संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुबह जब नींद खुले तो अपने भीतर झाँकिए। मन की खिड़िकियों से देखिए कि कहीं आप अकेले तो नहीं।
सबके रहते हुए भी अगर आप जिन्दगी के किसी मोड़ पर खुद को अकेला पा रहे हैं, तो आपको मैरियन की कहानी जरूर पढ़नी चाहिए। मैं जानता हूँ कि पिछले कुछ दिनों से लगातार आपको एक के बाद एक करके मैं येलेना की कहानी सुना रहा हूँ, पर मैं भी क्या करूं, पात्र कोई भी हो, कहानी तो प्रेम, नफरत, तन्हाई और मिलन की ही है।
अब मैं कोई लेखक तो हूँ नहीं कि मैं कल्पना की उड़ान पर सवार हो कर शब्दों के मायाजाल से किसी नए संसार को रच दूँ। मैं न लेखक हूँ, न साहित्यकार। मैं पत्रकार हूँ और मेरी कहानियाँ किसी को चाहे जितनी काल्पनिक लगें, पर अगर आप अपनी आँखें बंद कर इस पर मनन करेंगे, तो पाएंगे कि अविश्वसनीय सी लगने वाली संजय सिन्हा की कहानियाँ दरअसल सत्य हैं, सिर्फ सत्य।
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आज मैं आपको अमेरिका में मिली ‘मैरियन’ नामक महिला की कहानी नहीं सुनाउँगा मेरे अमेरिका प्रवास में मैरियन कुछ समय के लिए ही सही पर मेरी सबसे करीबी दोस्त बन गयी थी, शायद! मैं अमेरिका के उस शहर में अक्सर पुरानी किताबें खरीदने के लिए वहाँ आर्क थ्रिफ्ट दुकान में जाया करता था। आर्क थ्रिफ्ट एक संस्था है, जहाँ लोग अपनी चीजें दान करते हैं, और फिर उन चीजों को बहुत कम कीमत पर चैरिटी के लिए बेचा जाता है। वहाँ पुराने कपड़े, जूते, घर के सेकेंड हैंड सामान और पुरानी किताबें मिलती हैं। मुझे बहुत सी पुरानी किताबें वहाँ मिलीं। एक शाम मैं यूँ ही कुछ किताबें छाँट रहा था कि पीछे से आवाज आई, “हाय! मैं मैरियन, आपको अक्सर यहाँ देखती हूँ। आप क्या करते हैं? मैंने उस काँपती आवाज को पहचानने की कोशिश की। लगा सुनी-सुनी सी आवाज है। मैंने उसकी ओर गौर से देखा। उसकी आँखें एकदम वही आँखें थीं, नीली और शांत।
मैंने सोचा पता नहीं ये कौन है। मैं सोच ही रहा था कि उसने मेरी ओर हाथ बढ़ाया और कहा मैं मैरियन। मैरियन की उम्र उसके शरीर की उम्र से कम थी। सर से पाँव तक झुर्रियाँ, तन पर पहुत पुरानी सी एक ड्रेस, पाँव में टूटी हुई सैंडिल और कांपती आवाज। मैरियन, ये नाम याद करते हुए मैं घर लौट आया। लेकिन दूसरे दिन मुझे फिर मिल गयी, वही काँपता शरीर और वही नाम- मैरियन। मुझे लगने लगा कि मैरियन मुझसे कुछ कहना चाहती है, बात करना चाहती है, कुछ माँगना चाहती है, कुछ तो है जो मैरियन बार-बार मेरे पास आ रही थी। मैने मैरियन को पास ही स्टारबक्स कॉफी सेंटर पर कॉफी के लिए निमंत्रित किया। वो बहुत खुश हुई। कॉफी पीते हुए वो मुझे अपनी आँखों से हजार बार धन्यावाद कह रही थी। ऐसा लग रहा था कि कई वर्षों बाद उसे ये कॉफी नसीब हुई है। वो धीरे-धीरे कॉफी पीती रही, और फिर उसने मुझसे पूछा क्या तुम्हारी शादी हो चुकी है? क्या तुम्हारा बच्चा भी है? मैं चुपचाप उसकी ओर देखता रहा। फिर उसने धीरे से कहा, शादी नहीं हुई तो शादी मत करना। मैं तो कहती हूँ तुम किसी से मुहब्बत ही मत करना। और…पता नहीं क्या-क्या बोलती रही। मेरी हिम्मत नहीं हुई उससे कुछ पूछने की। फिर मुझे वो रोज मिलने लगी। कई दिनों तक। वो मुझसे कॉफी पिलाने की अब जिद