संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
हमारे शहर में फिल्म लगी थी रोटी, कपड़ा और मकान। रिक्शा पर लाऊडस्पीकर लगा कर एक आदमी आता और माइक पर अनाउंस करता, आपके शहर के रूपम सिनेमा हॉल में लगातार पच्चीस हफ्तों से धूम मचा रहा है, ‘रोटी, कपड़ा और मकान’। वो इतना बोलता और फिर लाउडस्पीकर पर गाना बजता— “तेरी दो टकिए की नौकरी, मेरा लाखों का सावन जाए…।”
हम बच्चे रिक्शा के पीछे दौड़ते। वो आदमी पीछे की ओर एक पर्ची फेंकता, जिसमें फिल्म के एक-दो गाने और मनोज कुमार की तस्वीर छपी होती। ऊपर लिखा होता ‘सिल्वर जुबली’।
आदमी नाक से अजीब-सी आवाज में फिर अनाउंस करता, “भाइयों एवं बहनों, आपके शहर के रूपम सिनेमा के जगमगाते पर्दे पर लगातार पच्चीस हफ्तों से धूम मचा रहा है, महान पारिवारिक चित्र, रोटी-कपड़ा और मकान, और फिर गाना बजता “हाय-हाय महँगाई, तू कहाँ से आई…।”
हमारे लिए फिल्म का प्रचार करने वाले का आना उस समय फुल इंटरटेनमेंट होता था। हम में होड़ होती कि किसके पास ज्यादा पर्चे जमा हुए।
अब आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा कहाँ का तीर कहाँ छोड़ने चले आए हैं। वैसे भी कई लोग कहने लगे हैं कि मैं पॉलिटिकल पोस्ट लिखने लगा हूँ। आज भी मुझ पर ये लांछन लग ही सकता है क्योंकि मैं महँगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार की बातें कर रहा हूँ।
ये बातें तो आम जनता को करनी ही नहीं चाहिए। ये तो नेताओं के कहने के लिए हैं। नेता हर पाँच साल में आएंगे और यही कहानी सुना कर जनता को फिर सुला देंगे। जनता के लिए ये सारी बातें लोरी की तरह हैं।
खैर, इतनी बातें करने का कोई फायदा नहीं। बात निकली है सिल्वर जुबली की, तो मुझे इसी पर टिके रहना चाहिए। मैं बता रहा था कि फिल्म की सिल्वर जुबली थी।
पता नहीं क्यों पर तब से मुझे ये पच्चीस का आंकड़ा बहुत पसंद है।
आज मैं इस बात की चर्चा नहीं करने जा रहा कि तब मैं फिल्म क्यों नहीं देख पाया था, और जब बहुत दिनों बाद मैं यह फिल्म देख रहा था तब मेरे मन में सबसे बड़ा डर क्या था। कभी न कभी आपको ये जरूर बताऊंगा कि कुछ फिल्मों को देखते हुए मेरे मन में अजीब-अजीब से सवाल उठते थे। फिल्म रोटी, कपड़ा और मकान देखते हुए भी मेरे साथ ऐसा ही हुआ था।
पर आज ये बातें नहीं। आज सिर्फ सिल्वर जुबली की बातें।
सिल्वर जुबली की बातें क्यों?
अब आपसे क्या छुपाना? आप तो मेरे अपने हैं। दरअसल, मैंने दो दिन पहले ही देख लिया था कि मेरे पाँच हजार मित्रों के बाद फॉलोअवर की संख्या पच्चीस हजार के आंकड़े को पार कर गयी है। मेरे मन में बहुत दिनों से था कि जिस दिन ये आंकड़ा पच्चीस हजार को छुएगा, मैं माइक लगा कर रिक्शे पर घूमता हुआ आपके सामने आऊंगा और आपको बताऊंगा कि संजय सिन्हा परिवार ने एक नये सिरे से फिर पच्चीस हजार का आंकड़ा छुआ है।
मुमकिन है कि बहुत से लोगों के पास ये आंकड़ा हो। पर किसी के पास इतना बड़ा परिवार नहीं। ये गौरव सिर्फ हमें हासिल है कि हमारे फेसबुक वाल से जुड़े सभी परिवार के सदस्य हैं। इसमें कोई रूठता है, कोई मनाता है। कोई शिकायत करता है, कोई शिकायत सुनता है। कुल मिला कर हमारा ये परिवार फुल फिल्मी परिवार है। मेरे पास कोई संदेश भेजता है कि आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया, आपसे कुट्टी। फिर थोड़ी देर में उधर से खुद-ब-खुद हंसता हुआ स्माइली चला आता है। यही होता है परिवार।
यहाँ सबका दिल सबके लिए धड़कता है। यहाँ चुगली भी चलती है, तारीफ भी। यहाँ एक दूसरे की खिंचाई भी चलती है, एक दूसरे पर मर-मिटने की कसमें भी खाई जाती हैं। यहाँ लोग अपनी निजी से निजी समस्या भी खुल कर साझा करते हैं, विरोध का झंडा बुलंद करते हैं, और जरूरत पड़ने पर जान लुटाने को भी तैयार रहते हैं।
संजय सिन्हा का परिवार आपके प्यार और स्नेह की खाद से बहुत फल-फूल रहा है। बस आज आपको इतना ही बताना था। आज आपको बताना था कि पच्चीस हजार वाला हमारा परिवार दुनिया का सबसे बड़ा परिवार है। और सबसे कमाल की बात ये है कि काल्पनिक संसार से निकल कर हम वास्तविकता के धरातल पर भी आ चुके हैं। हम लगातार दो सालों तक मिल चुके हैं। और इस साल हम जबलपुर में 13 नवंबर, रविवार के दिन फिर मिल रहे हैं। आपको एडवांस में बता दें कि इस बार 14 नवंबर यानी सोमवार को भी सरकारी छुट्टी है।
हल्की सर्दी का मौसम होगा। चार महीने पहले टिकट की बुकिंग शुरू होती है और जुलाई 13 टिकट कटने शुरू हो जाएंगे। आप लोग अभी से अपना कार्यक्रम तय कर लीजिए।
उम्मीद कीजिए कि तब तक हमारे परिवार का ये आंकड़ा पच्चीस हजार को पार कर पचास हजार को छूने लगे।
जहां उम्मीद है, वहीं जिन्दगी है।
(देश मंथन 01 जुलाई 2016)