संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
विजय और रवि दोनों सगे भाई थे। एक दिन विजय और रवि के पिताजी घर छोड़ कर कहीं चले गये। वो मजदूरों के नेता थे। इस तरह अचानक उनके घर छोड़ कर चले जाने से नाराज कुछ लोगों ने विजय को पकड़ कर उसकी कलाई पर लिख दिया, “मेरा बाप चोर है।” विजय का बाप चोर नहीं था। लेकिन बड़ा होकर विजय चोर बन गया और रवि पुलिस अफसर।
एक दिन रवि ने विजय से कहा, “तुम चोरी छोड़ दो। चोरी गुनाह है। तुम इस कागज पर दस्तखत करके अपने गुनाह कबूल कर लो।” विजय ने कहा, “मैं चोरी छोड़ दूंगा। मैं तुम्हारे दिए इस कागज पर दस्तखत भी कर दूंगा। लेकिन तुम पहले उन लोगों के दस्तखत लेकर आओ, जिन्होंने मेरी कलाई पर लिख दिया था, मेरा बाप चोर है।”
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जब भी हम कोई गलत काम करते हैं तो हम उसे सही साबित करने के लिए दलील ढूँढ लेते हैं। हम दूसरों का हवाला देने लगते हैं। हम कहने लगते हैं कि संसार में सब चोर हैं, उन्हें तो कोई कुछ नहीं कहता। पहले उन्हें रोको, उन्हें टोको, फिर मुझे रोकना, मुझे टोकना। राजनीति में ये आम बात है।
जब एक पार्टी दूसरे की चोरी पकड़ लेती है, तो दूसरी पार्टी अपनी गलती पर शर्मिंदा होने के बजाय आरोप लगाने वाले पर हमला कर देती है। कुछ घाघ राजनीतिबाज अतीत के उन पन्नों को खोल कर बैठ जाते हैं, जिनमें कभी उनके पुरखों को दूसरी पार्टी के पुरखों ने शायद सताया होगा। वो दलील देते हैं, कि इस पार्टी ने सदियों से उनकी पार्टी के लोगों को सताया है, इसका तो बदला ऐसे ही चुकता होगा। ये राजनीतिबाज अपने ही लोगों की भावनाओं से खेलते हैं। उन्हें अमीर-गरीब, बड़ा-छोटा, ऊँच-नीच जैसे शब्दों से उकसाते हैं, और कहते हैं कि तुम जो कर रहे हो, सही कर रहे हो। इन बड़े, अमीर, ऊँचे लोगों ने तुम्हें सताया है, अब तुम मुझे अपना राजा चुनो, अब मैं लूटपाट करूंगा और इन्हें दिखा दूंगा कि हम में भी दम है। बेचारे भोले लोग उनकी बातों में आ जाते हैं और अब उनके हाथों लुटने लगते हैं। पर उन्हें संतोष मिलता है कि अपने ही लूट रहे हैं। अपने तो अपने होते हैं।
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मैंने दो दिनों तक लिखा कि आजकल प्राइवेट अस्पताल के नाम पर संगठित लूट का कारोबार चल रहा है, तो कुछ लोगों ने घनघोर आपत्ति जताई। कहा कि क्या बाकी लोग ‘सत्य हरिश्चंद्र’ हैं? दुनिया में सब चोर हैं तो संजय सिन्हा डॉक्टरों पर ही उंगली क्यों उठा रहे हैं? कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि पहले मीडिया पर सवाल उठाइए, फिर इधर झाँकिए। कुछ लोगों ने पूछा है कि क्या डॉक्टर का परिवार नहीं होता है? क्या डॉक्टर के बच्चे स्कूल नहीं जाते? उनकी कमाई क्यों खल रही है? ढेरों सवाल हैं। ढेरों जवाब हैं।
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फिलहाल मुझे तो यही कहना है कि मान लिया कि बहुत से धंधों में चोरी है। बहुत से लोग गलत काम करते हैं। पर क्या इससे डॉक्टर मरीजों से जो बेइमानी करते हैं, वो सही साबित हो जाएगी? क्या दूसरी पार्टी चोर है, इसलिए पहली पार्टी को चोरी करने के छूट मिल जाती है? मीडिया में ढेरों बेइमान बैठे हैं, तो क्या मेरा ये कहने का हक ही खत्म हो जाता है कि किसी डॉक्टर जो मरीजों को लूटते हैं, उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।
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याद कीजिए विजय की माँ ने फिल्म दीवार के उस डॉयलाग पर क्या कहा था।
जब विजय ने पहले उन लोगों के दस्तखत माँगे थे, जिन्होंने उसकी कलाई पर लिख दिया था कि “मेरा बाप चोर है”, तो माँ ने कहा था कि जिन लोगों ने तुम्हारी कलाई पर ये लिखा था, वो तुम्हारे कोई नहीं थे। पर तुमने मेरा बेटा हो कर मेरे माथे पर क्यों लिख दिया कि मेरा बेटा चोर है?
