आदमी सबकुछ के बिना रह सकता है, पर प्यार के बिना नहीं

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अब शिफ्ट होने का समय आ गया है। समझ लीजिए कि आधा शिफ्ट हो भी गए। मैं चीजें बहुत खरीदता हूँ, पर मुझे चीजों से मोह नहीं। जाहिर है मैं बहुत सी चीजें यहीं पुराने घर में छोड़ जाऊंगा। इनका क्या होगा, क्या करूंगा, यह सब बाद में तय होगा।

मेरी ही तरह पत्नी को भी सामान से बहुत मोह नहीं। पर जहाँ से हम नये घर जा रहे हैं, वहाँ हमारी ढेरों यादें बसी हैं। 20 साल से भी अधिक हो गये, हमें इसी मोहल्ले में रहते हुए। अब इसे छोड़ कर जा रहा हूँ, तो बहुत सी यादें पीछा कर रही हैं। 

अपनी इन्हीं यादों में खोया-खोया सा था कि बगल में सो रही पत्नी कुनमुनाई और उसने धीरे से बंद आँखों में ही मुझसे पूछा, “संजय, तुम अब तक जाग रहे हो?”

मेरे पिताजी कभी-कभी गहरी नींद में सोए होते थे, तब मेरी माँ उन्हें झकझोर कर जगातीं और पूछती, “एजी, सो रहे हैं?”

पिताजी हड़बड़ा कर उठते और माँ की ओर देखते, फिर धीरे से कहते “सो रहा था, अब नहीं सो रहा। अब तो तुमने जगा दिया।”

पत्नी ने जैसे ही पूछा कि अभी तक जाग रहे हो, तो मैंने ध्यान दिया, सवा तीन बज रहे हैं, मैं सचमुच जाग रहा हूँ। 

बहुत साल पहले जब मैं जनसत्ता अखबार में नौकरी करता था और पत्नी इंडियन एक्सप्रेस में थी, हम में से एक अक्सर नींद से सोते-सोते जागता, घड़ी की ओर देखता और फिर सोच में पड़ जाता कि बहुत देर हो गयी है। 

बहुत देर किस बात की? 

शुरू में जब हमारी नाइट ड्यूटी लगती, तो हमें रात 2 बजे तक दफ्तर में रुकना पड़ता। बाद में मैं राज्यों की खब़रें बनाने लगा, तो मेरी ड्यूटी रोज दोपहर से रात नौ बजे की होने लगी। पर पत्नी की ड्यूटी अक्सर रात 8 बजे से रात 2 बजे की होती। ऐसे में मैं कई-कई बार सोते हुए जागा हूँ। कई बार लगता कि घंटी बजी। कई बार लगता कि कहीं मैं सोया ही न रह जाऊं और वो दरवाजे पर खड़ी रह जाए। 

यही तीन बजे के आसपास दरवाजे की घंटी बजती, मैं दरवाजा खोलता और पत्नी पूछती कि तुम अब तक जाग रहे हो? 

कभी मैं कहता कि मैं सो गया था, पर नींद खुल गयी। कभी कहता कि नींद ही नहीं आयी। 

तो आज मैं कह रहा हूँ कि नींद आयी ही नहीं। मुझे वैसे भी नींद कम ही आती है, लेकिन अभी मैं यादों के संसार में था। अक्सर मेरी बगल में पत्नी सो रही होती है, मैं कुछ सोच रहा होता हूँ। 

मैं सोच रहा था कि अब यहाँ से जब मैं चला जाऊंगा, तो पता नहीं फिर कब आऊंगा। कोई कही दोबारा लौट कर जाता है क्या? आदमी सोचता है कि वो जाएगा, पर नहीं जा पाता। 

मैं आपको पहले बता चुका हूँ कि जिस नए मकान में मैं जा रहा हूँ, वहाँ कायदे से मुझे किसी सामान की जरूरत ही नहीं। वहाँ सबकुछ पहले से है। फिर इन सारी चीजों का क्या करूंगा, यह मैं आज रात के सवा तीन बजे नहीं सोच रहा था। पर मैं जो सोच रहा था, वो बहुत संवेदनशील है। 

पत्नी इस बात के लिए राजी हो चुकी है कि हम यहाँ से कोई सामान नहीं ले जाएंगे। हालाँकि उसे इसके लिए तैयार करना आसान नहीं था।

पर वो एक बात पर अड़ गयी है। वो अड़ गयी है कि उसने घर की छत पर करीब सौ पौधे लगा रखे हैं, उन्हें वो यहाँ नहीं छोड़ सकती। उन्हें तो वो लेकर ही जाएगी। 

सौ गमले। हे भगवान! मैंने कहा था कि हम कार में जितनी चीजें आएंगी, उन्हें लेकर शिफ्ट हो जाएंगे। 

मैंने उसे लालच दिया था कि जो चीजें तुम यहाँ छोड़ दोगी, हम वहाँ नयी खरीद लेंगे। मसलन मैं नहीं चाह रहा था कि पुराने कपड़े वगैरह हम ढो कर ले जाएँ। 

पत्नी तैयार हो गयी।

पर पौधों का क्या होगा? 

मैंने कहा कि वहाँ नए पौधे लगा लेना। 

“नहीं, पौधे यहाँ नहीं छोड़ूंगी। ये पानी नहीं मिलने पर मर जाएंगे। इन्हें तो ले ही जाना होगा।”

“अरे, ये ऐसे महान पौधे नहीं हैं।” मैं उसे समझाना चाह रहा था।

पर उधर से जवाब तैयार था, “पौधे महान नहीं होते। पौधे प्यार होते हैं। प्यार को छोड़ कर मैं कहाँ जाऊंगी?”

इतना कह कर वो सो गयी। मैं जागा रहा। मैं सोचता रहा, सचमुच आदमी सबकुछ के बिना जी सकता है। पर प्यार के बिना नहीं। 

माँ पूछती थी, सो रहे हैं क्या? 

माँ के प्यार में पिताजी कहते थे, अब जाग गया हूँ।

पत्नी ने जब पूछा कि अब तक जाग रहे हो क्या, मैं सोच में डूब गया। क्या मैं अब तक जाग रहा हूँ? नहीं, मेरी आँखें बेशक खुली हैं, पर मैं सो रहा था। जागूंगा तो तब, जब मैं इस सच को समझने लगूंगा कि आदमी सबकुछ के बिना रह सकता है, पर प्यार के बिना नहीं। 

जो प्यार के बिना नहीं रह पाते, जो प्यार को समझते हैं, जो प्यार को आत्मसात करते हैं, वही दावा कर सकते हैं कि वो जागे हैं। बाकी तो सारा संसार सोया है।   

(देश मंथन, 15 मई 2016)

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