बिरसा कृषि विश्वविद्यालय – हम याद रखें उनको

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विद्युत प्रकाश : 

कांके कभी राँची शहर का बाहरी इलाका हुआ करता था पर अब शहर के आगोश में समा चुका है। इसी कांके में है बिरसा कृषि विश्वविद्यालय। कभी इसका नाम राँची एग्रीकल्चर कालेज हुआ करता था।

1956 में स्थापित इस कालेज को 26 जून 1981 को यूनिवर्सिटी का दर्जा देकर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय नाम दिया गया। संयोग ऐसा कि मैं जिस दिन विश्वविद्यालय के कैंपस में पहुँचता हूँ इसका 34वाँ स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। मुख्य द्वार के अंदर जाते ही प्रशासनिक भवन है।

इसके बगल में बने उद्यान में बिरसा भगवान की प्रतिमा लगी है। बिरसा मुंडा को झारखंड में भगवान का दर्जा मिला हुआ है क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ विद्रोह किया था। मुझे ऱाँची के कोकर इलाके में बिरसा भगवान का समाधि स्थल दिखायी दिया। इस समाधि स्थल को विकसित किया जा रहा है।

मैं भी बिरसा मुंडा की प्रतिमा के करीब जाता हूँ और आजादी के आंदोलन के इस महान रणबांकुरे को नमन करते हुए सिर झुकाता हूँ। ऐसे ही महान सपूतों के कारण तो हम आजाद हवा में सांस ले पा रहे हैं। झारखंड ने बिरसा मुंडा को कई तरह से याद किया है। यहाँ के एयरपोर्ट का नाम भी उनके नाम पर है। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर बाईं तरफ मुझे सरना पूजा स्थल दिखायी देता है। 

छोटे से विश्वविद्यालय परिसर में जून के मौसम में हरियाली है…। शीतलता है। मुख्य भवन के पीछे छात्रों के 14 हास्टल हैं। जिनके नाम प्रेरणादायक रखे गये हैं। सौम्य, शौर्य, संकल्प, सृजन आदि। छह हास्टल छात्राओं के लिए भी हैं, इनके नाम सृष्टि, स्वपनिल, संचिता, स्वास्तिक जैसे हैं।

राँची आने पर मेरी दिली इच्छा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की मिट्टी को नमन करने की थी। क्योंकि यहाँ मेरे पिताश्री ने पढायी की थी। सत्तर के दशक में यहाँ से कृषि स्नातक हुए। वे राँची के तमाम किस्से सुनाते हैं। परिसर से बाहर निकलता हूँ। राँची रोड पर विश्वविद्यालय का विशाल एग्रीकल्चर फार्म दिखायी देता है।

एक तरफ कांके का प्रसिद्ध मानसिक रोग चिकित्सालय केंद्रीय मनचिकित्सा संस्थान का बोर्ड भी दिखायी देता है। राँची की पहचान इस पागलखाना से भी है। देश में दूसरा बड़ा ऐसा अस्पताल आगरा में है। पर राँची की पहचान इतनी ही नहीं है। 

महान आध्यात्मिक संत परमहंस योगानंद द्वारा स्थापित योगदा सोसाइटी का मुख्यालय भी राँची में रेलवे स्टेशन के पास ही है। उनकी आत्मकथात्मक  पुस्तक योगी कथामृत काफी लोकप्रिय है। दुनिया भर से योगी के भक्त राँची पहुँचते हैं। मैं योगदा सोसाइटी में भी कुछ घंटे गुजारता हूँ। यहाँ प्रार्थना भवन बना है। श्रद्धालु उस पेड़ को देखने आते हैं जिसके नीचे योगी अपने राँची प्रवास के दौरान घंटो बैठा करते थे। अब योगदा सोसाइटी की शाखाएँ दुनिया भर में फैली हैं।

(देश मंथन, 12 जुलाई 2014)

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