प्रेम करने वाला सबको संग लेकर चलते हैं

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी नौकरी पहले लगी थी, पत्रकारिता की पढ़ाई में दाखिला बाद में मिला था। जिन दिनों मैं पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था, एक लड़की से मेरी दोस्ती हुई। मेरी तरफ से दोस्ती सिर्फ दोस्ती तक सीमित थी, लेकिन अक्सर लड़कियाँ दोस्ती, प्रेम और शादी तीनों की चाशनी बना लेती हैं। उसने भी ऐसा ही किया और जिस दिन कॉलेज में मेरा आखिरी दिन था वो मेरे पास शादी का प्रस्ताव लेकर पहुँच गयी। 

अजीब स्थिति थी। साल भर जिसके साथ रोज कॉलेज गया, क्लास में बैठा, उसने शादी का प्रस्ताव सामने रख दिया तो न हाँ कहते बना, न ना। पर मैंने हिम्मत करके कह दिया कि तुम अपना घर छोड़ कर मेरे घर चली आओ, मैं शादी कर लूँगा। पर वो नहीं मानी। उसने कहा कि घर में माता-पिता को इस शादी के लिए राजी करेगी। 

मुझे इस बात पर आपत्ति नहीं थी। पर मैंने पूछा कि अगर तुम उन्हें राजी नहीं कर पायी तो? 

“राजी नहीं होने का सवाल ही नहीं। फिर भी मैं अपनी कोशिशों में हार गयी, तो आगे देखेंगे।”

“एक बात मैं स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि तुम अगर मेरे घर चल कर आ जाओगी, तो मैं तुम्हें पूरी दुनिया से लड़ कर अपना लूँगा। लेकिन मैं तुम्हारे घर आकर फिल्मी हीरो की तरह तमाशा नहीं करूँगा। मतलब अपने घर की लड़ाई तुम्हें लड़नी होगी, मेरे घर की मैं लड़ूँगा।”

इस स्पष्ट समझौते पर हम अपने-अपने घर लौट गये। 

***

वो लड़की दुबारा मुझे नहीं मिली। कभी नहीं। मैंने सुना कि उसने घर में अपने प्रेम की चर्चा की तो घर वालों ने उसे कमरे में बंद कर दिया। इधर-उधर से खबरें मुझ तक आतीं, पर मैं खुद कभी उसके घर नहीं गया। मुझे उसकी चिंता भी होती थी। इसी बीच किसी ने मुझे बताया कि उसकी तबियत खराब है, और फलाँ डॉक्टर के पास उसका इलाज चल रहा है। इत्तेफाक से वो डॉक्टर मेरे भी परिचित थे। 

एक दिन मैं उस डॉक्टर के पास गया और मैंने उनसे कहा कि वो लड़की मुझसे प्रेम करती है। हम शादी की बात कर रहे थे, पर वो अपने घर वालों को राजी कर के ही आगे बढ़ेगी। मैंने उससे कहा था कि अपना घर छोड़ कर चली आओ, पर वो कहती है कि माँ-बाप को राजी किए बिना नहीं आएगी। 

डॉक्टर मेरी ओर देख कर मुस्कुराने लगा। 

मैंने उससे कहा कि वो मेरी तुलना में अपने माँ-बाप से अधिक प्यार करती है, इसलिए वो उन्हें छोड़ कर नहीं आ रही। अगर वो खुद नहीं आई, तो हमारी शादी नहीं होगी। 

डॉक्टर ने कहा कि वो प्रेम करती है। वो तुमसे प्रेम करती है, इसीलिए वो अपना घर छोड़ कर तुम्हारे पास नहीं आई।

मेरे लिए डॉक्टर का ऐसा कहना बहुत बड़ी पहेली थी। वो मुझसे प्रेम करती है, इसीलिए वो अपना घर नहीं छोड़ पा रही है, यह मेरे लिए हैरान करने वाली बात थी। 

***

खैर, वो अपने माँ-बाप को राजी नहीं कर पाई और हमारी शादी नहीं हुई। 

पर मेरे मन में डॉक्टर की बात घूमती रहती थी कि वो प्रेम करती है इसीलिए घर नहीं छोड़ पाई। 

मैंने बहुत दिनों बाद डॉक्टर से उसके ऐसा कहने की वजह पूछी तो उसने कहा कि माँ-बाप को राजी किए बिना ऐसा कदम नहीं उठाने की उसकी प्रतिज्ञा में ही प्रेम छिपा था। वो जन्म देने वाले अपने माँ-बाप को भूलने को तैयार नहीं थी क्योंकि वो उनसे भी प्रेम करती थी। 

