कुछ तो बात है उदय शंकर में, जो औरों में नहीं

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अजीत अंजुम, प्रबंध संपादक, इंडिया टीवी :

टीवी टुडे ग्रुप के चेयरमैन अरुण पुरी स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर के ‘इम्पैक्ट पर्सन आफ द डिकेड’ चुने जाने पर अगर यह कहते हैं कि मैं मीडिया इंडस्ट्री में पिछले 40 साल से काम कर रहा हूँ, लेकिन केवल एक आदमी को मैं ठीक से नहीं आँक पाया तो वे हैं उदयशंकर, तो इसी से पता चल जाता है कि उदय शंकर का एक मामूली रिपोर्टर से दो दर्जन चैनलों वाले स्टार इंडिया का सीईओ बनना और लगातार ऊँचाइयों की तरफ बढ़ते जाना कितने लोगों को चौंकाता है।

अरुण पुरी ने एक वेबसाइट से बातचीत में यह भी कहा है, “मैंने सोचा था कि उदय शंकर आखिरी व्यक्ति होगा जो भारत में कॉरपोरेट लीडर बनेगा क्योंकि वाकई में वह कारपोरेट का आदमी नहीं है।” अरुण पुरी मीडिया इंडस्ट्री के शीर्ष पर हैं, लेकिन अगर वे कहते हैं कि उदय शंकर की कॉरपोरेट लीडरशिप क्षमता को नहीं आँक नहीं पाये तो समझ लीजिए कि कोई नहीं आँक पाया होगा। मतलब यह कि पूत के पाँव पालने में नहीं दिखे होंगे।

तो फिर क्या उदय शंकर कोई डार्क हॉर्स हैं, जो वक्त की गर्भ से निकले और किसी की पीठ या किसी का हाथ पकड़ कर कामयाबियों की सीढ़ियाँ चढ़ते चले गए, जैसा कि सियासत में होता है? नहीं, दरअसल अरुण पुरी जब अपने पूर्व एंप्लाई और आजतक के पूर्व न्यूज डायरेक्टर उदय शंकर के बारे यह कह रहे हैं तो सीधे-सीधे उदय की क्षमता को न पहचान पाने का अफसोस जाहिर करके अपने को दोषमुक्त भी कर रहे हैं। उदय शंकर ने जो किया, जहाँ पहुँचे, जो हासिल किया, अपने दम पर किया। शानदार टीम बना कर किया। कुछ अलग करने के इरादे के साथ हर रोज सीखते हुए किया। 

तभी तो स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर इम्पैक्ट पर्सन आफ द डिकेड चुने गये… उदय शंकर देश के टॉप 50 प्रभावशाली लोगों की सूची में शुमार हो गये… उदय शंकर को इंडिया टुडे या इंडियन एक्सप्रेस की टॉप 100 इंडियन की लिस्ट में शामिल किया गया है… उदय शंकर को ये सम्मान मिला… उदय शंकर को वो पहचान मिली…. ऐसी खबरें अब मुझे चौंकाती नहीं। हाँ, उदय शंकर की तरक्की और कामयाबी ने पहले तीन बार लोगों को जरूर चौंकाया था। पहली बार तब, जब वे तमाम दिग्गजों को पीछे छोड़ कर देश के नंबर वन चैनल ‘आजतक’ के हेड बन गये थे। आजतक के भीतर और बाहर उनके तमाम अशुभचिंतक और आलोचक छाती पीटते रह गये थे, कुछ इस अंदाज में कि या हुसैन हम न हुए। मीडिया सर्किल में महीनों तक टीवी टुडे ग्रुप के चेयरमैन अरुण पुरी के इस फैसले का पोस्टमार्टम होता रहा। उदय की कामयाबी से जलने और राख होने वाले तमाम लोग मातम मनाते रहे। 

