोगों को पीने के लिए, खाना बनाने के लिए, मवेशियों को खिलाने-पिलाने के लिए, नहाने-धोने के लिए, खेतों को सींचने के लिए, अस्पतालों में ऑपरेशन और प्रसव कराने के लिए और बिजलीघरों को चलाने के लिए पानी दिया जाना ज्यादा जरूरी है या आईपीएल के मैचों के लिए स्टेडियमों को तैयार करने के लिए पानी देना ज्यादा जरूरी है?
नीतीश जी, गुड मॉर्निंग… हज मुबारक हो!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
पिछ्ले कार्यकाल में नीतीश जी ने गली-गली शराब की दुकानें खुलवायीं। अब उन दुकानों को बंद करा दिया है। पहले वे स्वयँ लोगों से कहते थे- पियो और टैक्स भरो, ताकि छात्राओं को दी जाने वाली साइकिलों के पैसे आ सकें। अब वे सबको शराब न पीने की कसमें खिला रहे हैं।
राजीव थे भारत के सबसे सांप्रदायिक प्रधानमंत्री!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मानसिक और वैचारिक तौर पर दिवालिया हो चुके जिन लोगों को 1984 के दंगों में 3 दिन के भीतर 3,000 लोगों का मार दिया जाना भीड़ के उन्माद की सामान्य घटना नजर आती है, उन्हीं लोगों ने, गुजरात दंगे तो छोड़िए, उन्मादी भीड़ द्वारा दादरी में सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या को देश में असहिष्णुता का महा-विस्फोट करार दिया था।
इतने गुस्से में क्यों हैं लोग?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
यह कितना निर्मम समय है कि लोग इतने गुस्से से भरे हुए हैं। दिल्ली में डॉ. पंकज नारंग की जिस तरह पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी, वह बात बताती है कि हम कैसा समाज बना रहे हैं। साधारण से वाद-विवाद का ऐसा रूप धारण कर लेना चिंता में डालता है।
काँग्रेस : बस ‘टीना’ में ही जीना!
क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
प्रशान्त किशोर ने काँग्रेस को एक 'क्विक फिक्स' फार्मूला दिया है। ब्राह्मणों को पार्टी के तम्बू में वापस लाओ। फार्मूला सीधा है। जब तक ब्राह्मण काँग्रेस के साथ नहीं आते, तब तक उत्तर प्रदेश में मुसलमान भी काँग्रेस के साथ नहीं आयेंगे। क्योंकि मुसलमान तो उधर ही जायेंगे, जो बीजेपी के खिलाफ जीत सके। मायावती के कारण अब दलित तो टूटने से रहे। तो कम से कम मुसलमान और ब्राह्मण तो काँग्रेस के साथ आयें! हालाँकि यह कोई नया फार्मूला नहीं है। उत्तर प्रदेश में तो चाय की चौपालों पर चुस्की मारने वाला हर बन्दा जानता है कि 2007 में ठीक इसी दलित-ब्राह्मण-मुसलमान की 'सोशल इंजीनियरिंग' से मायावती ने कैसे बहुमत पा लिया था।
तुम्हारी गलती नहीं अफरीदी, विष के पेड़ में आम नहीं फलते
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
शाहिद अफरीदी एक बार फिर विवादों में घिर गये हैं। पहले तो उन्होनें टी-20 विश्वकप में भाग लेने के लिए भारतीय धरती पर कदम रखते ही यह बयान दे कर कि उनको तो अपने देश से भी ज्यादा प्यार भारत में मिलता है, पाकिस्तानियों के कोप भजन बने और फिर न्यूजीलैंड के साथ 22 मार्च को हुए मैच के पहले यह बयान दे कर कि उनको कोलकाता में काफी समर्थन मिला था और मोहाली में काफी कश्मीरी हमारे समर्थन में यहाँ पहुँचे हैं, अपनी आवाम के गुस्से को कम करने की कोशिश की। लेकिन इससे वो भारतीयों के निशाने पर फिर आ गये।
फूट डालो, फ्रूट खा लो” की नीति पर चलते हैं पढ़े-लिखे लोग!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
कोई अगर "भारत माता की जय" या "वन्दे मातरम्" नहीं बोलता, तो न बोले, पर ऐसा भी न कहे कि मेरी गर्दन पर चाकू रख दोगे, तो भी नहीं बोलूँगा। न ही कोई सचमुच इस बात के लिए उसकी गर्दन पर चाकू रख दे कि बोलोगे कैसे नहीं?
ऐसे ही ‘टाइमपास’ होता रहे!
क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
विजय माल्या कहाँ है? उनका ट्वीट कहता है कि वह जहाँ कहीं भी हैं, देश छोड़ कर भागे नहीं हैं। वह भगोड़े नहीं हैं, कानून का पालन करनेवाले सांसद हैं! और उनका एक और ट्वीट मीडिया के दिग्गजों के नाम हैं, जिसमें वह कहते हैं कि आप भूल न जायें कि मैंने आपके लिए कब, क्या-क्या किया, क्योंकि मेरे पास सबके दस्तावेजी सबूत हैं! माल्या जी मीडिया की पोल खोलें तो हो सकता है कि बड़ी चटपटी स्टोरी बने, लेकिन असली कहानी तो 'टाइमपास' की है, जो बरसों से चल रही है, चलती ही जा रही है।