जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा अच्छा होगा

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

सच में मेरा मन बदल गया आज पोस्ट लिखते-लिखते। मैंने सोचा था कि आज इंग्लैंड की सिमरन की कहानी आपको सुनाऊंगा। सुबह नींद खुलते ही मेरे मन में कहानी का ताना-बाना बुन जाता है। मैंने बहुत बार कोशिश की है कि कभी एक रात पहले ही लिख कर सो जाऊं, ताकि सुबह मुझे जल्दी न जगना पड़े, लेकिन मेरे चाहने से ऐसा नहीं होता। मेरी उंगलियाँ रुक जाती हैं, कहानी आगे बढ़ती ही नहीं। 

सुबह-सुबह मेरे मन में एक कहानी ने आकार लेना शुरू ही किया था कि कैसे इंग्लैंड की एक लड़की हिंदी फिल्मों से प्रभावित होकर सचमुच की सिमरन बन बैठी। 

लेकिन अभी मेरे मन में कहानी आकार ले ही रही थी कि किसी ने मुझे व्हाट्सएप पर एक संदेश भेजा। पता नहीं क्यों मैं लिखना छोड़ कर उस संदेश को पढ़ने बैठ गया। मैंने उस पूरे संदेश को बहुत ध्यान से पढ़ा। बीच-बीच में एक पिता की बदकिस्मती पर आँसू भी पोंछे। उसके बेटे की बुद्धि पर तरस भी खाया। मन तो नहीं था अंत तक पूरे संदेश को पढ़ने का, पर पढ़ता चला गया। आख़िर में जाकर थोड़ी हंसी आई, थोड़ी कोफ्त हुई, पर दिल को बहुत राहत मिली। पर सबसे बड़ी बात ये है कि जीवन का बहुत बड़ा संदेश छुपा है इस कहानी में। 

संजय सिन्हा की आदत भी अजीब है। कहानी शुरू कहीं से करते हैं, पहुँच कहीं जाते हैं। जब बाप-बेटे वाली कहानी ही सुनानी है, तो सीधे-सीधे कहानी शुरू ही कर देनी चाहिए। इतनी भूमिका की क्या जरूरत है? 

तो सुनिए वो छोटी सी कहानी, जिसमें छिपा है बहुत बड़ा संदेश।

एक बार एक पिता रात में सोने के लिए कमरे में जा रहे थे, तो अपने 15 साल के बेटे के कमरे के पास से गुजरते हुए उन्होंने देखा कि कमरे का दरवाजा खुला है, बत्ती जल रही है और बिस्तर एकदम करीने से लगा है। पिता हैरान होकर कमरे में चले गए कि बेटा कमरे में क्यों नहीं है? ये तो सोने का समय है। कमरे में जाकर उन्होंने पाया कि बिस्तर पर एक लिफाफा पड़ा है, जिसके ऊपर लिखा है- पापा के नाम पत्र। 

पिता ने हैरान होते हुए लिफाफा खोला और पत्र पढ़ना शुरू किया। 

“आदरणीय पापा, 

आपको ये जानकर खुशी होगी कि आपका बेटा अब बड़ा हो गया है। मुझे अपनी जिन्दगी का मकसद समझ में आ गया है, इसलिए मैं घर छोड़ कर जा रहा हूँ। शायद घर में रहते हुए ये सब कर पाना मुमकिन नहीं होता। पापा, मैं एक लड़की से प्यार करता हूँ, लड़की का नाम प्रिया है, वो मुझसे 10 साल बड़ी है और वो गर्भवती भी है। मैं शायद उसके साथ नहीं जाता, अगर उसके पेट में एक जिन्दगी नहीं पल रही होती।”

इतना पढ़ कर तो पापा का क्या हाल हुआ होगा, मैं सोच ही नहीं पा रहा था, पर मेरा दिल बैठने लगा था।

पत्र में आगे लिखा था, “पापा, आप मुझे समझने की कोशिश कीजिएगा। प्रिया को एड्स है। उसे किसी के सहारे की जरूरत है। उसके पिछले प्रेमी ने उसे धोखा दे दिया। वो एकदम अकेली है और जिन्दगी से टूट चुकी है। मैं उसके साथ ही जा रहा हूँ, पर जल्दी लौट कर आऊंगा। जब मैं आऊंगा, तब तक आप दादा बन चुके होंगे। आप अपने पोते और बहू से मिल कर बहुत खुश होंगे। पापा, मैं चाहता हूँ कि हमारे घर में बहुत से बच्चों की किलकारी गूँजे। आप और मम्मी बहुत खुश होंगे ढेर सारे बच्चों के दादा और दादी बन कर। 

पापा, प्रिया को नशे की लत लग गयी है। मैंने भी उसके साथ शराब पी, सिगरेट पी। पर मैं वादा करता हूँ कि जब घर लौट कर आऊंगा, तो ये सब छोड़ चुका रहूँगा। मम्मी से मैं कुछ कह नहीं पाया और आपसे कहने की हिम्मत नहीं हुई। मुझे आपसे सीधे-सीधे बात करने में बहुत डर लगता है। इसलिए मेरे पापा, आप मुझे माफ कीजिएगा।”

पत्र पढ़ कर पापा लगातार रोये जा रहे होंगे, ऐसा मैं अनुमान लगा रहा हूँ। हम में से किसी के बेटे ने अगर ऐसी चिट्ठी हमें लिखी हो, तो हमारी जो प्रतिक्रिया होगी वही प्रतिक्रिया उस पापा की भी रही होगी। 

पापा पत्र पढ़ते-पढ़ते बिस्तर पर बैठ गये। उनकी आँखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा।

पापा इतना पढ़ चुके थे। पर पत्र के नीचे एक पैरा अभी बाकी था। पर इतना पढ़ने के बाद अब क्या पढ़ना? अब पढ़ने को बचा ही क्या था? पर पिता ने बहुत हिम्मत करके आखिरी पैरा भी पढ़ने की कोशिश की। अपनी धुंधलाई आँखों को पोंछता हुआ एक बाप बाकी की पंक्तियाँ पढ़ रहा था। 

“पुन:-

पापा, ऊपर मैंने जो कुछ लिखा है, वो सब झूठ है। ऐसा कुछ भी न हुआ है, न मैंने किया है। मैंने यह पत्र सिर्फ इसलिए लिखा है कि जिन्दगी में बहुत बड़े-बड़े दर्द होते हैं, हो सकते हैं। मेरी स्कूल परीक्षा का रिजल्ट मेरी आलमारी में रखा है, रिजल्ट जरा खराब है। मुझे आपसे डर लग रहा था, तो मैं अपने दोस्त संजू के घर चला आया हूँ। जब आप रिजल्ट देख कर तय कर लेंगे कि मुझे डांटेंगे नहीं, तो मैं चला आऊंगा। सोचिए पापा, जिन्दगी में कितने दुख हैं, ऐसे में परीक्षा में थोड़े नंबर कम आ जाना दुखद तो है, पर उतना नहीं, जिस दुख से आप अभी-अभी आप गुजर चुके हैं। 

पापा, आई लव यूँ।

आपका,

बंटी”

***

इस कहानी को पढ़ कर आप हंसे, रोएं या माथा पीटें, पर हकीकत यही है कि ये कहानी हमें बहुत बड़ा संदेश देती है। 

जरूरत है चिट्ठी में लिखे उस ‘पुन:’ को समझने की कि इससे भी बुरा हो सकता था। जरूरत है गीता के उस मर्म को समझने की कि जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा वो भी अच्छा होगा।

(देश मंथन 13 जुलाई 2016)

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