उदय शंकर ने दूसरी बार तब चौंकाया, जब वे ‘आजतक’ से छलाँग लगा कर स्टार न्यूज के एडिटर बन कर मुंबई पहुँच गये। उन दिनों संजय पुगलिया स्टार न्यूज के संपादक थे और रवीना राज कोहली प्रेसिडेंट। उदय शंकर को लेकर चर्चाओं और कयासों का दौर दिल्ली से मुंबई तक चलता रहा। उन्हीं दिनों मर्डोक से अवीक सरकार ने स्टार न्यूज का टेकओवर किया था, सो स्टार न्यूज के नेतृत्व को लेकर एक धुँध सी थी। जब धुँध छँटी तो संजय पुगलिया और रवीना राज कोहली की विदाई हो चुकी थी और उदय शंकर सीओओ बन चुके थे (बाद में वे सीईओ बने)। उदय शंकर ने स्टार न्यूज को नये सिरे से नयी चुनौतियों के साथ संभाला। पुरानी टीम को भरोसे में लिया और नयी टीम भी बनायी। शाज़ी ज़मान को एडिटर के तौर पर आजतक से ले गये। मिलिंद खांडेकर और विनोद कापड़ी समेत कुछ सीनियर लोगों को अपनी कोर टीम का हिस्सा बनाया और स्टार न्यूज के सीईओ के तौर उस इनिंग की शुरूआत की, जिसकी पिच पर वे लगातार चौके-छक्के लगा रहे हैं। न्यूज कंटेंट के साथ-साथ बिजनेस, सेल्स, डिस्ट्रीब्यूशन, मार्केटिंग वगैरह की समझदारी विकसित करने के इस मौकै का उदय ने जम कर फायदा उठाया।

स्टार न्यूज के सीईओ के तौर पर उदय शायद पहले ऐसे शख्स थे, जो खाँटी पत्रकार थे और बिजनेस की बारीकियों को समझते हुए आगे बढ़ रहे थे। लेकिन वे इतना आगे बढ़ जायेंगे, यह तब भी किसी ने नहीं सोचा था। तभी तो उदय शंकर ने तीसरी बार चौंकाया, जब वे 2007 में स्टार इंडिया के सीओओ बने। जैसे ही यह खबर फैली कि उदय शंकर पीटर मुखर्जी की जगह लेने जा रहे हैं, मीडिया सर्किल में दिल्ली से मुंबई तक फोन की घंटियाँ बजने लगीं। छोटे-बड़े पत्रकार-संपादक एक दूसरे से तस्दीक करने में जुटे थे कि क्या सच में उदय शंकर स्टार इंडिया के हेड बन रहे हैं? जो भी लोग पूछताछ और कन्फर्म करने में लगे थे, सबमें आश्चर्य का भाव था, कुछ इस स्वर में, कि यार ये कैसे हो गया? उदय शंकर वहाँ कैसे पहुँच गये। कम-से-कम पचास फोन तो मेरे पास आये होंगे यह पूछने के लिए यह क्या खेल है? यह कैसे हो गया? मर्डोक ने उदय को कैसे अप्वाइंट कर लिया? यह अलग बात है कि उदय की कामयाबियों पर रूदाली गाने वाले कई साथी और अशुभचिंतक भी उन्हें लंबे-लंबे शुभकामना संदेश भेजते रहे हैं। 

उदय का स्टार इंडिया का सीओओ (बाद में वे सीईओ बने) बनना चौंकाने वाली खबर इसलिए भी थी कि कहाँ न्यूज का एक आदमी और कहाँ इंटरटेनमेंट के सबसे बड़े ग्रुप का हेड। वह भी तब, जब कहा जा रहा था कि कॉरपोरेट और मीडिया बिजनेस में धाक जमाने वाले कई दिग्गज रेस में थे। सबको पीछे छोड़ कर उदय शंकर का वहाँ पहुँचना चौंकाने वाली खबर तो थी ही, बहुतों के लिए जलाने वाली थी। इस जलन का धुँआ दिल्ली और मुंबई में एक साथ उठ रहा था। स्टार न्यूज में उनका फेयरवेल भी नहीं हुआ था, स्टार इंडिया ज्वाइन भी नहीं किया था और बहुत-से लोग कहने लगे थे कि उदय वहाँ पहुँच तो गये लेकिन इंटरटेनमेंट में चल नहीं पायेंगे। रूपर्ट मर्डोक के मीडिया बिजनेस को चलाना आसान नहीं। कहने में कोई गुरेज नहीं है कि दिल्ली के मीडिया सर्किल में ऐसे उदय-विमर्शों का मैं चश्मदीद भी रहा हूँ।

अब वे सब लोग चुप हैं या चमत्कृत हैं या खुद इतने हाशिए पर हैं कि उदय शंकर को सर्टिफिकेट देना बंद कर चुके हैं और अगर कहीं दे रहे होंगे तो अब कोई मतलब नहीं है। जिसने अपना मेटल प्रूव कर दिया, उसे अब ऐसे विघ्न-संतोषियों, जलनशीलों, अशुभचिंतकों के खारिज किये जाने से क्या फर्क पड़ता है। हाँ, जब उदय शंकर ‘आजतक’ में थे, तब एक बेहद गुस्सैल और आक्रामक बास की छवि थी, न्यूजरूम के लोग डरते भी थे, देख कर छिपते भी थे, कोपभाजन भी बनते थे, उनकी गैरमौजूदगी में जम कर आलोचना भी करते थे। लेकिन इनमें से ज़्यादातर वे लोग थे, जो गलतियाँ करते थे, लापरवाही करते थे। उदय जब स्टार न्यूज गये तो अपनी वही छवि लेकर गये, लेकिन उन्होंने कुछ ही महीनों में अपनी ही छवि को तोड़ा और नये अवतार में दिखे। बहुत-से लोगों को उन्होंने जोड़ा और आगे बढ़ाया। हम जैसे लोग भी उसमें शामिल हैं। 

