प्रेम करना नहीं होता, उसे बस जीना होता है

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

एक नौजवान ने मुझसे गुहार लगायी है कि मैं उसकी समस्या को ध्यान से समझूं और फिर उसका हल बताऊं। उसने मुझ पर लानत भेजी है कि मैं सिर्फ सास-बहू, पति-पत्नी और आदमी से आदमी के रिश्तों की कहानियाँ लिखता हूँ। और जिस दिन खुश होता हूँ, अपनी प्रेम कहानी लिख देता हूँ। पर आज की नयी पीढ़ी की समस्या की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।

घर के लोग ये जानने और समझने की कोशिश ही नहीं करते कि एक लड़का या एक लड़की, जो प्रेम में हैं, आकर्षण में हैं, उनकी समस्या क्या है। वो अपनी बात किससे कहें। वो किससे पूछें कि उनकी समस्या का समाधान क्या है। क्या उनका रिश्ता कोई रिश्ता ही नहीं?

बात तो सही है। प्रेम कहानियों पर भारत में न जाने कितनी फिल्में बनती हैं, पर प्रेम पर कोई चर्चा नहीं करता। शायद इसीलिए प्रेम हर बार फिल्मी खेल बन कर रह जाता है।

मेरे एक पच्चीस साल के परिजन ने मुझसे इनबॉक्स में पूछा है कि वो एक लड़की से प्रेम करते हैं, पर लड़की उन्हें भाव नहीं देती। अब मनोविज्ञान की कौन सी किताब वो पढ़ें कि उन्हें ये पता चल सके कि लड़कियाँ चाहती क्या हैं? उन्होंने मुझसे गुहार लगायी है कि संजय सिन्हा, आप रिश्तों की इतनी कहानियाँ लिखते हैं, तो इस रिश्ते पर भी कुछ लिखिए और बताइए कि लड़की कैसे पटे?

प्रेम शब्द मुझे जितना रोमांचित करता है, ‘पटाना’ मुझे उतना ही चीप लगता है। पता नहीं प्रेम करने वाला कोयी शख्स इतने हल्के शब्द का इस्तेमाल कैसे कर सकता है? प्रेम करने वालों को शब्दों के चयन पर बहुत ध्यान देना चाहिए। खैर, मेरे परिजन ने लिखा है तो मैंने जस का तस आपके सामने उसे रख दिया। 

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ये सच है कि प्रेम पर हमारे यहाँ कोयी किताब नहीं। प्रेम कहानियाँ हैं, पर कैसे प्रेम करें, इसके बारे में कहीं कुछ नहीं। और सच बात तो ये है कि प्रेम किताब पढ़ कर किया भी नहीं जा सकता। असल में प्रेम करना नहीं होता, उसे बस जीना होता है। और यह इतना व्यक्तिगत अनुभव होता है कि इसे बयाँ कर पाना भी मुमकिन नहीं होता। फिर भी, मेरे नौजवान परिजन ने मुझसे थोड़े हल्के शब्दों में ही सही, पर सीधे-सीधे पूछ लिया है कि लड़की का दिल कैसे जीता जाए, तो मुझे एक फिल्मी घटना का सहारा लेना पड़ रहा है अपनी बात उन तक पहुँचाने के लिए।

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तब मैं रिपोर्टिंग करता था। राजनीतिक पार्टियाँ और संसद मेरी रिपोर्टिंग बीट थी। जब संसद सत्र चलता तो सुबह-सुबह मुझे संसद पहुँचना पड़ता। कभी लोक सभा में बैठता, कभी राज्य सभा में। उन दिनों दिलीप कुमार साहब सांसद थे और मेरी उनसे मुलाकात होती रहती थी। एक दफा तो एकदम सफेद झक कपड़ों में दिलीप साहब संसद गैलरी में खड़े थे और मुझसे कहा गया था कि मैं एक रिपोर्ट बनाऊं कि कितने सांसद अब खादी की जगह विदेशी कपड़े पहनते हैं। 

मैंने दिलीप कुमार से शुरुआत की और कोई जवाब देने की जगह वो मुझे मेरी कमीज दिखलाने लगे कि देखो, तुमने भी विदेशी कपड़े पहने हुए हैं। मैं झेंप गया था, पर ये स्टाइल था दिलीप कुमार का। वो बहुत व्यावहारिक और बेलाग बात करते थे। 

आज मैं अपने नौजवान परिजन को दिलीप कुमार की जिन्दगी की एक कहानी सुनाता हूँ। उम्मीद है कि कहानी के मर्म से वो समझ पाएंगे लड़कियाँ प्रेम में चाहती क्या हैं? 

