संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक भावी नेता ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि फलाँ पार्टी के अध्यक्ष से तो आपके अच्छे संबंध हैं, आप उनसे मेरी सिफारिश कीजिए। उनसे कहिए कि अगर उन्हें टिकट मिला तो वो हर हाल में चुनाव जीत जाएँगे।
मैंने भावी नेता से पूछा कि आप टिकट क्यों पाना चाहते हैं?
उन्होंने कहा कि अगर टिकट मिल जाए तो वो चुनाव जीत सकते हैं।
मैंने उनसे पूछा, “सिर्फ चुनाव जीत सकते हैं, इसलिए आप टिकट चाहते हैं, ये तो बहुत अजीब बात हुई।”
“इसमें अजीब क्या है? राजनीतिक पार्टियों ने यही तो आधार रखा है कि जो चुनाव जीत सकता है, उसे टिकट दे दो।”उनकी बातें सुन कर मैं गहरी सोच में डूब गया। नेता जी ने मुझे टोका, “कहाँ खो गये संजय सिन्हा?” “मैं सोच रहा हूँ कि मेरे पास भी बहुत से लड़के-लड़कियाँ नौकरी के लिए आते हैं। मैं सबसे पूछता हूँ कि आप टीवी पत्रकारिता में क्यों आना चाहते हैं? ज्यादातर लड़के कहते हैं कि उन्हें रिपोर्टर बनने का शौक है। उन्हें रिपोर्टर बनना ग्लैमरस लगता है। ज्यादातर लड़कियाँ कहती हैं कि उन्हें एंकर बनना पसंद हैं। उन्हें भी एंकर बनना ग्लैमरस लगता है। ये लोग कहते हैं कि टीवी पत्रकारिता में लोगों से मिलने के मौके मिलते हैं, यहाँ करियर बहुत अच्छा होता है।”
नेता जी मेरी बातें सुन कर सिर हिलाते रहे। फिर उन्होंने कहा कि ठीक ही तो कहते हैं, रिपोर्टरिंग में बहुत मौके मिलते हैं, आगे बढ़ने के। बड़े-बड़े लोगों से मिलने का चांस मिलता है। फिल्ड है तो ग्लैमरस। और लड़कियाँ भी एंकर बन कर बहुत आगे बढ़ सकती हैं। सभी उन्हें पहचानते हैं। उनका रुतबा होता है।
मैं एकदम चुप रहा। नेता जी ने मुझे फिर टोका, “आप कुछ बोलते क्यों नहीं? आप मेरी मदद करेंगे न?”मैंने उनसे इतना ही कहा कि मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ।
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एक बार एक गुरु के चार शिष्य घोड़े पर कहीं जा रहे थे। अचानक गुरु उन्हें सामने दिख गये। चारों शिष्य अदब से घोड़े से नीचे उतरे। सबने गुरु के आगे शीश झुकाए। गुरु ने पूछा कि तुम घोड़े पर क्यों चल रहे हो?
पहले शिष्य ने कहा कि वो कुछ सामान साथ लेकर जा रहा है, बोझ उसे अपनी पीठ पर नहीं उठाना पड़ रहा, इसलिए। गुरु मुस्कुराए। उन्होंने कहा कि तुम बहुत अच्छा कर रहे हो। भविष्य में तुम्हारी पीठ मेरी पीठ की तरह झुकेगी नहीं।
दूसरे शिष्य ने कहा कि वो नदी, पर्वत का लुत्फ लेने के लिए घोड़े की सवारी कर रहा है।
गुरु ने उसकी भी सराहना की। कहा कि तुम संसार को देखने की कोशिश कर रहे हो। तुम एक दिन इस संसार को समझ पाओगे। तीसरे शिष्य ने कहा कि वो घुड़सवारी के दौरान मन ही मन नयी कविताएँ रचता है। ऐसे घूमते हुए उसका मन एकाग्रचित होता है।
गुरु ने कहा कि तुम सचमुच बड़े कवि बनोगे। चौथा शिष्य चुप खड़ा रहा। गुरु ने पूछा कि तुम कुछ क्यों नहीं कहते? शिष्य ने कहा, “गुरुजी मेरे पास इनकी तरह कोई वजह नहीं है। मैं दरअसल घुड़सवारी नहीं कर रहा। मैं तो एक जरूततमंद को अपने घोड़े से उसके गंतव्य तक पहुँचा कर लौट रहा हूँ।”
गुरु जी उस शिष्य के कदमों में बैठ गये। कहने लगे, “आज से मैं तुम्हारा शिष्य हूँ।”
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मैं उन लोगों को नौकरी देना नहीं चाहता, जो ग्लैमर सोच कर पत्रकारिता में आना चाहते हैं। जो ये कहते हुए भी आने की कोशिश करते हैं कि कहीं और बात नहीं बन रही, प्लीज मदद कर दीजिए। दरअसल ऐसे लोगों को पत्रकारिता में नहीं आना चाहिए। मैं उन लोगों के चुनाव लड़ने का भी विरोध करता हूँ, जो किसी गणितीय आधार पर चुनाव जीतने की योग्यता रखते हैं। मेरी निगाह में राजनीति में उन्हें ही आगे बढ़ना चाहिए, जो वाकई जनता से जुड़ कर उनके लिए कुछ करना चाहते हैं। राजनीतिक पार्टियों को लोगों का इंटरव्यू लेते हुए ये पूछने की जगह कि तुम चुनाव कैसे जीतोगे, ये पूछना चाहिए कि तुमने लोगों के लिए क्या किया है?
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मेरे सोचने से क्या होगा? सच यही है कि पत्रकारिता में ऐसे लोग ही आते रहेंगे, जिन्हें इसमें ग्लैमर नजर आता है। राजनीति में टिकट वही पाते रहेंगे, जो किसी तरह चुनाव जीतने का दम दिखा सकते हैं। मेरा यकीन कीजिए, ऐसे लोगों से मिल कर उनके चरणों मैं बैठ कर ये कहने का मेरा दिल कभी नहीं करेगा कि मैं आपका शिष्य हूँ। मैं तो शिष्य उसी का बनूँगा, जो ये कहता हुआ मुझसे नौकरी पाने आयेगा कि वो पत्रकार बनना चाहता है, क्योंकि जनता के मुद्दों से उसका सरोकार है। मैं उस नेता को नेता मानूँगा, जो ये कहता हुआ मेरे पास आएगा कि टिकट-विकट छोड़िए, मैं लोगों के लिए काम करता हूँ, करता रहूँगा।
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काश ऐसा होता!
(देश मंथन 07 जनवरी 2016)