बीते बीस सालों के उनके जिस सफर को हमने देखा है और बीते दस सालों में उनके करियर ने जो राह पकड़ी है, वह राह बहुत दूर तक जाती है। उदय शंकर ने यह मुकाम किसी लाला कंपनी में काम करके हासिल नहीं किया है, जहाँ कई बार चापलूसी करने, जासूसी करने और लाला जी को खुश रखने भर से ही तरक्की की लिफ्ट का दरवाजा खुल जाता है। उदय ने टीवी टुडे जैसी प्रोफेशनल कंपनी के चैनल आजतक का तब नेतृत्व किया, जब वह पैदा हो रहा था। उसे शीर्ष तक पहुँचाने में भूमिका निभायी। फिर आनंद बाजार और मर्डोक की कंपनी के मुखिया हैं। जो लोग तब उदय को खारिज करते थे, उनमें से बहुत आज रिजेक्ट माल का दर्जा हासिल करके हर शाम दो-चार पैग के साथ कहीं गम गलत कर रहे होते हैं।

यह उदय शंकर के आज का सच है। वे देश के सबसे बड़े मीडिया साम्राज्य स्टार इंडिया के सात सालों से सीईओ हैं। स्टार ग्रुप के करीब डेढ़ दर्जन चैनलों के मुखिया हैं। देश के सभी हिन्दी-अंग्रेजी नेशनल न्यूज चैनलों के कुल टर्न ओवर से ज्यादा अकेले स्टार इंडिया का टर्न ओवर है और इंटरटेनमेंट से लेकर खेल तक में स्टार इंडिया के चैनलों का कोई मुकाबला नहीं। ये सब उदय शंकर की लीडरशिप क्षमता के सबूत हैं। पटना के एक अंग्रेजी अखबार से बतौर रिपोर्टर अपना करियर शुरू करने वाले उदय शंकर यहाँ तक पहुँच जायेंगे और न सिर्फ पहुँच जायेंगे बल्कि अपनी धमक कायम रखते हुए लगातार आगे बढ़ते रहेंगे, ऐसा किसी ने नहीं सोचा होगा। तभी तो टीवी टुडे ग्रुप के चेयरमैन अरुण पुरी ने उदय शंकर को इम्पैक्ट पर्सन ऑफ द डिकेड चुने जाने के बाद माना कि ‘आजतक’ में काम करने के दौरान वे उनकी कॉरपोरेट लीडरशिप क्षमता को ठीक से आँक नहीं पाये। 

अरुण पुरी ने ही उदय शंकर को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘आजतक’ का हेड बनाया, अपने ही न्यूजरूम के कई सीनियरों की नाराजगी मोल लेकर उदय शंकर को बड़ी जिम्मेदारी दी, लेकिन उदय में यहाँ तक जाने की क्षमता है, यह आकलन अरूण पुरी नहीं कर पाये। लेकिन आज अगर वे इस बात को सार्वजनिक तौर पर मानते हैं तो यह भी उदय की कामयाबी है। अरूण पुरी ने कहा है, “मैं अपनी गलती मानता हूँ कि मैं उनमें ग्रेट कॉरपोरेट लीडरशिप क्वॉलिटीज नहीं देख पाया। वो एक ग्रेट थिंकर है और स्वाभाविक रूप से एक ग्रेट लीडर भी… मैं कल्पना भी नहीं करता था कि वे इतने बड़े-बड़े शो बनायेंगे, क्योंकि वो इतना हार्डकोर जर्नलिस्ट है। लेकिन मैं बहुत खुश हूँ कि उन्हें आज ये (इम्पैक्ट पर्सन ऑफ द ईयर) अवॉर्ड मिला है। उन्होंने इंडस्ट्री पर बहुत बड़ा असर डाला है। मुझे पूरा भरोसा है कि आने वाले दिनों में भी उनकी लीडरशिप स्टार और इंडस्ट्री दोनों पर अपना बड़ा असर डालेगी।”

