जीवन और मृत्यु का पाठ पढ़ाने वाले गुरु श्रीकृष्ण

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कभी नहीं,

इस आत्मा को, 

खण्ड-खण्ड कर सकते हैं 

हथियार। 

कभी नहीं,

इस आत्मा को 

जला सकती है

अग्नि।

कभी नहीं

भी 

इस आत्मा को

भिगो सकता है, 

जल।

कभी नहीं, 

सुखा सकती है, 

वायु।

***

आज के ही दिन उस व्यक्ति का जन्म हुआ था, जिसने संसार को जीवन का सबसे बड़ा पाठ पढ़ाया था। 

मुझे नहीं लगता कि जीवन के अंतिम सत्य का इससे बड़ा पाठ किसी और ने कभी किसी को सिखाया होगा। मुझे नहीं लगता कि इस पाठ को पढ़ने के बाद भी किसी को कोई और पाठ पढ़ने की जरूरत रह जाती होगी। 

संसार में ऐसा कोई भी कारोबारी नहीं, जो अपने कारोबार के पूरे सच का श्वेत पत्र यूँ जारी कर दे। जो सबको बता दे कि देखो, कैसा है उसका कारोबार। संसार के चलने का पहला नियम ही यही है कि उसकी माया का सच कभी सामने न आए। 

लेकिन कई हजार साल पहले मथुरा के एक कारागार में देवकी की कोख से एक बालक का जन्म हुआ था और उसने बहुत कम शब्दों में जीवन का यह श्वेत पत्र एक युद्ध के मैदान में जारी कर दिया था। 

आज जन्माष्टमी है। इत्तेफाक से आज ही शिक्षक दिवस भी है। 

***

कल मैंने अपनी दुआओं का असर देखने की गुजारिश की थी। कल मैंने लव स्टोरी की नायिका विजेता पंडित के पति और संगीतकार आदेश श्रीवास्तव की लंबी उम्र के लिए आप सबसे दुआ करने को कहा था। आपने देने में देर नहीं की, मैंने माँगने में देर कर दी। और आदेश श्रीवास्तव को उसने सिर्फ 48 साल की उम्र में अपने पास बुला लिया। 

दो साल पहले मेरा अपना छोटा भाई जब पुणे के एक दफ्तर में बैठा था, अचानक ऐसा लगा जैसे संपूर्ण स्वर्ग जगत को उसी की जरूरत आ पड़ी हो, उसने सिर्फ दस सेकेंड में उसे अपने पास बुला लिया था। मैं बहुत विचलित हुआ था। बहुत रोया था। 

पर पंडित मेरे कानों में बुदबुदा रहा था-

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः || 

अर्थात्

इस आत्मा को हथियार कभी खण्ड-खण्ड कर नहीं सकते हैं। अग्नि कभी इस आत्मा को नहीं जला सकती है। जल कभी इस आत्मा को नहीं भिगो सकता है। वायु इस आत्मा को कभी नहीं सुखा नहीं सकती है। 

पुणे की श्माशान भूमि पर अपने भाई के मुख में अग्नि डालते हुए जब मैं तड़पा तो पंडित फिर मेरे कानों में फुसफुसाया। श्रीकृष्ण, संसार के सबसे बड़े गुरु, जिनकी उपासना तुम स्वयँ करते हो, उन्होंने तुम्हार लिए संदेश भेजा है- “सुनो संजय, जिसके लिए तुम विलाप कर रहे हो, वह कुछ है ही नहीं। जो है, उसे कभी कोई मिटा ही नहीं सकता। तुम विलाप नहीं करो। यह संसार है। यह संसार का चक्र है। मैं ईश्वर होकर भी एक दिन इस संसार से चला जाऊंगा। मैं चला जाऊंगा, मैं फिर आऊंगा। इसी चक्र का नाम जीवन है। ब्रहमांड के सारे ग्रह मेरी बंसी के लय पर ही गोल-गोल घूम रहे हैं। कोई कहीं स्थिर नहीं। जो जिस दिन ठहर जाएगा, उस दिन उसका वजूद ही मिट जाएगा। उस दिन यह पूरा ब्रहमांड खत्म हो जाएगा। उस दिन के बाद किसी दिन के लिए कुछ नहीं बचेगा। मैं हूँ, मेरे होने का अहसास तुम्हें है। सबका इस चक्र में बंधे रहना जरूरी है। 

तुम विचलित मत हो।”

ऐसा ही कहते हैं, जब किसी का कोई संसार से चला जाता है। 

आज मैं फिर न कोई कहानी लिख रहा हूँ, न कोई पोस्ट। आज फिर मैं इतना ही लिख रहा हूँ कि सारे संसार को जीवन और मृत्यु का पाठ पढ़ाने वाले गुरु का आज जन्मदिन है। 

उसी गुरु का, जिसके पास हर सवाल का जवाब है। जिसे जीवन का और जीवन के बाद का भी रहस्य पता है। 

आज मैं आदेश के लिए उदास हो कर भी उदास नहीं हूँ। आज मैं संसार के सबसे बड़े शिक्षक को सिर्फ नमन भर कर रहा हूँ। 

आज मैं भी यही कह रहा हूँ-

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः |

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ||  

(देश मंथन 05 सितंबर 2015)

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