संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बचपन में मैं कुम्हार बनना चाहता था।
मेरे घर के पास ही एक कुम्हार परिवार था और मैं रोज उन्हें मिट्टी के बर्तन बनाते देखता था। माँ से कहता था कि मुझे भी मिट्टी के बर्तन बनाने वाली एक चकरी लाकर दे दो, मैं गोल-गोल घुमाऊँगा और मिट्टी के ढेर सारे खिलौने बनाऊँगा।
माँ हँसती, कहती कि जरूर बनाना। जिन्दगी सृजन का ही नाम है।
माँ के मुँह से जब कभी मैं जिन्दगी शब्द सुनता तो मुझे लगता कि ये कोई ऐसी चीज है, जिसका रिश्ता मेरे बड़े होने और मिट्टी के खिलौनों से है, लेकिन अभी नहीं, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तब। मुझे बहुत उम्मीद थी कि मैं बड़ा होता जाऊँगा और माँ मेरे लिए कुम्हार का वो चाक जरूर खरीद कर ला देगी। माँ वो चाक लाकर देगी, मैं जिन्दगी का सृजन करुँगा। तब मुझे ना सृजन का अर्थ मालूम था, न जिन्दगी का। इन दोनों से नाता जुड़ता इससे पहले माँ मुझे छोड़ कर इस संसार से चली गयी।
दुनिया के सभी बच्चों की तरह मैं भी बड़ा होता चला गया। जिन्दगी से तो मेरा नाता बहुत दिनों तक नहीं जुड़ पाया। न जिन्दगी से, न सृजन से। पर माँ से मेरा नाता कभी टूटा नहीं। दुनिया की निगाह में वो कैंसर की मरीज होकर इस संसार से चली गयी थीं, लेकिन वो अक्सर मुझसे मिलने आती रहीं।
ऐसी ही किसी शाम वो मेरे पास आयी थीं और उसने कहा कि तुम मिट्टी के खिलौने बनाना चाहते थे, तुम चाक चलाना चाहते थे, तुम सृजन करना चाहते थे।
मैंने कहा, हाँ माँ मैं यही चाहता हूँ।
माँ ने कहा कि तुम रिश्तों को जोड़ो। फेसबुक पर लोगों से मिलो। काल्पनिक संसार को हकीकत के संसार में तब्दील करो। देखो, तुम्हारे पास एक नहीं, कई-कई माँएँ होंगी, बहनें होंगी, भाई होंगे, रिश्तों का पूरा कारवाँ होगा और इस तरह तुम रिश्तों का पूरा संसार खड़ा कर लोगे अपने आसपास।
मैंने माँ से पूछा कि ये फेसबुक क्या होता है। माँ ने कहा, “जो रिश्ते मैंने अपने घर में, पड़ोस में, आस-पास, पिताजी के दफ्तर में तुम्हारे लिए जोड़े हैं, वही फेसबुक है। मिट्टी के खिलौनों में जिन्दगी तलाशने की कोशिश से कहीं बेहतर है, आदमी के रिश्तों में जिन्दगी तलाशने की कोशिश करना।
माँ का कहा, मेरे मन में बस गया। और फिर बेतार के संसार के जरिए मैं जुड़ गया आपसे। माँ ने सच कहा था। मुझे फेसबुक पर माँ मिल गई। बहनें मिल गईं। भाई मिल गये। सारे रिश्ते यहीं फेसबुक पर मिल गये। मैं रोज अपने फेसबुक परिजनों के लिए कुछ लिखता हूँ। ठीक वैसे ही जैसे एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए हर रोज खत लिखता है, मैं आपके लिए पोस्ट लिखता हूँ।
मैंने पिछले साल 15 नवंबर को अपने सभी रिश्तों का आह्वान किया कि बेतार के संसार से निकल कर आप मुझसे मिलने आएँ। आप सबने मेरी आवाज सुनी और मेरे एक बुलावे पर पूरी दुनिया से उठ कर मेरे रिश्तों का कारवाँ आ खड़ा हुआ। मेरी तमाम पोस्ट को मिला कर आपने किताब का रूप दिया और आपने ही उसे नाम दिया – रिश्ते। ये आपका प्यार ही है कि मेरा लिखना नहीं रुका और आज मेरी तमाम और पोस्ट को मिला कर अब नयप किताब सामने आने जा रही है। इस बार भी नामकरण आपको ही करना है।
मैं आप सबसे अनुरोध करता हूँ कि जून महीने में पटना में रीलिज होने वाली नयी किताब का नाम भी आप ही रखें।
