विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
आसमान में उड़ना भला किसे अच्छा नहीं लगता। हर कोई सोचता है कि काश उसके पास भी पंछियों की तरह परवाज होते और उड़ पाता। पर देश की आबादी के 2% लोग भी जीवन में उड़ पाते हैं। शायद नहीं। आप उड़कर दिल्ली से हैदराबाद दो घंटे में पहुँच सकते हैं पर ट्रेन से 20 घंटे में। पर उड़ना हमेशा महँगा सौदा रहा है। पर हम उस आदमी को कैसे भूल सकते हैं जिसने मध्य वर्ग के लोगों को उड़ने का सपना दिखाया।
कैप्टन जीआर गोपीनाथ ने जब एयर डेक्कन शुरू की तो कई लोगों को अचरज हुआ। पर सस्ती विमान सेवा एयर डेक्कन खूब हिट रही। साल 2003 में एयर डेक्कन की सेवा शुरू हुई तो लोगों ने हाथों हाथ लिया। ए 320 की 21 विमानों की खेप के साथ शुरू हुई सेवा 2011 तक अनवरत चलती रही। एयर डेक्कन के विमान पर आरके लक्ष्मण के प्रसिद्ध कार्टून चरित्र आम आदमी की तस्वीर भी लगी थी। बाद में एयर डेक्कन की विमान सेवा किंगफिशर में समाहित हो गयी।
एयर डेक्कन ही वह कंपनी थी जिसके साथ ही मुझे पहली बार हवा में उड़ने का मौका मिला। मैं ही क्या हजारों लोग की पहली बार उड़ने की तमन्ना एयर डेक्कन ने पूरी की होगी। साल 2007 के अगस्त महीने के आखिरी दिनों की बात है। तब में हैदराबाद में ईटीवी के मध्य प्रदेश चैनल में कार्यरत था। अचानक एक दिन लाइव इंडिया में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार उदय चंद्र सिंह से बात हुई, उन्होने तुरन्त दिल्ली आकर इंटरव्यू देने को कहा। तुरन्त पहुँचने के लिए फ्लाइट ही विकल्प हो सकता था। मैं एक साइबर कैफे में गया हैदराबाद दिल्ली फ्लाइट सर्च किया। इसके बाद कंपनी के कॉल सेंटर पर फोन किया। तब ऑनलाइन बुकिंग तो मुश्किल थी। पर कॉल सेंटर के एग्जक्यूटिव ने कहा, आपका टिकट क्रेडिट कार्ड से मैं फोन पर ही बुक कर देता हूँ। टिकट की साफ्ट कॉपी तुरंत ईमेल पर भेज दूँगा। मेरे पास आईसीआईसीआई बैंक का क्रेडिट कार्ड था। टिकट पाँच मिनट में बन गया।
अगले दिन सुबह 5 बजे की फ्लाइट थी दिल्ली के लिए। हैदराबाद का पुराना हवाई अड्डा बेगमपेट में था। अब तो नया विशाल हवाई अड्डा शमशाबाद में बन गया है। मैं रात को 12 बजे ही एयरपोर्ट पहुँच गया। पर वहाँ पता चला कि बोर्डिंग पास एक घंटा पहले मिलेगा। तब एयरपोर्ट के अंदर नहीं जा सकते। बाहर बैठने की जगह नहीं थी। यूँ ही सड़कों पर घूमते हुए 4 घंटे गुजारे। वहाँ काफी मच्छर भी काट रहे थे। खैर चार बजे सुबह हमारे लिए एयरपोर्ट के दरवाजे खुले। बोर्डिंग पास प्राप्त करने के बाद थोडा इंतजार। फिर हमें एक बस में बिठाकर दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाली ए-320 विमान के पास भेजा गया। विमान के अंदर सीटें किसी लग्जरी बस जैसी ही थीं। ज्यादा मोटा आदमी हो तो उसे ए 320 विमान की सीटों पर बैठने में दिक्कत ही होगी।
नियत समय पर विमान रनवे पर कुलांचे भरने लगा। कुछ किलोमीटर आगा पीछा करने के बाद हवा में ऊपर उठने लगा। और हमारे कानों खदकने जैसी आवाजें होने लगी। मैं परेशान साथी लोगों ने बताया कि ऐसा किसी-किसी को होता है। कई लोगों को उल्टियाँ भी होती हैं। पर मुझे नहीं हुई। एयर होस्टस ने सुरक्षा को लेकर प्रस्तुति दी। कुछ घंटे बाद पायलट ने बताया कि हम भोपाल के आसमान पर हैं। फिर पता चला कि ग्वालियर के आसमान हैं। दो घंटे बाद हमें दिल्ली विमान की खिड़की से दिल्ली शहर दिखाई देने लगा था। उसके बाद कई बार उड़ने का मौका मिला, पर पहले प्यार और पहली बरसात की तरह पहली उड़ान नहीं भूलती।
(देश मंथन 01 सितंबर 2015)