संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
राज कपूर की फिल्म ‘प्रेम रोग’ जब मैं देख रहा था, तब मैं स्कूल में रहा होऊंगा।
फिल्म में जब पद्मिनी कोल्हापुरे विधवा हो जाती है, तब उसके ससुराल वाले उसके बाल मुड़वाने की कोशिश करते हैं, उसे सिर्फ सफेद कपड़े पहनने और घर के बाहर एक छोटे से कमरे में रहने पर मजबूर करते हैं। पद्मिनी कोल्हापुरे मेरी पसंदीदा हीरोइनों में से एक थी और उसके साथ होने वाले इस अत्याचार से मैं बहुत आहत हुआ था। तब मुझे फिल्मों की कहानी सच लगा करती थी। फिल्म के एक सीन में विधवा पद्मिनी कोल्हापुरे के साथ जब उसके जेठ रजा मुराद ने बलात्कार की कोशिश की, तो सिनेमा हॉल में मैंने खूब मुक्के भांजे। मुझे लगता था कि इस तरह मैं पद्मिनी कोल्हापुरे को बचा सकता हूँ।
मैं उम्र के उस पड़ाव पर किसी लड़की के विधवा होने पर इस तरह के अत्याचार से इतना आहत था कि एक बार मैंने पिताजी से कहा था कि अगर कोई लड़की विधवा हो तो आप मेरा विवाह उससे करा दीजियेगा। मेरे मन पर फिल्म ‘प्रेम रोग’ ने गहरा असर किया था और असर इतने दिनों तक रहा कि पूरे बॉलीवुड को जानने वाले संजय सिन्हा ने रजा मुराद से कभी मिलना ही नहीं चाहा। हालाँकि कई मौकों पर हम आमने-सामने हुये, दुआ-सलाम भी हुयी, लेकिन मुझे उनका वो चेहरा जैसे ही याद आता, मैं सिहर उठता।
पद्मिनी कोल्हापुरे के बाल काटने के प्रयास पर भी मेरा गुस्सा मन ही मन खूब भड़का। मुझे तब से लगने लगा कि सचमुच ये ज्यादती है, लेकिन अभी अपने मुंबई प्रवास में जब मैंने एक लड़की के साथ बलात्कार के बाद सुना कि उसकी माँ ने बेटी का मुंडन करा दिया तो मुझे गुस्सा नहीं आया। जो खबर मैंने पढ़ी उसके बाद उस अनजान लड़की की माँ के साथ पूरी सद्भावना रखते हुए आज मैं एक खुला पत्र उस लड़की के नाम लिख रहा हूँ। मैंने सुना कि माँ ने बेटी का मुंडन इसलिये करा दिया ताकि वो लोगों को सुंदर न लगे और समाज के दरिंदों से महफूज रहे।
प्रिय बेटी,
तुम संसार की सबसे सुंदर बेटी हो। तुम किसी की भी बेटी हो सकती हो। मेरी भी। तुम जब पैदा हुई थी, तो ऐसा लगा था जैसे आसमान से चांद जमीं पर उतर आया है। तुम्हारी बड़ी-बड़ी आँखें, तुम्हारा गोरा चेहरा सदैव मुझे आसमान से बिखरने वाली चांदनी का अहसास कराते रहे। तुम ठुमक-ठुमक कर चलती तो पूरा घर मानो तुम्हारे कदमों से झंकृत हो उठता था। तुम जब माँ कहती, पापा कहती, तो लगता कि कहीं सरगम बज रही है।
बेटी, तुम सचमुच संसार की सबसे सुंदर बेटी थी। तुम किसी के लिये गौरव थी, तुम किसी के लिये दुलार थी। तुम क्या नहीं थी।
तुम पहली बार स्कूल गई तो माँ की खुशी देखते ही बनती थी। कहती थी कि बिटिया बड़ी होकर पायलट बनेगी। हवाई जहाज उड़ायेगी। आसमान में सितारों से मिलेगी और उन्हें बतायेगी कि तारे सिर्फ आसमान में ही नहीं होते, जमीन पर भी टिमटिमाते हैं। कुछ अपनी उनसे कहेगी, कुछ उनकी सुनेगी। मेरी बेटी सारे जहाँ में मेरा नाम रौशन करेगी।
फिर तुम स्कूल से कॉलेज चली गयी। तुम पर मुहल्ले के मनचलों की नजरें पड़ने लगीं। तुमने खुद को बहुत बचाया। तुमने मुझे बताया। तुमने माँ को बताया। तुमने पुलिस में शिकायत भी दर्ज करायी, लेकिन मेरी प्रिय बेटी, तुम उन दरिंदों की हवस से बच नहीं पायी। उन्होंने तुम्हरी सुंदरता को नोच-नोच कर तुम्हें छोड़ दिया जीवन भर सिसकने के लिये।
आज मैं तुम्हारा पिता, ईश्वर से गुहार लगाता हूँ कि किसी पिता को, किसी माँ को सुंदर बिटिया मत देना। बेटियाँ चांद जैसी किसी को अच्छी नहीं लगतीं। ये संसार फूलों से प्यार नहीं करता, उन्हें तोड़ लेता है। उन्हें अपने बिस्तर पर सजा लेता है। मेरी बेटी, बहुत पहले एक विधवा के सिर के बाल मुंडे जाने पर मैंने बहुत आक्रोश जताया था। पर आज मैं समझ पा रहा हूँ कि क्यों विधवाओं के बाल मूड़ दिये जाते थे। क्यों उन्हें अच्छे कपड़े पहनने की छूट नहीं मिलती थी। क्यों उन्हें परहेजी खाना खाना पड़ता था और तो और, बहुत साल पहले क्यों उन्हें पति के साथ सती तक होने के लिये उकसाया जाता था। तब उस घर के बड़े-बुजुर्ग जानते थे कि ये दुनिया ऐसे दरींदों से भरी है, जिन्हें खूबसूरती को कुचलने में ही मजा आता है।
बेटी, अपनी माँ के किये का बुरा न मानना। उसने तुम्हारी रक्षा में कोशिश की है कि तुम अब सुंदर न लगना, तुम सुंदर न लगना ताकि इन वहशियों से तुम बची रह सको। मेरी बेटी, लड़कियों का सुंदर होना हमारे देश में गुनाह है। जब मुंबई जैसी नगरी में लड़कियां सुरक्षित नहीं, तो मुझे और कहीं से कोई उम्मीद नहीं। बेटी, तुम कुछ ऐसा करना कि तुम बदसूरत दिखो। तुम बदसूरत दिखो ताकि तुम सुरक्षित रहो।
मुझे माफ करना। मैंने ईश्वर से सुंदर बिटिया माँगी थी, इसलिये तुम्हारा दोषी मैं भी हूँ। जिन लोगों ने तुम्हें रौंदा, वो भी पुरुष ही थे, उस लिहाज से भी तुम्हारा दोषी मैं ही हूँ।
माफ कर सको तो करना। वैसे मेरा गुनाह माफी के लायक नहीं। जो पिता खूबसूरत बिटिया चाहते हैं, वो सभी गुनाहगार होंगे, तुम्हारे और उन सभी बेटियों के। वो सभी गुनाहगार होंगे जो कुछ नहीं कर पाते और बेटियों को लाचार टूटते देखते हैं, दरिंदों की हवस के आगे।
माफी सहित,
कोई भी एक लाचार पापा।
(देश मंथन, 24 मार्च 2015)