जहाँ उम्मीद, वहीं जिन्दगी, जहाँ प्यार, वहीं संसार

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

आपने ये पढ़ा होगा कि ‘जहाँ उम्मीद है, वहीं जिन्दगी है’। आपने सुना होगा कि ‘जहाँ प्यार होता है, वहीं संसार होता है’।

आपने बचपन में ध्रुव तारा की कहानी भी सुनी होगी। आपने न जाने कितने नायकों की कहानियाँ सुनी होंगी। आपने सिनेमा के रूपहले पर्दे पर हीरोगीरी भी देखी होगी। ऐसी कहानियाँ सुन कर, पढ़ कर और पर्दे पर देख कर आपने न जाने कितनी बार तालियाँ भी बजाई होंगी। 

पर क्या आपने कभी सचमुच के हीरो को देखा है? 

क्या आप कभी उस हीरो से मिले हैं, जिसकी कहानी सुन कर आप कह उठें कि सचमुच जहाँ उम्मीद है, वहीं जिन्दगी है।

आइए आज मैं, आपको एक रीयल हीरो से मिलवाता हूँ। पत्रकारिता में होने की वजह से तो मुझे सिनेमा के हीरो से मिलने के हजार मौके मिलते हैं, पर पिछले दिनों अपनी जबलपुर यात्रा में मैं एक सच्चे हीरो से मिल कर आया हूँ। जब से उनसे मिला हूँ, मैं सबसे यही कहता फिर रहा हूँ कि इस संसार में मोहब्बत से बढ़ कर कुछ भी नहीं। प्रेम और उम्मीद में वो शक्ति है, जिससे आदमी हर जंग जीत सकता है। 

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अब सीधे-सीधे आता हूँ आज की कहानी पर। आज आपको मिलवाता हूँ एक ऐसे व्यक्ति से जिससे मिलने के बाद आपके कदम थम जाएँगे। आप सोचने पर मजबूर हो जाएँगे कि क्या सचमुच ऐसा होता है? 

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आपको बता चुका हूँ कि पिछले दिनों मैं जबलपुर गया था। वहाँ मेरी मुलाकात हुई Ganore Yogesh जी से। 

बेहद शांत और मुस्कुराता हुआ चेहरा। बेहद गंभीर आवाज और सिर से पाँव तक प्रेम से भरा व्यक्तित्व। योगेश गनोरे जी से मैं मिला तो मुझे बताया गया कि इन्होंने बहुत साल पहले पर्यावरण की रक्षा के लिए यह संकल्प लिया था कि वो कुछ करेंगे। 

कुछ करेंगे – इस सोच के साथ ही इन्होंने अपना एक ‘कदम’ आगे बढ़ाया बीजारोपण की दिशा में। 

उस एक कदम को साथ मिला कई कदमों का और धीरे-धीरे कदम संस्था की नींव पड़ गई। एक ऐसी संस्था, जो पिछले कई वर्षों से हर रोज एक पौधा लगाती है। अब तक न जाने कितने हजार पौधे ये संस्था लगा चुकी है। 

मैं जब गनोरे जी से मिला, तो मुझे बहुत खुशी हुई ये जान कर कि इस संसार में ऐसे लोग भी हैं, जो सामाजिक कार्यों के लिए अपना पूरा जीवन खर्च कर देते हैं। 

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रुकिए। 

आज मैं आपको पौधा रोपण की कहानी नहीं सुनाने जा रहा। आज मैं आपको जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ, उसे सुन कर आप ठहर जाएँगे। आपके कानों में तालियाँ गूँजने लगेंगी। आप कह उठेंगे, वाह! संजय सिन्हा, आज तुमने सचमुच एक असली हीरो से मिलवा दिया।

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मैं जबलपुर के एक रेस्त्रां में लंच टेबल पर बैठा था योगेश गनोरे जी के साथ। 

गनोरे जी ने मुझसे पूछा कि मेरे मन में ये बात कैसे आयी कि फेसबुक के आभासी संसार को मैं एक वास्तविक संसार में बदल दूँ। मैं ऐसा कैसे सोच पाया कि इस काल्पनिक दुनिया के लोगों को आपस में मिलने के लिए उकसाया जाए। 

मैंने उन्हें पूरी कहानी संक्षेप में सुनायी कि ढाई साल पहले अपने छोटे भाई के निधन के बाद मैं जिन्दगी से टूट रहा था, तभी मैं फेसबुक के संसार से जुड़ा और इस कल्पनालोक में मैंने अपने रिश्ते तलाशने शुरू कर दिए। मुझे यहाँ भाई मिला, बहनें मिलीं, माँ मिलीं और मैं उसी को सच मान कर जी उठा। फेसबुक के इस काल्पनिक संसार से जुड़ने से पहले हमारी हर सुबह हमारे ही करुण क्रंदन से भरी होती थी। मैं सुबह उठ कर अपने भाई को याद करता, मेरी पत्नी अपने देवर को याद करती और हम रोने लगते। हमें लगने लगा था कि जिन्दगी धोखा है। 

पर जब मैं फेसबुक के इस काल्पनिक संसार से जुड़ा और यहाँ रिश्तों के कारवाँ बनने लगे, तो मेरी सुबह पोस्ट लिखने में गुजरने लगी और मेरी पत्नी की मेरी पोस्ट और उस पर आए कमेंट को पढ़ने में। हमारी दुनिया बदलने लगी। 

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गनोरे जी ने मुझसे पूछा कि क्या मेरी पत्नी मेरे इस काल्पनिक संसार में मुझे जीने से रोकती नहीं? आम तौर पर घरों में ऐसे आभासी संसार से पति या पत्नी के जुड़ने पर बहुत बखेड़ा होता है। 

मैंने कहा कि मेरी पत्नी मुझे नहीं रोकती। वो मेरी खुशी में खुश होती है। मैं उसकी खुशी में खुश होता हूँ। हम दोनों एक प्रतिबद्धता के साथ एक दूसरे से जुड़े थे। मैंने उन्हें अपने विवाह की कहानी भी सुनायी। 

उनके सभी सवालों के जवाब देता हुआ मै उनसे भी पूछ बैठा कि आपने पौधों के लिए इतना कमिटमेंट कैसे पाल लिया?

