प्राचीन गौड़ मालदा शहर – कभी था ‘लक्ष्मणावती’

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

बंगाल का पुराना शहर गौड़ कभी बंगाल की राजधानी रहा है। गौड़ प्राचीन काल में ‘लक्ष्मणावती’ मध्यकाल में  ‘लखनौती’के नाम से जाना जाता था। किसी समय यह संस्कृत भाषा और हिंदू राजसत्ता का बड़ा केंद्र था। गौड़ का सबंध गीत गोविंद के रचयिता जयदेव के अलावा व्याकारणाचार्य हलयुद्ध से रहा है। 

सेन वंश के राजा लक्ष्मणसेन के नाम से इस शहर का नाम लक्ष्मणावती रखा गया था। आठवीं से 10 वीं सदी तक यहाँ पाल राजाओं का शासन था, जबकि 11वीं और 12वीं सदी में सेन वंश का शासन रहा। सेन वंश के शासन में यहाँ कई हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ पर अब उनका अवशेष नहीं है। 1573 मे अकबर के सूबेदार गौड़ से इसे अपना केंद्र बनाया तब इसका नाम गौड़ पड़ गया। अब गौड़ मालदा मे कई मस्जिदें हैं, जिनके निर्माण में हिंदू मंदिरों के भग्वनावशेषों का इस्तेमाल प्रतीत होता है।

आप पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में मालदा टाउन शहर से 12 किलोमीटर दक्षिण में पुराने गौड़ शहर के ऐतिहासिक अवशेष देख सकते हैं। मालदा शहर महानंदा नदी के किनारे बसा है। 1771 में एक इंगलिश फैक्ट्री के कारण इसे इंगलिश बाजार के नाम से भी जाना जाता था। 18वीं सदी मैंगो सिटी (आमों का शहर) मालदा अपनी सिल्क इंडस्ट्री के लिए भी जाना जाता था।

बारा सोना मस्जिद 

यह गौड़ का सबसे बड़ा स्मारक है। मालदा की ओर से आने पर सबसे पहले यही स्मारक नजर आता है। नाम के मुताबिक इसमें 12 दरवाजे होने चाहिए। हालाँकि दिखायी 11 देते हैं। इसका निर्माण अल्लाउद्दीन हुसैन शाह ने 1526 में करवाया। ठीक उसी साल जब पानीपत की पहली लड़ाई इब्राहिम लोदी की पराजय हुई थी। इस मस्जिद में इंडो अरब स्थापत्य का मेल दिखायी देता है। इसके मेहराब और गुंबद देखने लायक हैं। गुंबद मुगलकालीन अमरूदी गुंबद की तरह न हो कर गोलाकार है। अब यह मस्जिद कई इलाकों में टूटी-फूटी नजर आती है। पुरातत्व विभाग की ओर से इसका संरक्षण किया गया है।

फिरोज मीनार

कुछ-कुछ कुतुबमीनार से मिलती-जुलती फिरोजमीनार की ऊँचाई 26 मीटर है। यह पाँच मंजिला है। मीनार से सामने एक बड़ा तालाब है। इसका निर्माण 1485-89 के बीच सुल्तान सैफुद्दीन फिरोज ने करवाया था। इसके आधार का वृत 19 मीटर का है। शुरुआत की तीन मंजिलों 12 कोणीय हैं, जबकि ऊपर की दो मंजिलें गोलाकार सरंचना में हैं। ऊपर तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनी हैं। हालाँकि आप इसे सिर्फ बाहर से देख सकते हैं। अंदर जाने की अनुमति अब नहीं है।

सलामी दरवाजा

फिरोज मीनार से एक किलोमीटर पहले दक्षिण दरवाजा आता है। इसे सलामी दरवाजा भी कहते हैं। इसका निर्माण 1925 में लाल पत्थरों से कराया गया था। यह दरवाजा 21 मीटर ऊँचा और 34 मीटर चौड़ा है। कभी यह गौड़ के किले का मुख्य द्वार हुआ करता था।

फिरोज मीनार से आधा किलोमीटर आगे बढ़ने पर एक साथ पाँच स्मारकों को समूह नजर आता है। यहाँ पर सबसे पहले कदम रसूल मस्जिद उसके बाद, फतेह खान की मजार, चीका मस्जिद, गुमटी गेट, लुकाचोरी गेट देख सकते हैं। यहाँ पर कुछ दुकानें भी हैं। स्थानीय लोगों के लिए ये एक पिकनिक स्पाट की तरह है। आसपास में आम के बागीचे नजर आते हैं।  

