विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
एक जुलाई 1880 को नैरो गेज लाइन दभोई से चलकर गोया गेट ( बड़ौदा) तक पहुँची। हालाँकि इस लाइन के लिए सर्वे काफी पहले 1860 में ही कर लिया गया था।
बीबी एंड सीआई कंपनी ने 1878 में गोया गेटतक लाइन बिछेन की तैयारी की। दभोई से बड़ौदा के बीच नैरो गेज लाइन बिछाने में 1 लाख 31 हजार 652 रुपये का खर्च आया। इस रेलवे लाइन को बिछाने की ठेका मोहनलाल बेचारदास एंड कंपनी को दिया गया। 24 जनवरी 1881 को इस लाइन का विस्तार विश्वामित्री रेलवे स्टेशन तक किया गया। वहाँ पर ब्राडगेज और नैरोगेज की लाइनें आपस में मिलती थीं। तब गोया गेट कमाई वाला रेलवे स्टेशन था। पहले ही साल 1881 में इस स्टेशन से 51 हजार 164 रुपये की कमायी हुयी।
25 मार्च 1919 को गोया गेट ( बड़ौदा) में नैरो गेज के लिए एक वर्कशाप की स्थापना की गयी, जिसका नींव पत्थर वायसराय लार्ड चेम्सफोर्ड ने रखा था। 1881 में इस नैरो गेज नेटवर्क पर 2 लाख 72 हजार लोग सफर कर रहे थे, जो उस समय के लिए शानदार था। 1923-24 में विश्वामित्री रेलवे स्टेशन ब्राडगेज से जुड़ गया। तब नैरो गेज और ब्राडगेज के बीच सामान और यात्रियों का आदान-प्रदान आसान हो गया। 1930 में जीबीएसआर ( गायकवाड़ बड़ौदा स्टेट रेलवे) के पास 5927 नैरो गेज वैगन का स्टाक था।
गोया गेट बना प्रतापनगर
प्रतापनगर रेलवे स्टेशन का पुराना नाम गोया गेट हुआ करता था। 24 जनवरी 1881 को गोया गेट से विश्वामित्री खंड के बीच नैरो गेज की पटरियाँ बिछायी गयीं। बड़ौदा शहर में पानी गेट की तरह गोया गेट दूसरा महत्वपूर्ण इलाका हुआ करता था। विश्वामित्री नदी शहर के बीचों बीच बहती है। गोया गेट और जंबुसार के बीच रेल मार्ग पर विश्वामित्री दूसरा स्टेशन है।
गायकवाड़ बड़ौदा स्टेट रेलवे (जीबीएसआर)
साल 1921 से पहले गुजरात में नैरो गेज नेटवर्क का संचालन बीबी एंड सीआई नामक कंपनी करती थी। बीबी सीआई यानी बांबे बड़ौदा सेंट्रल इंडिया रेलवे कंपनी का गठन 1855 में हुआ था। हालाँकि रेलवे लाइन का निर्माण बड़ौदा स्टेट ने ही किया था पर संचालन और रख-रखाव का काम बीबी एंड सीआई कंपनी देखती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि कंपनी ऑपरेशन के नाम पर बड़ी राशि वसूलती थी। इसलिये कंपनी अक्सर घाटा दिखाती थी। बड़ौदा रियासत के अत्यंत प्रगतिशील और दूरदर्शी महाराजा सयाजी राव – 3 ने नैरो गेज नेटवर्क में आमलूचल बदलाव का फैसला लिया। उनके समय में गोया गेट वर्कशाप, रेलवे कालोनी, जीबीएसआर का दफ्तर आदि का निर्माण हुआ।
एक अक्तूबर 1921 को इसका संचालन महाराजा बड़ौदा के संपूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी गायकवाड बड़ौदा स्टेट रेलवे ( जीबीएसआर) ने ले लिया। बीबी एंड सीआई कंपनी जहाँ हर साल नैरो गेज नेटवर्क को घाटे में चला रही थी, वहीं जीबीएसआर के हाथ में कमान आने के बाद आश्चर्यजनक बदलाव आया। छह हजार तक सालाना घाटे में चलने वाली रेलवे लाइन पहले ही साल 91 हजार के लाभ में आ गयी। वहीं नैरो गेज सिस्टम का कुल लाभ बढ़कर 1.59 लाख सालाना हो गया। 1921 में जीबीएसआर के पास 267.83 मील का नैरो गेज रेल नेटवर्क था। पर 1922 में नैरोगेज नेटवर्क की लंबाई बढ़कर 341 मील हो गई। 1940 में जीबीएसआर के पास 355 मील का नैरोगेज नेटवर्क मौजूद था।
साल 1940 में गुजरात का ये नैरो गेज नेटवर्क 8 लाख 28 हजार का शुद्ध लाभ दे रहा था। स्टीम इंजन से चलने वाली नैरो गेज की ट्रेनों की औसत स्पीड 18 से 20 किलोमीटर प्रति घंटे हुआ करती थी। 1930-40 के दशक में ये नैरो गेज नेटवर्क कपास ढुलाई का बहुत बड़ा माध्यम हुआ करता था। रेलवे की कमायी का बहुत बड़ा हिस्सा कपास की ढुलाई से आता था। आजादी के बाद 1949 में जीबीएसआर का विलय बीबी एंड एसआई में दुबारा हो गया। 1951 में बीबी एंड सीआई कंपनी भारतीय रेल में समाहित हो गयी। इसके बाद गुजरात का नैरो गेज नेटवर्क भारतीय रेलवे के पश्चिमी रेलवे जोन का हिस्सा बन गया।
(देश मंथन, 25 मार्च 2015)