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किसी फिल्म की शूटिंग पर दिलीप कुमार और मधुबाला साथ-साथ काम कर रहे थे। इत्तेफाक से वहाँ प्रेमनाथ जी भी थे। अब अगर आपने कभी फिल्मी पत्रिकाएँ पढ़ी होंगी, तो आपको यह पता होगा कि दिलीप कुमार और प्रेमनाथ बहुत अच्छे मित्र थे। 

एक शाम एक फिल्म की शूटिंग के बाद मधुबाला ने दो गुलाब के फूल मंगवा कर एक प्रेमनाथ जी को भेजा और साथ में एक पर्ची भिजवायी कि वो उन्हें बहुत पसंद करती हैं। दूसरा गुलाब उन्होंने दिलीप कुमार जी को भेजा, जिसमें यही बात उनके लिए भी लिखी गयी। 

प्रेमनाथ मधुबाला की तरफ से लिखी चिट्ठी और गुलाब को पा कर खुश हो गये। वो तुरंत अपने मित्र दिलीप कुमार के पास पहुँचे और उन्होंने मधुबाला के इस प्रणय निवेदन के बारे में बताया। दिलीप कुमार हँसने लगे और उन्होंने प्रेमनाथ को अपने पास टेबल पर पड़ी चिट्ठी और गुलाब का फूल दिखालाया कि कैसे उनके पास भी मधुबाला ने बिल्कुल वही भेजा है। 

खैर, दिलीप कुमार ने प्रेमनाथ को सलाह दी कि आप मधुबाला को जवाब भेज दीजिए कि आप भी उन्हें बहुत पसंद करते है और मैं कोई जवाब नहीं दूँगा। फिर देखते हैं कि मधुबाला की प्रतिक्रिया क्या होती है।

दिलीप कुमार के कहने पर प्रेमनाथ ने यह लिख कर मधुबाला के पास भेज दिया कि वो भी उन्हें पसंद करते हैं। 

और दिलीप कुमार?

दिलीप कुमार ने मधुबाला को कोई जवाब ही नहीं भेजा।

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यही वो घटना थी जब मधुबाला पहली बार दिलीप साहब की ओर झुक गयी थीं। प्रेमनाथ ने प्रेम का इजहार कर दिया था, पर दिलीप कुमार इसे छिपा गये थे। मैंने किसी किताब में पढ़ा है कि लड़के और लड़कियाँ पृथ्वी पर दो अलग-अलग ग्रहों से आये हैं। एक मंगल से आया है तो दूसरी शुक्र से। मतलब दोनों की चाहतें अलग होती हैं, दोनों का स्टाइल अलग होता है। 

मुझे ज्यादा विस्तार में जाने की जरूरत नहीं कि भले मधुबाला की शादी दिलीप कुमार से नहीं हुई, पर ऐसा कहा जाता है कि ताउम्र वो दिलीप कुमार से प्रेम करती रहीं। एक बार दिलीप कुमार ने उनके प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा कर, उनसे तुरंत हाँ नहीं कह कर उनके दिल में सदा के लिए अपनी जगह बना ली थी। प्रेमनाथ ने हाँ कह कर अपना पत्ता साफ करवा लिया था।

मैं गारंटी नहीं देता, पर जितनी समझ मेरी है, उसके मुताबिक मैं अपने नौजवान मित्र को सलाह देता हूँ कि किसी लड़की को समझना हो तो यह समझना जरूरी होता है कि उसकी हाँ और ना के बीच की बारीक लकीर कहाँ पर है। पर इतना सत्य है कि लड़कियाँ चाहती हैं कि लड़के उनके प्रेम में बिछ जाएं, पर जो बिछ जाते हैं, वो उनसे दूर हो जाती हैं। 

असल में लड़कियाँ कई तरह के टेस्ट लेती हैं। उसमें पास होने के लिए सबसे जरूरी होता है उनके दिल में जगह बनाना। 

लड़कियाँ कोमल होती हैं। उन्हें मान-सम्मान और प्रेम से ही जीता जा सकता है। 

‘पटाने’ की कोशिश करके नहीं।

(देश मंथन 27 जुलाई 2016)

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