करती और कभी-कभी एक दो पुराने कपड़े खरीदती। मुझे लगने लगा कि ये अमेरिका की यूँ ही कोई उपेक्षित बुजुर्ग महिला है, जो इस दुकान में पुरानी चीजें खरीदने आती है, और मेरे पास समय की कमी नहीं इसलिए वो मेरे साथ समय काटती है। खैर, जो भी हो, धीरे-धीरे वो मुझसे खुलने लगी थी। मुझे इतना पता चल चुका था कि उसका कोई बेटा है, जो उसे नहीं पूछता। शायद उससे कई वर्षों से मिला भी नहीं। वो विधवा थी या तलाकशुदा ये पता नहीं चल पाया था, पर इतना तय था कि वो संपूर्ण रूप से अकेली थी। वो मुझसे अक्सर द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में बातें करती। जापान पर हुए एटमी हमले की चर्चा करती। हिटलर के आतंक पर सिहरती और एक दिन उसने आर्क थ्रिफ्ट की उस दुकान में आना बंद कर दिया। एक दिन, दो दिन, तीन दिन और फिर कई दिन बीत गये। मुझे चिंता होने लगी कि मैरियन कहाँ चली गयी? वो कुछ बीमार सी थी तो सही, कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया!
कई दिन बीत गये। मैं आर्क थ्रिफ्ट की दुकान में जाता रहा, किताबें खरीदता रहा। और उसे तलाशता रहा।
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एक दिन अचानक घर में अखबार के पन्ने पर मेरी निगाह गयी। मैं अखबार के उस पन्ने की खबर को जस का तस आपके सामने रख रहा हूँ। मुमकिन हो तो इसे कहीं दर्ज कर लीजिएगा। मेरा यकीन कीजिए आपके लिए भी ये जानकारी अनमोल है, अविश्वसनीय है और अकल्पनीय है। अखबार की हेडिंग थी, “व्ह्वाइट हाउस की पहली महिला फोटोग्राफर की रहस्यमय अतीत के साथ मौत” मैंने फटाफट पूरी खबर पढ़ी। खबर एसोसिएटेड प्रेस की तरफ से थी, और सेंट पॉल से लिखी गयी थी। खबर में बताया गया था कि मैरियन कारपेंटर नाम की उस महिला का बहुत ही रहस्यमय अतीत के साथ निधन हो गया, जो अमेरिकी राष्ट्रपति के दफ्तर की पहली महिला फोटोग्राफर थी। 24 साल की उम्र में वाशिंगटन से फोटोग्राफी की पढ़ाई करने के बाद मैरियन को व्ह्वाइट हाउस में नौकरी मिली और उसे अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट के बाद के राष्ट्रपति ट्रुमैन के साथ बेहद करीब से काम करने का मौका मिला। वो द्वितीय विश्व युद्ध के दिन थे जब मैरियन दिन रात ट्रुमैन के साथ रहा करती थी। जब जापान के दो शहरों, हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम फेंके गये थे, तब वो हर उस बैठक का हिस्सा थी, जिसमें ऐसा फैसला लिया गया था। वो ट्रुमैन के साथ पूरी दुनिया घूम चुकी थी। तब उसकी जवानी और सुंदरता पूरे अमेरिका के सिर चढ़ कर बोलती थी। उम्र के उसी पड़ाव पर उसकी शादी हुई। भरे पूरे घर के बीच जिन्दगी बेहद हसीन थी। लेकिन अपनी शादी के बीच ही उसे किसी एक और शादीशुदा नौजवान से प्यार हो गया। फिर मैरियन की शादी टूट गयी। बेटा घर छोड़ कर भाग गया। धीर-धीरे प्रेम की रफ्तार भी घट गयी, और एक दिन मैरियन साढ़े छह अरब आबादी वाली इस दुनिया में एकदम तनहा रह गयी। मैरियान की जिन्दगी नर्क बन चुकी थी मैरियान वाशिंगटन में किसी के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा कर बर्बाद हो चुकी थी। मैं भाग कर आर्क थ्रिफ्ट पहुँचा। वहाँ काउंटर पर खड़ी एक बुजुर्ग महिला से मैंने पूछा कि मैरियन को आप जानती थीं?
