संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कभी-कभी मैं स्कूल से घर आता और खाना नहीं खाता था। माँ मुझसे कहती रहती कि हाथ धोकर खाना खाने बैठ जाओ बेटा, पर मैं माँ की बात अनसुनी कर देता। माँ आती, मुझे दुलार करती और कहती कि मेरे राजा बेटा को क्या हो गया है, क्यों चुप है। माँ और पुचकारती। फिर मैं खुश होकर खाना खाने बैठ जाता, माँ मुझे तोता-मैना कह कर खिलाने बैठ जाती।
आज सुबह जब मैं जागा और कम्प्यूटर लेकर लिखने बैठा तो माँ के दुलार की बहुत याद आने लगी। मैंने कम्प्यूटर बंद कर दिया और अपनी यादों में खो गया। अचानक फोन से एक-एक कर कई बार टूँ-टूँ की आवाज आने लगी। पर मैं माँ के दुलार में लिपटा रहा।
जब दफ्तर से मीटिंग-मीटिंग खेलने वाला फोन आया तो मुझे फोन उठाना ही पड़ा। मेसेज बॉक्स में झाँका तो हैरान रह गया। सौ से ज्यादा मैसेज।
कोई कह रहा था कि सुबह हो गयी है, जागो, संजय सिन्हा पोस्ट का इंतजार कर रहे हैं हम। कोई कह रहा था क्या हो गया संजू भैया, आज कहाँ खोए हो?
किसी ने पूछा कि सब खैरियत तो है न? ढेरों संदेश।
फटाफट मैंने दफ्तर की मीटिंग वाले फोन से मुक्ति पायी और एक-एक कर सारे संदेशों को पढ़ा। वाह से संजय सिन्हा! क्या कमायी की है।
घंटा भर देर हुई नहीं कि परिजनों का प्यार उमड़-घुमड़ कर बरसने लगा। आठ की जगह नौ बजे और आपका प्यार मुझ पर न्योछावर होने लगा।
ऐसा लगा मानो मैं स्कूल से घर आया हूँ, माँ उम्मीद कर रही है कि उसका राजा बेटा हाथ-पाँव धोकर खाने की टेबल पर बैठेगा और खाना शुरू कर देगा। पर राजा बेटा आज मुँह फुलाये हुए घर आया है और ऐसे में उसे प्यार का डबल डोज नसीब हो जाता।
आज मैंने लिखने में देर की और आपके प्यार का डबल डोज मुझे मिल गया।
अभी तो मैं एक पोस्ट लिखता हूँ, आप लाइक बटन दबाते हैं, आप उसमें कमेंट करते हैं। मैं उन्हीं को देख-देख कर फूला समाता रहा हूँ। पर इतने सारे मैसेज आपने घंटे भर में भेज दिये?
मैं तो जानता था कि अगर मैं खाना खाने में जरा आनाकानी करूँगा तो माँ मुझ पर अपना पूरा प्यार लुटा देगी। ऐसे में कई बार मैं जानबूझ कर रूठा करता था। पर आज तो आपने मुझे सच्ची में यह बता दिया है कि आप सब मुझे मेरी माँ से कम प्यार नहीं करते।
आज मैंने सोचा था कि ये लिखूँगा, वो लिखूँगा। आज आपको नयी कहानी सुनाऊँगा, फिर से ज्ञान की बातें करूँगा। पर सब धरा का धरा ही रह गया।
आज मुझे लग रहा है कि प्यार से बढ़ कर संसार में न कोई संपति है, न कोई ज्ञान।
आज मैं आपकी दिए प्यार के ज्ञान में खुद को देर तक डूबे रहने देना चाहता हूँ। सुबह-सुबह इससे बढ़ कर मेरे लिए और क्या होगा कि कम्प्यूटर खोल कर माँ को याद किया और माँ आपके जरिए मुझ तक अपना प्यार लुटाने पहुँच गयी।
आज धन्यवाद नहीं कहूँगा। आज कुछ नहीं कहूँगा। आज प्यार में डूबा रहूँगा। आज आप भी प्यार में डूबे रहिए।
(देश मंथन, 22 सितंबर 2015)