प्रेम किसी व्यक्ति से नहीं होता, प्रेम एक स्वभाव होता है। क्योंकि वो माँ-बाप से प्रेम करती थी, इसलिए मैं कह सकता हूँ कि वो तुमसे भी प्रेम करती थी। मुमकिन है, माँ-बाप अपने पद, प्रतिष्ठा और पैसों के चक्कर में उससे उतना प्रेम न करते हों, इसलिए उन्होंने उसके प्रेम की परवाह नहीं की और तुमसे मिलने तक को राजी नहीं हुए। पर वो लड़की तुमसे प्रेम करती थी। वो माँ-बाप को छोड़ कर तुम्हारे पास नहीं आई। तुमसे शादी हो जाती तो वो तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाती। यही प्रेम है। जिसमें छोड़ने की प्रवृति नहीं होती, वही प्रेम को जीता है। जो प्रेम को जीता है, उसे पाने की चाहत भले हो, पर वो पहले को भूल कर नहीं, उसे संग लेकर चलता है।

***

आप सब मेरे परिजन हैं। मैं फख्र से कह सकता हूँ कि मेरे पास आज पच्चीस हजार से ज्यादा लोगों का भरा-पूरा परिवार है। मैं आप सबसे प्रेम करता हूँ। मैं आप में से किसी एक को छोड़ने को तैयार नहीं हूँ। 

पर मैं अपने उस छोटे भाई से भी बहुत प्रेम करता हूँ, जो तीन साल पहले मुझे छोड़ कर दुनिया से चला गया था। 

कल मैंने पोस्ट में लिखा था कि मैं अपने भाई के चले जाने के अवसाद से बाहर नहीं निकल पा रहा। ऐसे में मैं अपनी शादी की सालगिरह तक ठीक से नहीं मना पाता, तो किसी ने कमेंट में लिखा कि मैं अवसाद से निकलना चाहता ही नहीं। मैं अपने भाई को भूलना चाहता ही नहीं। लिखने वाले ने लिखा कि मैंने अपने शोक के चारों ओर सम्मान की दीवार खड़ी कर ली है और अब मैं उसे जीने लगा हूँ। 

मैंने उस कमेंट को सौ बार पढ़ा। मन ही मन सोचता रहा। क्या मुझे अपने मर गये भाई को भूल जाना चाहिए? क्या मुझे उसके प्रेम को भूल जाना चाहिए? 

सोचिए, सौ बार सोचिए। मैं अपने भाई की तलाश में आप तक पहुँचा हूँ। मैं रिश्तों की उस गर्मी को जीने के लिए आपके पास आया हूँ। मैं उस प्रेम को महसूस करता हुआ आपके प्रेम में डूबा हूँ। 

आप कह रहे हैं कि मैं उस प्रेम को भूल जाऊँ। 

सोचिए, मैं अनजान से अनजान लोगों से क्यों इतनी मुहब्बत कर बैठता हूँ। मैं इसलिए ऐसा कर बैठता हूं क्योंकि मैं अपने मर चुके उस भाई से आज भी उतना ही प्यार करता हूँ, जितना उसके जिन्दा रहते हुए करता था। मैं इसलिए अनजान से अनजान आँखों के आँसू को आत्मसात कर लेता हूँ, क्योंकि मैं अपने मर चुके भाई की तकलीफ को खुद में समाहित कर चुका हूँ। क्योंकि मैं उससे प्यार करता हूँ, इसीलिए मैं किसी से प्यार करता हूँ। मैं उसे भूल जाऊँगा, फिर किसी को भूल जाऊँ, इसमें क्या बड़ी बात होगी। 

***

उस लड़की से मेरी शादी नहीं हुई। मुझे नहीं पता कि वो कहाँ है, कैसी है। पर इतना पता है कि वो जहाँ भी होगी, जिसके साथ भी होगी, वो उसके प्रेम को शिद्दत से जी रही होगी। प्रेम मन का एक भाव है, जिसमें आदमी अपने आसपास अवसाद की नहीं प्रेम की दीवार खड़ी करता है। जो लोग प्रेम में बिछड़ गए लोगों को भूल जाते हैं, वो लोग समझदार होते हैं। और जो समझदार होते हैं, वो प्रेम नहीं कर सकते। 

प्रेम में सबसे खतरनाक होता है, आदमी का समझदार हो जाना।      

‪(देश मंथन, 22 अप्रैल 2016)

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