महिला ने मेरी ओर देखा, और कहा कि वो फोटोग्राफर? हाँ, हाँ वो अमेरिकी राष्ट्रपति भवन की पहली महिला फोटोग्राफर थी। उसका नाम तो इतिहास में दर्ज होगा। फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या हुआ उसे? मैंने अखबार की कतरन को उसके सामने रख दिया। बुढ़िया एक साँस में पूरी खबर पढ़ गयी। फिर उसने मुझसे कहा, “जानते हो कई साल पहले उसे प्यार में बहुत गहरी चोट पड़ी थी। उसके बाद से वो किसी से बात नहीं करती थी। कभी निजी विमान से यात्रा करने वाली नीली आँखों वाली वो सुंदरी अब बहुत लाचार हो गयी थी। वक्त के साथ सबने उसका साथ छोड़ दिया था। ऐसा ही होता है, जब तुम किसी से सिर्फ बाहरी चमक के आधार पर दोस्ती कर लेते हो। ऐसा ही होता है जब प्रेम की वजह सिर्फ जवानी होती है। ऐसा ही होता है जब समाज एक साथ इतने बदलावों से गुजरता है। हाँ, ऐसा ही होता है इसीलिए मैरियन यहाँ सेकेंड हैंड कपड़े खरीदती थी। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई। अपने बेटे के घर छोड़ देने के बाद, अपने प्रेमी के दगा देने के बाद तो वो किसी से बात नहीं करती थी। फिर तुम कैसे उससे बातें कर लेते थे। मैंने कई बार देखा है तुम्हारे साथ वो कॉफी पीती थी। क्या कहती थी वो?” मैं चुप नहीं था। मैं बुदबुदा रहा था, “वो मैरियन थी ही नहीं, वो तो येलेना थी। जो मुझे मेरे उम्र के बीसवें साल में पहली बार मिली थी लेनिनग्राद में। वो तो ओल्गा थी, जो जब 23 साल की हुई तो मुझे मिली थी किरगिस्तान में। वो तो येलेना थी जो मुझे अभी मिलनी थी न्यूजीलैंड की सड़कों पर। उसे तो मेरी बाँहों में दम तोड़ना है, अपने पति के सामने। उसके बिना उसकी मुक्ति संभव नहीं, फिर ये कैसे मर गयी चुपचाप?“ काउंटर पर खड़ी वो बुजुर्ग महिला मेरी तरफ देखती रही। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि मैरियन भला येलेना कैसे बन गयी। उसने अपना नाम कब बदल लिया? कुछ देर चुप खड़ी रहने के बाद उसने मेरी ओर देखा और कहा, “ओके, हो सकता है कुछ भी हो सकता है। वो एक रहस्यमयी महिला थी। उसके बारे में कोई ज्यादा नहीं जानता था। देखिए न अखबार में भी यही लिखा है- उसकी जिन्दगी अनसुलझी पहेली की तरह थी।” मैं चल पड़ा घर की ओर। ये सोचता हुआ कि हिटलर ने तो नफरत के हथियार से मानवता का संहार किया। उसे तो आने वाली पीढ़ियाँ पहचानेंगी, नफरत करेंगी और यही उसकी सजा होगी। लेकिन, उन हिटलरों का क्या होगा, जो प्यार की आड़ में कइयों की जिन्दगी को पत्थर बना देते हैं, बिना कोई सजा पाए।
मैं सोचता रहा। आप भी सोचिए।
(देश मंथन 08 अगस्त 2016)