तो आखिर उदय शंकर में वह क्या बात है, जो उन्हें औरों से अलग करती है? मेरे हिसाब से सबसे बड़ी बात है लीडरशिप क्वालिटी। रिस्क लेने की क्षमता। हर वक़्त कुछ नया करने और कुछ नया सीखने की जिद। उनकी खासियत है अच्छी टीम बनाना, टीम का हौसला बढ़ाना, काम करने के मौके देना, टीम के साथ एक्सपेरिमेंट्स करना और हर मौके पर अपनी टीम के साथ चट्टान की तरह खड़े रहना। मैंने एक साल तक उदय के साथ आजतक में और करीब साढ़े तीन साल तक बीएजी फ़िल्म्स का संपादकीय प्रमुख रहते हुए स्टार के लिए काम किया है। आजतक से पहले और बाद में भी उनसे दोस्तीनुमा कंफर्ट का निजी रिश्ता भी रहा है। लंबे समय तक वे बॉस की भूमिका में भी रहे, लेकिन कभी इसका अहसास नहीं होने दिया। इस लिहाज से मैंने उन्हें बहुत करीब से देखा-समझा है। स्टार इंडिया के लिए एक धारावाहिक पर काम करते हुए भी कंटेंट पर उनकी बारीक समझ का गवाह रहा हूँ। इस नाते मैं कह सकता हूँ कि उदय शंकर में जो डायनेमिज्म है, वह शायद बहुत कम लोगों में होती है।

नयी चीज करने की ललक बहुतों में होती है, लेकिन उसे करने का जोखिम लेने का माद्दा बहुत कम लोगों में होता है। उदय शंकर में यह माद्दा है। अगर यह माद्दा नहीं होता तो उदय इतनी चुनौतियाँ नहीं लेते। कंटेंट के स्तर पर तमाम तरह के रिस्क लेते हुए उन्होंने स्टार इंडिया में भी प्रयोग किये। यह रिस्क ही था कि उन्होंने सास-बहू और कॉमेडी के लिए देखे जाने वाले इंटरटेनमेंट चैनल पर पाँच करोड़ रुपये प्रति एपिसोड की लागत से सत्यमेव जयते जैसा सार्थक शो बनाने का फ़ैसला किया। आमिर खान से एंकरिंग करायी और तमाम सामाजिक मुद्दों को गहराई तक जाकर छुआ। जब उदय शंकर ने स्टार प्लस और कलर्स के बीच काँटे की प्रतियोगिता के बावजूद ऐसे गंभीर शो को लांच करने का फ़ैसला किया तो भी लोग चौंके। खुद उदय शंकर ने एक इंटरव्यू में कहा कि जब उन्होंने सत्यमेव जयते के कंसेप्ट पर अपनी कंपनी के सहयोगियों की राय ली तो कोई इसके पक्ष में नहीं था। उदय के शब्दों में कहें तो, Satyamev Jayate caught the eye of boss James Murdoch, the co-chief operating officer, at 21st Century Fox. Shankar says Murdoch threw a lifeline to Satyamev Jayate at a time when others in the company were seeing it as an extravagant exercise in lunacy. 

“I was told by a company executive that I was “totally out of line,” when I discussed the concept of Satyamev Jayate. So I spoke with James and asked if I had his approval to go ahead and risk this whole investment,” says Shankar. “He said ‘we would live’.”

सत्यमेव जयते को रेटिंग के मामले जितनी कामयाबी मिली, उससे कहीं ज्यादा असर और रेस्पेक्ट के मामले में। बहुत कम लोगों का पता होगा कि सत्यमेव जयते नाम से ही एक शो उदय शंकर की जिद और फैसले के साथ 2006 में स्टार न्यूज पर लाँच हुआ था। स्टार न्यूज के गौरव बनर्जी (गौरव अब स्टार इंडिया में सीनियर पोजीशन पर हैं) सत्यमेव जयते के एंकर और कर्ता-धर्ता थे। उदय इस न्यूज शो को देश का सबसे बड़ा न्यूज शो बनाना चाहते थे, लेकिन दुर्भाग्य से टीवी न्यूज का वह दौर राखी सावंतों, राजू श्रीवास्तवों और तमाशों का था। रेटिंग के लिए बिना ड्राइवर वाली कार, स्वर्ग की सीढ़ी, पुनर्जन्म के किस्से, यमराज से मुलाकातों की कहानियाँ, भूतों की तलाश, नागिन का बदला और सनसनीखेज अपराध कहानियों चैनलों की प्राइम टाइम का हिस्सा थी (इसके लिए हम जैसे लोग भी ज़िम्मेदार हैं)। उदय शंकर उस दौर को सत्यमेव जयते जैसे गंभीर न्यूज शो से रीडिफाइन करना चाहते थे, लेकिन न तो इसके लिए स्टार न्यूज की टीम तैयार थी, न ही सही वक्त था। उदय मुझसे, मिलिंद खांडेकर से और विनोद कापड़ी से तब भी कहते थे और आज भी प्यार से उलाहना देने वाले अंदाज में अक्सर कहते हैं कि तुम लोगों ने मेरे कंसेप्ट को तब चलने नहीं दिया। यह सच भी है कि तब स्टार न्यूज़ के भीतर ही बहुत-से लोग थे, जो उस शो को लेकर न आश्वस्त थे और न ही जोर लगा कर उसे कामयाब बनाने में जुटे थे।

