संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक बार मैंने अमिताभ बच्चन से पूछा था कि वो कौन सी चीज है जो आपको लगातार सिनेमा के संसार से जुड़े रहने को प्रेरित करती है? हर आदमी एक ही काम करते-करते एक दिन उस काम से ऊब जाता है। मैंने तमाम बड़े-बड़े सरकारी अधिकारियों को देखा है, जो एक दिन खुद को रिटायर होते देखना चाहते हैं।
मैंने बहुत से बिजनेस मैन को देखा है, जो एक समय के बाद अपना काम-धाम बच्चों को सौंप कर खुद किसी और काम से जुड़ जाते हैं या घर परिवार में सिमट कर रह जाते हैं। लेकिन आप उम्र के इस पड़ाव पर भी उसी जोश और खुशी से अपने काम से जुड़े हैं। आखिर क्या है राज इस प्रेरणा का?
अमिताभ बच्चन मुस्कुराए। फिर उन्होंने अपनी गहरी आँखों से मेरी आँखों में झाँका और कहा कि यह सब होता है प्यार से। मुझे सिनेमा के संसार में लोगों ने इतना प्यार दिया कि वही मेरी प्रेरणा बन गयी।
अमिताभ बच्चन मेरे साथ अपने घर से हमारे दफ्तर आ रहे थे। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपकी गाड़ी बेसमेंट की पार्किंग में सीधे ले चलूँ, क्योंकि यहा मेन गेट पर अगर आप उतरेंगे, तो भीड़ आपको घेर लेगी।
अमिताभ बच्चन ने कहा, “संजय जिसे तुम भीड़ कह रहे हो, वही मेरा प्यार है। मैंने कहा था न कि लोगों का प्यार ही वो शक्ति है, जो मुझे इतने दिनों तक लगातार सिनेमा के संसार से जोड़े हुए है।”
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सचमुच प्यार में वो शक्ति है, जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती। यही वजह है कि दुनिया के बहुत बड़े-बड़े व्यापारी भी कई बार अपनी जिन्दगी भर की कमायी दान कर सब कुछ छोड़ कर बैठ जाते हैं। अपनी जिन्दगी भर की कमायी अपने बच्चों को सौंप कर खुद को सार्वजनिक जीवन या ईश्वर की भक्ति में लगा देते हैं। ऐसे बहुत से लोगों को मैं जानता हूँ, जिन्होंने धन कमाने में अपना पूरा जीवन लगा दिया और जब धन पा लिया, तो उसे छोड़ कर आगे बढ़ गये। मतलब जिस चीज के पीछे उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया, उसको पाकर भी उन्हें वो खुशी नहीं मिली, जिसकी उन्हें तलाश थी।
इसका तो मतलब यही हुआ न कि आदमी पैसे से सब कुछ खरीद सकता है, लेकिन खुशी नहीं।
और उनके ही शब्दों में, उम्र के इस पड़ाव पर भी उनका ये सब कर पाना मुमकिन है, सिर्फ और सिर्फ लोगों के प्यार से।
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कल रात मैं इंदौर पहुँचा। यहां मैं साँची विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में शामिल होने आया हूँ। मध्य प्रदेश शासन की ओर से अतिथियों के स्वागत के लिए कई लोगों की ड्यूटी लगी थी। जो लोग वहाँ पहुँच रहे थे, उनका स्वागत किया जा रहा था। पर जैसे ही मैं वहाँ पहुँचा एक प्यारी सी आवाज कानों में गूंजी, “आप संजय सिन्हा?”
मैंने चौंक कर उधर देखा। एक महिला ने मुझे मेरे नाम से पुकारा था।
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि यहाँ लोग नाम से कैसे पहचान रहे हैं?
मैं कुछ पूछता इससे पहले ही उन्होंने मुझे बताया कि मैं फेसबुक पर आपकी परिजन हूँ।
फेसबुक? मतलब मुझे उन्होंने फेसबुक से पहचाना?
उन्होंने अपना परिचय दिया।
“मैं नीता राठौर, इंदौर में एसडीएम हूँ और यहाँ सरकार की ओर से प्रोटोकॉल अफसर के रूप में मेरी ड्यूटी लगी है। पर मैं फेसबुक पर आपसे जुड़ी हूँ, आपका लिखा रोज पढ़ती हूँ। आपको यहाँ देख कर मुझे बहुत खुशी हुई।”
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मुझसे कई लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं क्यों मुफ्त में रोज सुबह उठ कर फेसबुक पर कुछ-कुछ लिखने बैठ जाता हूँ? मुझे तो कोई छपास की बीमारी भी नहीं होनी चाहिए, मैं जब चाहूँ अपने ही दफ्तर की तमाम पत्रिकाओं और अखबारों में लिख सकता हूँ। पर मैं ये मुफ्त वाला काम क्यों रोज करता हूँ? फेसबुक मुझे क्या देता है?
मैं कई तरह के जवाब दिया करता था। लेकिन कल इंदौर हवाई अड्डे पर फेसबुक की अपनी बहन नीता राठौर से मिलने के बाद मुझे सही जवाब मिल गया है। जवाब वही, जिसे बहुत पहले अमिताभ बच्चन ने मुझे दिया था, आज मैं वही जवाब उन सभी लोगों को देना चाहता हूँ, जो मुझसे पूछते हैं कि क्यों मैं रोज सुबह मुफ्त में फेसबुक पर लिखने बैठ जाता हूँ।
याद है न अमिताभ बच्चन ने मुझसे कहा था कि ये लोगों का प्यार होता है, जो आदमी को किसी काम को करने की प्रेरणा देता है।
तो मेरे प्यारे परिजनों, ये आपका प्यार है, जो मैं रोज सुबह उठ कर फेसबुक से संसार से जुड़ जाता हूँ।
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लोग पैसे के लिए जान लेने को तैयार हो जाते हैं। पर प्यार के लिए जान देने को तैयार हो जाते हैं।
सच में प्यार से बड़ी प्रेरणा नहीं। सच में प्यार एक ऐसा शब्द है, जो संसार के सब धन पर भारी है।
(देश मंथन, 24 अक्तूबर 2015)