कदम रसूल मसजिद

कदम रसूल मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर मुहम्मद साहब के पाँव के निशान है। इस मस्जिद का निर्माण 1531 में हुआ था। यह एक गुंबद वाली संरचना है। इसका गुंबद ऐसा लगता है मानो कमल के फूल को उल्टा करके रख दिया गया हो। इसकी आंतरिक संरचना कलात्मक है। इसे सुल्तान नुसरत शाह ने बनवाया था। यहाँ पत्थरों पर मुहम्मद साहब के पाँव के निशान है। इसका संरक्षण माहिदपुर गाँव के खादिम करते हैं। इस गाँव में खादिम के परिवार के 50 घर हैं। खादिम की 60वीं पीढ़ी से हमारी यहाँ मुलाकात होती है। उनका नाम है मुहम्मद जमील हसन मुल्ला। लोगों में इस मस्जिद को लेकर बड़ी आस्था है। लोग यहाँ मन्नते माँगने आते हैं। इसके पास ही तांतीपारा मस्जिद है, यहाँ भी सुंदर नक्काशी देखी जा सकती है।

फतेह खाँ की मजार

फतेह खाँ औरंगजेब का जनरल दिलावर खाँ का बेटा था। 1658 में जन्मे फतेहखान की मौत 1707 में हुई। यहाँ उसकी मजार बनी है, जिसकी दीवारें कलात्मक हैं। बताया जाता है कि फतेह खाँ को एक मुस्लिम संत की हत्या के लिए भेजा गया था पर वह अपनी मंजिल का नहीं पहुँच सका और खून की उल्टियाँ करके मर गया।

चीका मस्जिद 

सुल्तान युसुफ शाह ने 1475 में चीका मस्जिद का निर्माण कराया। वास्तव में यह कभी चीका यानी चमगादड़ों की शरण स्थली हुआ करता था। यह भी एक गुंबद वाली संरचना है। 

अब इसका अवशेष ही बचा है। इसकी दीवारों पर शानदार नक्काशी दिखाई देती है। दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं। यह एक ऐसी मस्जिद है, जिसकी वास्तुकला हिंदू मंदिर की है। इससे प्रतीत होता है कि यह कभी हिंदू मंदिर रहा होगा।

गुमटी गेट

गुमटी गेट की इमारत दूर से ही अदभुत नजर आती है। यह चीका मस्जिद के ठीक सामने है। 1512 में इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन शाह ने करवाया। इसका आकार छोटा है पर देखने में सुंदर है। इसके निर्माण में ईंट और मिट्टी का इस्तेमाल हुआ है। पर इसके रंग अदभुत हैं और दरवाजे पर शानदार नक्काशी है। हालाँकि आजकल इसके संरक्षण के लिए इसे बंद कर दिया गया है। गुमटी गेट और चीका मस्जिद के बीच खाली मैदान में एक मंदिर का अवशेष दिखायी देता है। इसका अब सिर्फ आधार तल ही रह गया है। इसे देख कर लगता है कि कभी यहाँ मंदिरों का समूह रहा होगा।

लुका चोरी गेट 

लोकाचुरी गेट का निर्माण 1655 का  है। इस गेट के अंदर से आजकल सड़क सरपट गुजरती है। इसके नाम के पीछे रोचकता है। अंगरेजी के खेल हाइड एंड सीक यानी लुकाछिपी के खेल के नाम पर इस गेट का बांगला नाम है लुका चोरी। कहा जाता है यहाँ सुल्तान अपनी बेगमों के साथ लुका-छिपी का खेल खेला करता था। दो मंजिला यह दरवाजा महल में प्रवेश के मुख्य दवारा के तौर पर काम करता था।

चामकाटी मस्जिद 

मेहदीपुर बार्डर के रास्ते में यह नन्ही सी मस्जिद है, जिसका नाम चामकाटी मस्जिद लिखा गया है। इस मस्जिद का भी निर्माण सुल्तान शमशुद्दीन युसुफ शाह ने 1475 में कराया। माना जाता है कि इसका संबंध मुस्लिम समाज के चामकाटी समुदाय से है। गौड़ मालदा से बांग्लादेश के मेहदीपुर बार्डर की दूरी महज दो किलोमीटर है। यहाँ से अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता है। हमें रास्ते में ट्रकों की लंबी लाइनें लगी देखीं। यहाँ से ज्यादातर सामग्री बांग्लादेश जाती है। पर दूसरी तरफ से माल कम ही आता है। 

कैसे पहुँचे

मालदा टाउन के रथबारी चौक से गौड़ की दूरी 12 किलोमीटर है। आप आटोरिक्शा या टैक्सी किराये पर लें। सार्वजनिक वाहन से नहीं जा सकते क्योंकि सारे ऐतिहासिक स्थल एक ही जगह पर नहीं हैं। इसलिए आरक्षित वाहन ही सुविधाजनक है। इतिहास के शोधार्थी मो अनवारुल हक के साथ हमारी यात्रा शुरू हुई। हमने रथबारी चौक  से आटो रिक्शा किराये पर लिया। आटो चालक ने हमें सारे स्मारक बड़े दिल से घुमाया उनका धन्यवाद।

(देश मंथन, 05 मार्च 2016)

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