प्यार, स्नेह और मान दें रिश्तों में प्रेम के अंकुर फूटेंगे

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैं एक बहू से मिला हूँ। मैं एक सास से मिला हूँ।

दोनों में नहीं बनती। क्यों नहीं बनती मुझे नहीं पता। बहू का कहना है कि सास हर पल उसे नीचा दिखाती हैं।

सास कहती हैं कि बहू उसे पूछती नहीं।

मुझसे कई महिलाएँ अपनी-अपनी कहानियाँ साझा करती हैं। मेरी पत्नी कई बार मुझसे पूछती भी है कि आखिर महिलाएँ तुम पर इतना भरोसा क्यों करती हैं? मेरी पत्नी ने कभी जाहिर नहीं किया है, लेकिन मुझे लगता है कि उसे मेरी सहेलियों की गोपनीय कहानियों से जरूर जलन होती होगी।

खैर, उसने आजतक मुझे टोका नहीं है और मैंने कभी सेल्फ एक्सप्रेसिव हो कर कुछ जताया भी नहीं।

पर आज मैं आपसे दो महिलाओं की कहानी साझा करने जा रहा हूँ।

दोनों महिलाओं को मैं जानता हूँ। दोनों मुझे बहुत मानती हैं। दोनों मेरी दोस्त हैं। दोनों अपनी-अपनी कहानियाँ मुझसे साझा करती हैं। दोनों के पास मैं बैठता हूँ। दोनों की बातें सुनता हूँ।

कल कई हफ्तों के बाद मैं उनके साथ बैठा। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर कौन हैं दोनों महिलाएँ।

मैं आपको बता दूँ कि दोनों महिलाएँ आपस में सास-बहू हैं और एक ही घर में रहती हैं। मैं उनके घर जाता हूँ तो सास मुझे अपने पास बिठा कर मेरा हालचाल पूछती हैं, अपना हालचाल बताती हैं। फिर बहू जैसे ही ड्राइंग रूम में आती है, सास वहाँ से चल देती हैं। फिर बहू अपनी कहानी सुनाती है।

कल मेरी गाड़ी नीचे पार्क हो ही रही थी कि सास मुझे बॉलकनी में खड़ी चाय पीती नजर आ गईं। मैंने नीचे से ही हाथ हिलाया और उनका अभिवादन किया।

मैं पहली मंजिल के उनके फ्लैट तक पहुँचा, घंटी बजाई, दरवाजा बहू ने खोला। अगर मैं टीवी सीरियल लिख रहा होता तो यकीन मानिए कि दोपहर में चलने वाले सारे टीवी सीरियल संजय सिन्हा की कहानी के आगे फेल हो जाते।

हाँ तो, बहू ने दरवाजा खोला। मैंने नमस्ते की और अपने कई दिनों बाद आने के लिए माफी माँगी। मैंने बताया कि नए मकान में शिफ्ट होने के बाद कहीं निकलने का मौका ही नहीं मिला। और इसके बाद शुरू हो गयी हमारी बातचीत। 

“माँ बॉलकनी में खड़ी होकर चाय पी रही हैं। मैंने नीचे से ही नमस्ते की, तो वो मुस्कुरा रही थीं।”

“मुस्कुरा रही थीं? अरे वो मुझे जला रही थीं। मुझे तंग करने के लिए कप में पानी भर कर बाहर खड़ी हो कर पीती हैं, ताकि पूरा मुहल्ला जाने कि उनकी बहू उन्हें चाय भी नहीं पूछती।”

बहू बेशक मुझसे ऐसा कह रही थी, लेकिन मैं जानता हूँ कि सार्वजनिक तौर पर वो अपनी सास की किसी से बुराई नहीं करती। आम तौर पर किसी और के सामने सास-बहू आपस में पूरे सौहार्द का परिचय देती ही नजर आती हैं। पर मुझसे दोनों ही अपने दिल की बातें साझा करती हैं।

“मैंने कहा कि तुम्हारी सास से भी मिल ही लेता हूँ।”

“जरूर जाइए संजय जी। आप अपनी आँखों से सच देखिए। “

मैं सोफे से उठा और पहुँच गया बॉलकनी में, माँ के पास। मैंने पाँव छू कर उन्हें प्रणाम कहा। उन्होंने मुझे गले लगाया और ढेर सारा आशीर्वाद दिया। 

मैंने उनसे पूछा कि चाय हो गयी?

“कहाँ चाय? बहू ने तो तुम्हें सब बता ही दिया होगा।”

“नहीं, उसने मुझे कुछ नहीं बताया। वो तो आपकी तारीफ ही करती है।”

वो कुछ देर चुप रहीं। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा तुमसे क्या छिपा है? मैं तो बाहर खड़ी हो कर कप में पानी पी रही हूँ। वो कहाँ मुझे चाय-वाय पूछती है?

“पर आप ऐसा क्यों करती हैं? लोग क्या कहेंगे? इससे तो घर की बदनामी ही होगी।”

“अरे बेटा, उसी बदनामी से बचाने के लिए तो ऐसा करती हूँ।”

” वो कैसे?”

“वो ऐसे कि ये सच है कि मेरी बहू मुझे चाय के लिए भी नहीं पूछती। सुबह एक कप चाय मेरे सामने पटक जाती है। खैर, ये तो अंदर की बात है। तुम तो बेटा हो, तुमसे क्या छिपा है, पूरे मुहल्ले के सामने मैं पानी को चाय की तरह सुड़क-सुड़क कर शाम को इसलिए पीती हूँ ताकि आसपास की महिलाएँ देखें कि मेरी बहू मेरा कितना ख्याल रखती है। मैं थोड़े न घूम-घूम कर ये कहती फिरती हूँ कि मैं कप में चाय नहीं पानी पी रही हूँ। बेटा, घर की लड़ाई घर में रहे तो ठीक है। दुनिया में मैं किसी से बहू की शिकायत नहीं करती। मैं तो उसका मान ही बढ़ाती हूँ। पर वो समझे तब न?”

***

मैं चुप था।

समझ में नहीं आ रहा था कि सास-बहू के इस मनमुटाव को कैसे दूर करूं। कैसे दोनों को समझाऊं कि जहाँ रक्त के रिश्ते नहीं होते, वहाँ कर्तव्य का रिश्ता होता है। और जो कर्तव्य के रिश्ते को निभाना जानता है, वही खुद भी खुश रहता है, दूसरे को भी खुश रखता है।

रक्त के रिश्ते शायद खुद निभ जाएं, लेकिन कर्तव्य के रिश्ते को प्यार, स्नेह और मान के खाद-पानी से सींचना पड़ता है। इस संसार में खराब से खराब रिश्तों में प्रेम के अंकुर फूट सकते हैं, अगर प्यार, स्नेह और मान रूपी खाद का इस्तेमाल किया जाए।

मैंने कल तो दोनों से कुछ नहीं कहा, पर मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी आज की पोस्ट पढ़ कर शायद दोनों ओर से एक कोशिश शुरू हो। कोशिश कर्तव्य के रिश्तों को निभाने की।

(देश मंथन 07 जुलाई 2016)

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