आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
डाक्टर गंभीर किस्म के मेडिकल टेस्टों के बोल दे, तो दिमाग एक खास दशा में चला जाता है। गंभीर मेडिकल टेस्टों की डाक्टर बोल दे, तो मैं एकदम सन्यास मोड में चला जाता हूँ। देह नश्वर है, अकिंचन है, क्या रखा है। स्वस्थ रह कर ही कौन से तीर मार लेंगे, बीस-तीस साल और जी जायेंगे। सीरियस बीमारी हुई, बीस-तीस साल पहले टें बोल लेंगे। इस किस्म के निहायत जीवन-निरपेक्ष विचार आने लगते हैं।
अकिंचन देह भी महीने में कुछ किलो प्याज-टमाटर-आलू भकोस लेती है, उसकी रकम का इंतजाम कैसे हो, इस किस्म के ख्याल कुछ वक्त के लिए स्थगित हो जाते हैं। पर फिर प्याज-आलू इस संसार में वापस खींच लाते हैं। डाक्टर ने हाल में कुछ गंभीर मेडिकल टेस्ट बोले। दिमाग फिर अकिंचन देह-चिंतन में चला गया। पर जैसे ही टेस्ट की रिपोर्टें आयीं-मन खिल उठा। टेस्ट अच्छे-खराब कैसे हैं, डाक्टर बाद में बतायेगा, अपना मन तो यह देख कर ही खिल गया कि जिस देह को अकिंचन, राख, नश्वर समझ रहे थे, उसमें वड्डे-वड्डे खनिज पदार्थ निकले। देह में यूरिया है 25 एमजी/डीएल। यूरिया की कमी से राष्ट्र जूझ रहा है, इस अकिंचन देह में वो मौजूद है। फास्फोरस भी निकला-3.30 एमजी/डीएल, सच्ची मुझे ना पता था कि देह अकिंचन नहीं है। तथ्य आधारित बात तो ये होगी-हे मानव तेरा देह पूरा नश्वर ना है, इत्ता फास्फोरस, इतना यूरिया, इतना क्लोराइड, इतना प्रोटीन, इतना कैलशियम है। मेरी उदासी जाती रही। इतने खनिज पदार्थ लिये घूम रहा हूँ।
मेरा निवेदन है कि राष्ट्र गौरव का भाव भरने के लिए हर नागरिक को इन तथ्यों की जानकारी होनी चाहिए कि वह कितना यूरिया, कितना फास्फेट, कितना फास्फोरस लिये घूम रहा है। 127 करोड़ लोग हैं, तो मतलब इंडिया के पास इतने टन यूरिया, फास्फोरस मानव शरीरों में जमा है। ठीक है, इस सबका यूज ना हो पायेगा, पर आत्मविश्वास तो बढ़ेगा। यूज तो न्यूक्लियर बम भी ना हो पाते, पर आत्मविश्वास रहता है कि हैं ये। ऐसे अपनी संपदाओं के बारे में पता रहे, तो हर भारतवासी का आत्मविश्वास बढ़ेगा। कोई ये ना कहेगा कि मेरे पास कुछ नहीं है। इस बयान को यूँ संशोधित करके कहा जायेगा- मेरे पास कुछ नहीं है, इतना यूरिया, इतने फास्फोरस, इतने कैल्शियम, इतने पोटेशियम, इतने क्लोराइड के सिवा और इतने कोलेस्ट्रोल के सिवाय। मैं कोलस्ट्रोल के मामले में बहुत संपन्न हूँ। चार तरह के कोलस्ट्रोल हैं मेरे पास-एचडीएल कोलस्ट्रोल, एलडीएल कोलस्ट्रोल, वीएलडीएल कोलस्ट्रोल, और नान-एचडीएल कोलस्ट्रोल। सोने की चिड़िया भारत देश भले ही ना रहा, पर हर भारतवासी का शरीर कोलस्ट्रोल का कुनबा जरूर है। कोलस्ट्रोल ही कोलस्ट्रोल मिल तो लें। मतलब बंदे को यह अहसास ना रहे कि वह बहुतै विपन्न है। विपन्न से विपन्न बंदे के पास भी चार टाइप का कोलस्ट्रोल है, यह अहसास मुझे मेडिकल रिपोर्टें देख कर हुआ।
विद्वज्जन इस विषय पर चिंतन करें कि तमाम खनिज संपदाओं को शरीर से अलग कैसे किया जाये, ताकि उनका राष्ट्र हित मे सही इस्तेमाल हो सके। जैसे किसी फांसी पाये अपराधी के शरीर से खनिज -कीमती पदार्थों को अलग करके उनका इस्तेमाल कैसे राष्ट्रहित में करें, इस विषय पर डाक्टरों को विचार करना चाहिए।
पर नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, ये ना हो बेहतर। वरना पता लगा कि निजी अस्पताल बहला-फुसलाकर बंदों को ले जायें और उनका यूरिया, फास्फोरस गायब कर दें। बंदा बाद में चीखता ही रह जाये-मेरा यूरिया। परमपिता परमेश्वर ने इंसानी शरीर के निर्माण का काम अपने हाथ में रखा है, ठीक है। वरना अगर नीचेवालों के हाथों में ये काम होता, तो पता चलता कि उस फैक्टरी में बने इंसानों में शरीर में यूरिया घोटाला हो गया। इंसानों में यूरिया डाला ही ना गया, यूरिया को काला-बाजार में बेच दिया गया। एक लाख लोग धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं कि हमारा यूरिया हमें वापस दे दो। पता लगा कि किसी फैक्टरी ने इंसानी शरीर में फास्फोरस घोटाला कर दिया, किसी ने क्लोराइड घोटाला कर दिया। और कुछ ना कर सकते क्योंकि फैक्टरी के मालिक मंत्री के भाई हैं।
इंसानी खनिज इंसान के शरीर में ही रहें, इसी में बेहतरी है, वरना घोटालों की भीषणता और संख्या दोनों में बढ़ोतरी हो जायेगी। नहीं क्या।
(देश मंथन 05 अगस्त 2016)