अभी मेरे पास समय है। आप नाम सुझाएँ, हमें आपके सुझाव का इन्तजार है।
ये पोस्ट जो आज मैं लिख रहा हूँ, उसे किताब में समाहित करना है, इसलिए महीना भर पहले ही आपसे गुहार लगा कर मैं ये पोस्ट लिख रहा हूँ, ताकि इसे जून में रिलीज होने वाली किताब में समाहित कर सकूँ। आपको तो याद होगा ही कि पिछली बार दिल्ली में हुए संजय सिन्हा फेसबुक मिलन समारोह में ही तय हो चुका था कि नवंबर में अगला फेसबुक मिलन समारोह मथुरा में होगा। कायदे से अगली किताब नवंबर में ही आनी चाहिए थी। लेकिन क्या करूं, इतना लिख चुका हूँ कि बीच में एक किताब और आना स्वाभाविक ही है। तो जून में एक किताब पटना में बिना फेसबुक परिजनों के मिलन के ही रिलीज होने जा रही है। पर आप भूलिएगा मत। नवंबर तक सर्दी शुरू हो जायेगी। नवंबर के दूसरे हफ्ते में हम फिर मिलेंगे मथुरा में। उसकी तैयारी रखियेगा।
मैं संसार का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हूँ। एक माँ को खोकर मैंने कई माँएँ पाईं। बहनें पाईं। भाई पाये। इस तरह मेरी रुकी हुई जिन्दगी चलने लगी।
किताब की भूमिका में मैं ज्यादा नहीं लिख सकता, सिवाय इसके कि मैं, संजय सिन्हा सचमुच आप सभी से बहुत प्यार करता हूँ। बहुत ज्यादा। आप ही मेरे रिश्तें हैं, आप ही मेरी जिन्दगी हैं। मुमकिन है तकनीक के संसार में मैं कभी पागल करार दे दिया जाऊँ, पर दिल के संसार में मेरा आपके साथ कायम हुआ प्रेम अमर रहेगा। अमर प्रेम।
लिखते-लिखते भावुक हो जाना एक लेखक की कमजोरी होती है। मैं भी रिश्तों के मामलों में कमजोर हूँ। 35 साल पहले माँ चली गई, फिर पिता चले गये और पिछले साल मेरा छोटा भाई चला गया। उसके बाद से मेरी जिन्दगी में कोई अगर है तो बस आप हैं।
“अब तो है तुमसे, हर खुशी अपनी…”
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मैं कुम्हार बनना चाहता था, नहीं बना। फिर ड्राइवर बनना चाहता था, वो भी नहीं बना। आखिर में पत्रकार बनने की सोचने लगा, बन गया। दस साल से ज्यादा समय तक जनसत्ता में रहा। फिर जी न्यूज में चला गया। जी न्यूज से ही अमेरिका चला गया। कोई चार साल अमेरिका में रहा। एक दिन लगा कि बहुत हुआ अंग्रेजी बोलना, अब वापस चलते हैं हिन्दी वाले देश में। पत्नी और बेटे के साथ अमेरिका के डेनवर शहर से सीधे न्यूयार्क पहुँचा और न्यूयार्क से दिल्ली। दिल्ली आते ही आजतक न्यूज चैनल में पहुँच गया।
मैं रिश्तों में यकीन करता हूँ, भावनाओं से संचालित होता हूँ और दिल की आवाज सुनना पसन्द करता हूँ। मैं ओबामा, सोनिया गाँधी, नरेन्द्र मोदी, अरविन्द केजरीवाल, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, प्रियंका चोपड़ा, आलिया भट्ट सबसे मिल चुका हूँ, फोटो खिंचवा चुका हूँ। इसलिए कोई ये नही कह सकता कि मैं बड़े-बड़े लोगों को नहीं जानता।
मेरी दिलचस्पी बड़े लोगों में और राजनीति करने वालों में नहीं। राजनीति पर तो मैं रोज लिखता हूँ। उस पर पोस्ट और किताब क्या लिखूं।
मेरी दिलचस्पी आप में है, आपके साथ जीने में है। इसलिए मैं रोज आपसे ही रूबरू होता हूँ, अपनी कहानी सुनाता हूँ। विश्वास है जैसे मैं आपसे प्यार करता हूँ, वैसे ही आप भी मुझसे प्यार करते हैं, करते रहेंगे।
बस आपके प्यार के सिवा मुझे और किसी चीज की दरकार नहीं।
“तुम पे मरना है जिन्दगी अपनी…”
(देश मंथन, 15 मई 2015)