संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
‘फेरिहा’ एक चौकीदार की बेटी का नाम है। टर्की में रहने वाली फेरिहा मेहनत और लगन से अच्छे कॉलेज में दाखिला पा लेती है और खूब पढ़ना चाहती है। लेकिन उसके पिता को उसकी शादी की चिंता है। उन्होंने अपनी बिरादरी और हैसियत जैसे एक परिवार के लड़के को फेरिहा के लिए पसंद कर रखा है। पिता की निगाह में वही लड़का फेरिहा के लिए उपयुक्त है। वो जानते हैं कि वो लड़का भी फेरिहा को पसंद करता है, उसकी सुंदरता पर मरता है।
पिता अपनी बेटी को किसी और से नहीं मिलने देते, उन्हें लगता है कि बेटी अगर किसी लड़के से मेलजोल बढ़ाएगी, दोस्ती करेगी तो उसके कदम लड़खड़ा सकते हैं और वो जो करेगी उससे पूरे परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी।
पिता फेरिहा पर कड़ी नजर रखते हैं। फेरिहा सुंदर है, स्मार्ट है और ईमानदार भी है। इत्तेफाक से कॉलेज में उसकी मुलाकात एक ऐसे लड़के से हो जाती है, जो बहुत हैंडसम और अमीर है। कॉलेज की सारी लड़कियाँ उस पर मरती हैं, लेकिन उस लड़के को फेरिहा अच्छी लगती है।
ख़ैर, मेरा मकसद आज फेरिहा की कहानी सुनाना नहीं है। आप इस सीरियल को जिन्दगी चैनल पर देखते होंगे। मुझे यह सीरियल बहुत पसंद है। मैं पिछले कई दिनों से लगातार इसे देख रहा हूँ। आजकल मैं इस सीरियल की कहानी में अटका हुआ हूँ।
कहानी अटकी है लड़की के कॉलेज वाले प्यार और पिता की पसंद के लड़के के बीच।
क्या होगा फेरिहा का? क्या फेरिहा अपने पिता की उम्मीदों की खातिर उस लड़के से शादी कर लेगी, जो पिता की निगाहों में उनकी हैसियत से ऊपर का है और उनकी बिरादरी का है। या फिर फेरिहा कॉलेज में मिली अपनी चाहत से रिश्ता जोड़ेगी?
आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा को क्या हो गया है? एक टीवी सीरियल की कहानी को इतनी गंभीरता से ले रहे हैं?
क्या हुआ संजय सिन्हा? दुनिया में और भी गम हैं मुहब्बत के सिवा।
क्या आप जानते हैं कि मैं इस सीरियल पर इतनी गंभीरता से क्यों चर्चा कर रहा हूँ?
नहीं जानते?
दरअसल मैं कई असली फेरिहाओं को जानता हूँ, जिनके पिताओं ने अपनी आर्थिक मजबूरी, पारिवारिक मजबूरी और इज्जत की खातिर अपनी बेटियों को उनके प्यार से दूर कर उन लड़कों से ब्याह दिया, जो उन्हें अपने से ज्यादा हैसियत वाले और बेटी को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने वाले लगते रहे।
मैं ऐसी बहुत सी फेरिहाओं से मिला हूँ, जो अपने पिता की निगाह में संसार की सबसे संतुष्ट और खुश लड़कियाँ हैं और अपने पतियों के बच्चों की माँ भी बन गयी हैं।
सब कुछ वैसा ही चल रहा है, जैसा पिता ने चाहा था।
मैं जिन फेरिहाओं को जानता हूँ उनके पिताओं ने कभी अपनी बेटियों के कमरे झाँक कर ये देखने की कोशिश ही नहीं की कि उनकी फेरिहाएँ हर रात कैसे दम तोड़ती हैं और हर सुबह चेहरे पर एक नई मुस्कुराहट के साथ फिर खड़ी हो जाती हैं। वो फेरिहाएँ जब हमसे और आपसे मिलती हैं, तो रात में आँसुओं से धुले अपने काजल को करीने से लगा कर मिलती हैं।
मैं अगर कहानी लिखने बैठा तो न जाने कितनी फेरिहाओं की कहानी मैं लिख दूँगा।
बहुत-सी फेरिहाओं के लिए मैं कुछ नहीं कर पाया। पर ढेर सारी फेरिहाएँ मुझसे अपनी उन कहानियों को साझा करती हैं, इससे ज्यादा वो कर भी क्या सकती हैं?
आज मैं ज्यादा नहीं लिख पाऊँगा। बस मैं इंतजार कर रहा हूँ कि असल जीवन में न सही, उस सीरियल वाली फेरिहा को उसका प्यार मिल जाए। वो मिल जाए, जिसके साथ वो जब सुबह जागे, तो उसे मुस्कुराने का अभिनय न करना पड़े, वो उसके साथ सारी रात मुस्कुराती हुई रहे। जब वो सारी रात मुस्कुराएगी तो सुबह उसे मुस्कुराने का अभिनय नहीं करना पड़ेगा।
कहानी की फेरिहा तो फिलहाल टीवी पर है। अगर आपकी भी कोई फेरिहा हो, तो आप उसके लिए दुआ कीजिएगा कि उसे उसकी पसंद का साथी मिले, न कि पिता की पसंद का।
एक और गुज़ारिश
अपनी-अपनी फेरिहाओं को संदेह की नजर से मत देखिए। वो ऐसा कुछ नहीं करतीं, जिनसे आपकी और आपके परिवार की इज्जत को बट्टा लगता है।
उसे जीने दीजिए। उसे उड़ने दीजिए।
मेरा यकीन कीजिए, बेटियाँ बाप को कभी नीचा नहीं दिखातीं। आप एक बार भरोसा करना सीख जाएँगे, तो आप भी उसके साथ उड़ने लगेंगे।
(देश मंथन, 23 अक्तूबर 2015)