पैसा और शांति

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी एक परिचित इन दिनों बहुत परेशान है और मुझसे मदद चाहती हैं। मैं दिल से उनकी मदद करना चाहता हूँ, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा। 

कहानी बहुत लंबी-चौड़ी नहीं है, पर बहुत आसान भी नहीं है। 

पूरी कहानी सुनाने से पहले आपको जरा नेपथ्य में ले चलूँगा। 

बहुत साल पहले मेरी उस परिचित के माँ-बाप ने अपनी बेटी की शादी ऐसे घर में की थी, जहाँ खूब पैसा था। उनकी एकमात्र चाहत यही थी कि बेटी उस घर में ब्याही जाये, जहाँ पैसों की कमी न हो। किसी भी बेटी के माँ-बाप की यह ख्वाहिश हो सकती है। 

बेटी की शादी खूब पैसे वाले घर में तो हो गई, लेकिन पति इतना कंजूस निकला कि पाई-पाई खर्च करने में उसकी जान निकलती। उसे पैसा जमा करने की बीमारी हो गयी थी। वो जमीन खरीदता, बैंक में डिपाजिट कराता पर न खुद पर पैसे खर्चता, न पत्नी पर। 

कंजूसी के इसी आलम में पति-पत्नी में अनबन रहने लगी और एक दिन खूब झगड़े के बाद दोनों अलग हो गये। अलग क्या हुए, तलाक ही हो गया। 

अभी कुछ दिन खबर आई कि कंजूस पति को दिल का दौरा पड़ा और वह चल बसा। 

मेरी परिचित के उस कंजूस पति ने कई साल पहले दिल्ली के एक पॉश इलाके में अपने नाम से एक बंगला बनवाया था। आज वो करोड़ों रुपये का है। अब जब उस व्यक्ति की मौत हो चुकी है, तब मेरी परिचित चाहती हैं कि वह बंगला उन्हें मिल जाये। उनके पूर्व ससुराल में अब कोई व्यक्ति नहीं है, जो उस बंगले का दावेदार हो। कायदे से पत्नी से तलाक हो चुका है, तो उनका भी कोई दावा नहीं बनता। 

फिलहाल उस घर में एक केयर टेकर रहता है, जिसे उनके पति ने देख-भाल के लिए दिया था। वह केयर टेकर कई वर्षों से उसमें आराम से रह रहा है। सच कहूँ तो उसका पूरा परिवार ही उसमें रहता है। 

जाहिर है उस बंगले का कोई कानूनी दावेदार नहीं। ऐसे में मेरी परिचित की परेशानी में मैं उनकी क्या मदद कर सकता हूँ? यह सवाल आपसे पूछ रहा हूँ। 

***

एक बार एक व्यक्ति ने भगवान शंकर की खूब तपस्या की। भगवान प्रकट हुये तो, उसने कहा कि भगवान मेरे घर पर इतना पैसा बरसा दो मुझे कभी किसी चीज की तकलीफ ही न रहे। भगवान शंकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उसके घर में पैसों की बरसात कर दी। घर के भीतर पैसा बरसते देख आदमी खुशी से झूम उठा। पैसा बरसता रहा। आदमी झूमता रहा। भोले शंकर तो भोले ही हैं। पैसा बरसता रहा, इतना बरसा कि आदमी उसके नीचे दब गया। वो चीखता रह कि प्रभु अब पैसों की बरसात रोक दो, अब नहीं चाहिए। पर भोले शंकर कहाँ सुनने वाले थे। वर्षों की तपस्या से प्रसन्न होकर एक बार मिले थे, एक बार की बात सुनी थी। अब उस बरसात को रोकने के लिए तो फिर बरसों की तपस्या करनी पड़ती न! तो आदमी अपनी ही चाहतों के तले दब कर मर गया। 

*** 

मेरी परिचित के पिता ने भी यही दुआ माँगी थी भगवान से कि बेटी की शादी खूब पैसे वाले घर में हो। पर माँगते हुए वो बेटी की खुशियाँ माँगनी भूल गये। बेटी को पैसे वाला घर मिला। घर ही तो माँगा था। घर है। 

यह तो आपने भी सुना ही होगा, भगवान से माँगते हुए बहुत सतर्क रहना चाहिए कि हम क्या माँग रहे हैं।

कई बार हम जो माँगते हैं, उसकी दरकार हमें नहीं होती। हमें जिस चीज की दरकार होती है, वह है खुशी, संतोष और शान्ति। 

सोचिए क्या हम वाकई हम इतना ही माँगते हैं? मेरा मानना है कि आदमी सिर्फ इतने की चाहत रखे, तो उसे किसी और चीज की जरूरत नहीं होगी। 

(देश मंथन, 08 अगस्त 2015)

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