ढैंग टड़ां…
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मैं वही लिखता हूँ, जो मुझे सही लगता है। आप भी मेरी पोस्ट पर वही प्रतिक्रिया देते हैं, जो आपको सही लगती है। मैं आपके लिखे का बुरा नहीं मानता।
लेकिन मैं एक पत्रकार भी हूँ। मुमकिन है आपने सिर्फ सुना हो, पर मैंने देखा है।
मैंने भोले-भाले मरीजों को इलाज के नाम पर अपने अस्पताल में भर्ती करा कर उनकी एक किडनी निकालते हुए डॉक्टरों को देखा है। आपने सिर्फ सुना होगा, पर मैंने देखा है। मैंने देखा है कि मरीज को दिल की बीमारी नहीं थी। लेकिन डॉक्टर ने उसे बाइपास सर्जरी कराने की सलाह दे दी थी। मेरे एक मित्र एक सुबह मेरे पास घबराए हुए आए थे कि कल रात मेरे सीने में दर्द हुआ था। मैं फलाँ अस्पताल में गया। उन्होंने ढेर सारे टेस्ट किया और बता दिया कि दिल के रास्ते को जाने वाली तीनों धमनियाँ बंद हो चुकी हैं। तुरंत बाइपास सर्जरी ही इलाज है।
मैंने उनसे कहा कि आप परेशान न हों। आप कल फिर उसी अस्पताल में जाइए और फिर से दुबारा वही टेस्ट कराइए। आप ये मत बताइएगा कि आपको दर्द हुआ था और इंश्योरेंस का तो नाम ही मत लीजिएगा। आप कहिएगा कि मैं यूँ ही जेनरल टेस्ट के लिए आया हूँ। और हाँ अपना नाम कुछ और बताइएगा, ताकि उन्हें पता न चले कि आप यहाँ से पहले टेस्ट करा गये हैं।
उन्होंने वही किया। दुबारा उसी अस्पताल में गए। दूसरा डॉक्टर मिला। उसने सारे टेस्ट किए। कुछ नहीं निकला। पाँच साल तो हो ही गये इस घटना को। अभी तक तो दुबारा छाती में दर्द भी नहीं हुआ। आपने नहीं देखा होगा, मैंने देखा है।
मेरे दफ्तर के एक कर्मचारी के मामा को रात में एक ट्रक वाले ने कुचल दिया। पुलिस वालों ने मामा को पास के प्राइवेट अस्पताल में पहुँचा दिया। मामा जी मर गये थे। पर अस्पताल वाले इलाज करते रहे। लाश रिश्तेदारों को तब दी, जब तीन लाख रुपये जमा कराये गये। मेरे दफ्तर के कर्मचारी ने कुछ पैसों की रियायत के लिए बहुत सिफारिश की, लेकिन क्योंकि डॉक्टर के बच्चे भी स्कूल जाते ही हैं, उनके घर में भी रोटी पकती ही है, सैलरी से इस देश में किसी का काम नहीं चलता तो डॉक्टर का भी क्यों चलना चाहिए, इसलिए मामा की लाश के बदले उन्होंने तीन लाख लिए, तो क्या गुनाह किया?
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आपको नहीं पता होगा, पर मुझे पता है कि प्राइवेट अस्पताल में मरीज कभी दिन में नहीं मरते। हमेशा रात में मरते हैं। दिन में अस्पताल होटल होता है। होटल में क्रंदन की गुंजाइश नहीं होती। इसलिए मरने वाला रात के सन्नाटे का इंतजार करता है। रात में ही रिश्तेदारों को लाश सौंपी जाती है। दिन में तो माहौल बनाया जाता है कि बहुत गंभीर स्थिति है। ईश्वर से प्रार्थना कीजिए। वेंटिलेटर पर रखा गया है। कुछ समझदार रिश्तेदारों को डॉक्टर इशारा भी कर देते हैं कि बस यही दुआ कीजिए कि आज की रात निकल जाए!
जब डॉक्टर आज की रात निकलवाएँ तो समझिए कि उस रात की सुबह नहीं होगी।
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मैं पत्रकार हूँ। कुछ पत्रकार चोर भी होते होंगे। क्योंकि पत्रकार भी चोर होते हैं, इसलिए उन्हें दूसरों की चोरी की कहानी सुनाने का हक नहीं है। आप सही कहते हैं। पर मैं चोर नहीं हूँ, इसलिए मैं डंके की चोट पर रोज सुबह उठ कर जो सही लगता है, लिखता हूं।
(देश मंथन 09 फरवरी 2016)