‘उम्मीद’ की ज्योति जलाएं

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी आज की पोस्ट पढ़ने से पहले आप उस तस्वीर को देखिएगा, जिसमें लड़की ने अपने मुँह पर नकाब बाँध रखा है। 

मैं ज्यादा लंबी चौड़ी भूमिका नहीं बनाना चाहता, इसलिए सीधे-सीधे आपको बता देता हूँ कि लड़की का नाम ज्योति है और ये बिहार में मोतिहारी की रहने वाली है। इस मासूम बच्ची ने अपना चेहरा ढक रखा है, क्योंकि कुछ साल पहले किसी ने इसके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया था। 

क्या विडंबना है? 

जिसे अपना चेहरा छिपाना चाहिए, वो खुलेआम घूमता है। जिसे खुलेआम घूमना चाहिए, उसने चेहरा छिपा रखा है। मतलब कसूर करने वाला बेखौफ है, बेकसूर खौफजदा है। 

ज्योति एक छोटी सी बच्ची है।

आप शायद ज्योति को नहीं जानते हों, पर मैं जानता हूँ। पिछले साल मैं ‘जिन्दगी’ के विमोचन पर पटना आया था। यहाँ मेरी मुलाकात कई ऐसी लड़कियों से हुई थी, जिनके चेहरों पर कुछ मनचलों ने तेजाब फेंक दिया था। तेजाब क्यों फेंक दिया था, यह सुन कर तो आप शर्म से ही गड़ जाएंगे। अधिकतर मामलों में उन मनचलों की तरफ से कहे गए ‘आई लव यू’ का जवाब नहीं देने के कारण।

उस कार्यक्रम में मैं एक और तेजाब पीड़िता सोनाली मुखर्जी से भी मिला था, जिनका पूरा चेहरा तेजाब से झुलस गया है। तब सोनाली ने कहा था कि वैसे तो आदमी जिन्दगी में एक बार ही मरता है, पर वो रोज तिल-तिल कर मरती हैं। उन्होंने कहा था कि इस पीड़ा को शब्दों में बयाँ करना बहुत मुश्किल है। सोनाली के साथ ही मोतिहारी की ज्योति भी थीं। साथ ही मनेर की दो बहनें चंचला और सोनम भी आई थीं, जिनके चेहरे तेजाब से झुलस गये थे। 

सबके चेहरों पर नकाब था। 

क्या आप जानते हैं कि ये लड़कियाँ अपने चेहरे को ढक कर क्यों रखती हैं? क्योंकि वो नहीं चाहतीं कि आप उनके जले हुए चेहरे को देख पाएं। क्योंकि वो नहीं चाहतीं कि आप उन्हें देख कर उनसे नफरत करने लगें। क्योंकि आप सिर्फ उतना ही देखें, जितना देखना चाहते हैं। 

दरअसल किसी के चेहरे पर तेजाब फेंका ही जाता है, उसकी सुंदरता को मिटा देने के लिए। फेंकने वाला सिर्फ तन की सुंदरता पर हमला नहीं करता है, वो उसके सपनों पर भी हमला करता है। 

पिछले साल इन बच्चियों से मिल कर मैं अकेले में बहुत देर सोचता रहा। इन लड़कियों के लिए जो कुछ किया जा सकता था, वो सब किया गया। बिहार सरकार से इन्हें आर्थिक मदद दिलवाई गयी। पर क्या पैसे से सबकुछ संभव है?

खैर, मैंने सोचा था कि अगले साल जो किताब आएगी, उसे अगर संभव हुआ तो मैं पटना लेकर आऊंगा और जिन दस हजार लोगों के सामने बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने जिन्दगी का विमोचन किया है, उन्हीं के सामने किसी एक बहन से अपनी नयी किताब का विमोचन कराऊंगा। मुझे ‘उम्मीद’ थी कि मैं ऐसा कर पाऊंगा। कल मेरी उम्मीदों को पँख दिया मोतिहारी से पटना आ कर ज्योति ने। 

वही करीब दस हजार लोगों की मौजूदगी में ‘उम्मीद’ का विमोचन हुआ। ढेर सारे अफसर, मंत्री, नेता और अभिनेता यहाँ आये थे, पर ‘उम्मीद’ का विमोचन एक बहन ने किया। उस बहन ने, जिससे मैं पिछले साल मिल कर गया था। 

मुझ जैसे किसी पत्रकार के लिए बहुत आसान होता है, नेता और अभिनेता के हाथों किताब का विमोचन कराना, सुर्खियों में आ जाना। पर जो खुशी कल मुझे मिली, अपनी एक ऐसी बहन के हाथों किताब का विमोचन कराते हुए, जिसने इतने बड़े हादसे के बाद भी जिन्दगी से ‘उम्मीद’ नहीं छोड़ी और अपने हर दर्द का उसने हिम्मत से सामना किया, वो पहले नहीं मिली थी। 

कल पटना में जो हुआ, वो मेरी ‘उम्मीद’ से कहीं बढ़ कर हुआ। 

आप सब भी अपनी ‘उम्मीद’ की ज्योति जलाए रखिएगा। इसी दुआ के साथ अपने दोस्त संजय सिन्हा को आज के लिए विदा दें।

(देश मंथन 11 जुलाई 2016)

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