गनोरे जी पल भर को रुके। फिर उन्होंने कहा कि उनका जीवन भी प्रतिबद्धता से भरा रहा है। 

अब आगे की कहानी मैं नहीं सुनाऊँगा। आगे की पूरी कहानी आप खुद गनोरे जी से सुनें।

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“मैंने सोच लिया था कि मैं अपना जीवन सामाजिक कार्य करते हुए ही गुजारूँगा। मेरी दिलचस्पी सामान्य जिन्दगी जीने में कभी नहीं थी। मेरे भीतर ऐसी कोई चाहत नहीं थी कि मेरे पास बंगला हो, गाड़ी हो और मैं बेमकसद जिन्दगी को जीता हुआ चला जाऊँ। 

अपनी इसी सोच के साथ मैंने एक कदम वृक्षारोपण की ओर बढ़ाया था, जो आज इतना बड़ा परिवार बन चुका है। मैंने सोचा नहीं था कि इतना सब हो पाएगा। पर मेरे मन में शुरू से था कि कुछ अलग करना है। ईश्वर ने जो जीवन दिया है, उसे सिर्फ अपने जीने में जाया नहीं करना है।”

मैं उनकी बातें ध्यान से सुन रहा था। 

वो कह रहे थे, “मैंने बहुत पहले तय कर लिया था कि मैं विवाह नहीं करुँगा। पर एक दिन मेरी मुलाकात कहीं एक ऐसी लड़की से हुई जिसे ब्रेन ट्यूमर था। वो कैंसर में बदल रहा ब्रेन ट्यूमर था। डॉक्टरों ने कह दिया था कि ये बीमारी आखिरी स्टेज में है।

मैं उस लड़की से मिला। मैंने उसकी आँखों में देखा कि मौत के बेहद करीब पहुँच चुकी उस लड़की की आँखों में जीने की चाहत है। पर घर-परिवार के पास उसके इलाज के साधन मौजूद नहीं थे।

मैं उससे कई बार मिला। वो लड़की, जो मौत के साथ से लड़ रही थी, उसके मन में एक इच्छा थी कि काश उसका भी विवाह हुआ होता। काश! वो भी किसी की पत्नी बन पायी होती। पर ईश्वर के फैसले के आगे वो मजबूर थी। 

ऐसे में एक दिन मैंने ही तय कर लिया कि मैं उसके साथ विवाह करके उसकी ये मुराद पूरी करूँगा। साथ ही एक कोशिश करूँगा कि जबलपुर से बाहर उसका कहीं बड़े अस्पताल में इलाज हो सके। 

फिर मैंने उससे विवाह किया। सबने मुझे समझाने की कोशिश की। पर मुझे लगा कि मुझे ऐसा ही करना चाहिए। मैंने उस लड़की से विवाह कर लिया और उसे इलाज के लिए चेन्नई ले गया। वहाँ डॉक्टरों ने देखा, कहा कि उम्मीद बहुत कम है। 

पर मैं अड़ा रहा कि एक कोशिश करके देखिए। 

डॉक्टरों ने मेरी पत्नी की आँखों में जिन्दगी के प्रति चाहत देखी और उसका ऑपरेशन कर दिया। 

संजय जी, आज मेरी पत्नी बिल्कुल ठीक है। शादी के सत्रह सालों बाद मेरी पत्नी माँ बनी। 

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खाने की टेबल पर प्लेट पड़ी की पड़ी रह गयी। 

मैं सोच में डूब गया कि उम्मीद और सार्थक सोच से आदमी क्या नहीं कर सकता? आदमी क्या नहीं पा सकता?

जिस लड़की की जिन्दगी के पौधे को डॉक्टरों ने कह दिया था कि वो सूखने वाला है, उसे योगेश गनोरे जी के प्यार ने एक वृक्ष में बदल दिया। डॉक्टर हैरान होते हैं, जब गनोरे जी की उम्मीद के पौधे को आँखों के आगे फलते हुए देखते हैं। अब तो उनके पास भी सिर्फ यकीन करने के सिवा कोई और चारा नहीं कि जहाँ उम्मीद होती है, वहाँ जिन्दगी होती है। जहाँ प्यार होता है, वहीं संसार होता है।

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एक पल और रुकिए। मोहब्बत की इस कहानी की एक पंक्ति अभी बाकी है।

गनोरे जी टीवी नहीं देखते। उनके घर टीवी नहीं है। 

जानते हैं क्यों? 

क्योंकि डॉक्टरों ने उनकी पत्नी को टीवी देखने से मना किया था। बहुत साल पहले कहा था कि इससे उनकी आँखों और दिमाग पर जोर पड़ेगा, जो उनके लिए ठीक नहीं। पत्नी को तकलीफ न हो, इसलिए योगेश गनोरे जी ने टीवी देखना छोड़ दिया।    

(देश मंथन, 29 दिसंबर 2015)

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