राणा यशवंत, प्रबंध संपादक, इंडिया न्यूज :
आनंदी बेन ने पद छोड़ने की इच्छा फेसबुक पर ज़ाहिर की, यह अपनी तरह की पहली घटना है। गुजरात में भाजपा कई सवालों में है और अगर अगले साल वह गुजरात हारती है तो प्रधानमंत्री मोदी के लिए उनके पाँच साल के कार्यकाल की (मैं अगले ढाई साल भी जोड़ ले रहा हूँ) यह सबसे बड़ी हार होगी। और, 2019 की मोदी की लड़ाई को बहुत कमजोर भी करेगी।
आनंदी बेन के हटने के पीछे गुजरात के ही हालात हैं जिसे वे काबू नहीं कर पायीं और भाजपा के लिए ज़मीन कमज़ोर पड़ती गयी। पाटीदारों का साल भर से आंदोलन कमजोर पड़ा नहीं, भले हार्दिक पटेल जेल में रहे। 11 जुलाई को उना की घटना के बाद दलितों का मोर्चा भी मज़बूत हो गया है। और, पिछले साल दिसंबर में स्थानीय चुनावों की हार बीजेपी को पहले ही चुभ चुकी है। गुजरात में तकरीबन 25 साल बाद कांग्रेस ने जीत का इस तरह स्वाद चखा था। ऐसे में, मोदी और अमित शाह के पास इसके अलावा कोई और विकल्प था भी नहीं कि कोई और विकल्प आज़माया जाये।
अब इस सवाल को लेकर चार नाम चल रहे हैं- पुरुषोत्तम रुपाला, नितिन पटेल, सौरभ पटेल और विजय रुपाणी। कुछ हलकों से अमित शाह का नाम भी उठाया जा रहा है – जिसका कोई तुक फिलहाल बनता नहीं है। लेकिन, गुजरात की मौजूदा स्थिति और भाजपा की ज़रुरत को देखते हुए जिस नाम पर सहमति के आसार बन सकते हैं, वह है प्रदेश अध्यक्ष विजय रुपाणी का। मैं तीन-चार वजहें इसके लिए रखूंगा।
एक तो यह कि रुपाणी, मोदी और अमित शाह के बहुत खास हैं। संघ का भरोसा भी उन पर हमेशा रहता है।
दूसरी यह कि प्रशासनिक मामलों मेंं जिस सख्ती की कमी आनंदी बेन में दिख रही थी, उसकी भरपाई रुपाणी का प्रशासनिक कौशल कर देगा। आनंदीबेन सरकार में कई महकमों को चलाने का अच्छा अनुभव उनके पास है।
तीसरी, लेकिन अहम वजह यह है कि रुपाणी राजकोट से आते हैं, यानी सौराष्ट्र से, जिसे पटेलों का गढ़ माना जाता है। भाजपा यहाँ से अगर मुख्यमंत्री बनाती है तो इस इलाके के असंतोष को काफी हद तक कम कर देगी।
सौरभ पटेल की चर्चा इसलिए होती है कि वे गुजरात सरकार के सबसे पढे लिखे मंत्री हैं। अमेरिका से एमबीए किया है, सोलर एनर्जी पर गुजरात में अच्छा काम किया है और अंबानी परिवार से रिश्तेदारी है।
स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल को अगर चुना जायेगा तो इसलिए कि वे आनंदीबेन सरकार में नंबर दो पर हैं। कपास और तेल के बड़े कारोबारी है। उनके होने से कारोबारी जमात के लिए गुजरात निवेश की अच्छी जगह बना रहेगा। लेकिन दिक्कत यह है कि अपनी बिरादरी यानी पटेलों में ही नितिन की कोई साख नहीं है और इससे सरकार की समस्या का समाधान होता नहीं दिखता।
पुरुषोत्तम रुपाला बेशक उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र के कद्दावर पाटीदार नेता हैं, लेकिन उनकी परेशानी यह है कि अमित शाह और आनंदीबेन दोनों से नहीं बनती। हार्दिक पटेल की अगुआई में पाटीदारों के आंदोलन के दौरान हाथ पर हाथ रखकर रुपाला ने आनंदीबेन और अमित शाह की मुश्किलें तो बढायी ही, 2006 में जब वे गुजरात में भाजपा अध्यक्ष थे, उन दिनों भी मोदी से उनकी बनती जरुर थी लेकिन अमित शाह और आनंदीबेन जैसे मंत्रियों के लिए वे परेशानी खड़ी करते रहते थे।
ऐसे में विजय रुपाणी सबसे उचित विकल्प दिख रहे हैं और 2 अगस्त उनका जन्मदिन भी होता है। बहुत संभव है भाजपा उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री पद का तोहफा दे दे।
(देश मंथन, 02 अगस्त 2016)