उस दौर में हमने उदय शंकर की बेचैनी और यथास्थिति को बदलने की छटपटाहट देखी है। तब रेटिंग की ऐसी मारकाट मची थी कि उदय शंकर अपने दम पर कितना कुछ कर लेते। फिर भी उन्होंने स्टार न्यूज को नयी दिशा दी, नये तेवर दिये। 

उदय शंकर जब स्टार इंडिया गये तो हममें से बहुतों को लगता था कि वहाँ टिकना और अपने को साबित करना उदय के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि उदय शंकर खाँटी जर्नलिस्ट थे। सीरियल और इंटरटेनमेंट की दुनिया उनके लिए नयी थी। पीटर मुखर्जी और समीर नायर जैसे दिग्गजों की विरासत संभालना और नयी जमीन पर पैर जमाना आसान नहीं होगा। स्टार न्यूज के सीईओ के तौर पर मैंने बिल्कुल अलग चोले में उदय शंकर को देखा था, इसलिए आसपास के लोगों की तमाम आशंकाओं को सुनते-समझते हुए भी यकीन था कि अब उदय शंकर की रफ्तार को कोई रोक नहीं पायेगा। हुआ वही। बीएजी फिल्म्स के इंटरटेनमेंट डिवीजन की तरफ से एक-दो सीरियल का प्रस्ताव लेकर मैं तीन साल पहले उदय शंकर से मिला। एक कंसेप्ट पर काम करने का जिम्मा उन्होंने भी मुझे दिया। मुंबई में बीएजी की क्रिएटिव टीम के साथ कई सप्ताह की माथापच्ची के बाद मेरी तीन-चार लंबी मीटिंगें उदय से हुईं। साथ में स्टार इंडिया की क्रिएटिव टीम भी थी, लेकिन हर बार उदय शंकर ने कंसेप्ट और स्टोरी नैरेशन के दौरान इतनी बारीक चीजों को पकड़ा कि मैं अफसोस और इर्ष्या से भर गया कि यह बात पहले हमें क्यों नहीं समझ में आयी। अपनी क्रिएटिव टीम के लोगों पर गुस्सा आया, जो कई शो बना चुके थे और खुद को इंटरटेनमेंट की दुनिया का मठाधीश समझते थे। 

उदय शंकर की हैसियत, पोजीशन और ओहदा पा कर बहुतों का दिमाग खराब हो जाये। यहाँ तो मामूली सफलता मिलने पर बहुत-से लोग बौरा जाते हैं। कब जमीन से उखड़ कर आसमान में उड़ने लगते हैं, पता ही नहीं चलता। लेकिन उदय शंकर आज भी अपने दोस्तों-परिचितों, पुराने दिनों के साथियों और नये लोगों के साथ उसी गर्मजोशी और ऊर्जा के साथ मिलते हैं। बहुतों की मदद करते हैं और किसी को भूलते नहीं। आत्ममुग्धों की इस दुनिया में उदय शंकर किसी मिलने वाले को यह अहसास नहीं होने देते कि वे इतने ऊँचे मुकाम पर हैं। ऊँचे लोग ऊँची सोच भी रखें, यह जरूरी नहीं। ज्यादातर बॉस अपनी टीम की कामयाबी का सेहरा भी अपने माथे पर बांध कर घुमते हैं। लेकिन उदय हमेशा टीम को श्रेय देते हैं, टीम को आगे बढाते हैं। सार्वजनिक तौर पर तारीफ करते हैं। जबरदस्त कंफर्ट देते हैं और अपनी मौजूदगी से टफ टास्क मास्टर होने का अहसास दिलाते हैं। उनकी यह खासियत भी औरों से उन्हें अलग करती है। दुनिया के किसी भी कोने में हों, लेकिन अगर बहुत मजबूर न हो तो मैसेज का जवाब देते हैं, लोगों से संपर्क में रहते हैं। यारों के यार हैं और वक्त पड़ने पर मददगार भी। 

(देश मंथन, 10 दिसंबर 2014)

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