दिल की सुनो, बदलाव भी जरूरी

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

प्रिय संजय सिन्हा,

पिछले तीन दिनों से तुम जयप्रकाश नरायण, इमरजंसी, इन्दिरा गाँधी, अच्छे दिन वगैरह-वगैरह लिख रहे हो उसका फल तुमने भोग लिया है। कहाँ तुम एक-एक पोस्ट पर हजार-हजार लाइक बटोरा करते थे, और जबसे तुमने जरा राजनीतिक यादों की झलकियों को दिखाने की कोशिश की, तुम्हें तुम्हारी औकात पता चल गयी।

पहले दिन चार सौ, फिर तीन सौ, और फिर ढाई सौ लाइक। इतनी लाइक तो अमिताभ बच्चन के बुरे दिन की फिल्मों को भी मिल जाया करती थी। तुम अब समझ गये होगे कि राजनीति-फाजनीति पर लिखना सबके बूते की बात नहीं। 

तुम तो अपनी मुहब्बत की कहानियाँ लिखा करो। तुम लोगों को बैताल पचीसी जैसी कहानियाँ सुनाया करो। लोगों को मॉस्को, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में मिली गोरी-गोरी येलेनाओं की कहानियाँ सुनाओ। उन्हें बताओ कि तुमने पहली बार जब मारिया को आई लव यू कहा था, तब कैसे कहा था।

तुम, माँ-बेटे के रिश्ते की कहानी लिखो। बहन-भाई के दुलार की कहानियाँ लिखो। सिनेमा संसार में मुलाकातों के संस्मरण लिखो। कभी अमिताभ बच्चन के साथ, कभी करीना कपूर के साथ अपनी तस्वीरें खिंचवा कर उसे यहाँ फेसबुक पर चस्पा करो। फिर देखो, हजार क्या कई हजार लाइक मिल जायेंगे।

तुम लोगों के रोने-धोने की, उनकी मुसीबतों की कहानी भी लिखो, लेकिन तुम उन्हें राजनीति के वो सारे पाठ पढ़ाने की कोशिश मत करो, जिनके बूते हजारों साल से उन्हें मूर्ख बनाया जा रहा है। तुम्हारे फेसबुक के परिजन बेहद परिपक्व हैं। वो सारा सच जानते हैं। उन्हें तुम कल्पना लोक की सैर कराओ। तुम अपनी यादों से कोई कहानी निकाल सकते हो तो सविता वाली कहानी निकालो। तुम याद करने की कोशिश करो कि सविता कैसे बीए की पढ़ाई के दौरान तुम्हारी किताब में प्रेम पत्र छोड़ गयी थी। तुम ये भी लिख सकते हो कि कई दिनों तक तुमने किताब खोली ही नहीं, लिहाजा उस पत्र को तुम पढ़ ही नहीं पाये।

तुम अपने फेसबुक परिजनों को ये क्यों नहीं बताते कि सविता को तुम पसन्द करते थे, लेकिन हिम्मत ही नहीं हुई कि उससे अपनी पसन्द का इजहार कर पाओ, और जब उसने हिम्मत करके अपनी बात कह भी दी, तो तुम अपनी किस्मत की मार के मारे उस सच से रूबरू ही नहीं हो पाये। तुम्हारे कोई जवाब न आने का नतीजा रहा कि सविता बीए के बाद ही शादी करके पटना से फरक्का चली गयी और जब चिट्ठी तुम्हें मिली तो तुम माथा पीटते रह गये।

तुम अपनी नाकाम मुहब्बतों की ढेरों कहानियाँ अपने फेसबुक परिजनों को सुना सकते हो। मुहब्बत की नाकाम कहानियाँ ही हिट होती हैं। जो मुहब्बत नाकाम नहीं होती, उसके नसीब में बैंड, बाजा और बारात होती है। बैंड, बाजा, बारात की कहानियाँ उबाऊ होती हैं।

तुम उबाऊ कहानियों को लिखना बंद करो। अभी तुम्हारे पास बहुत स्टॉक है। अभी तुम्हारे पास बहुत कुछ है कहने के लिए। तुम राधा-कृष्ण, राम-सीता की कहानी भी लिख सकते हो। तुम चाहो तो द्रौपदी और कृष्ण के गुप्त प्यार का सच भी उजागर कर सकते हो। तुम द्रौपदी के मन के किसी कोने में जाकर पढ़ सकते हो कि पाँच-पाँच पतियों के होते हुए भी वो कृष्ण पर मन ही मन कैसे लट्टू हुई पड़ी थीं।

तुमने तो धर्म शास्त्र का गहन अध्ययन किया है। अर्जुन, कर्ण, कृष्ण सब तुम्हारे पुराने परिचित हैं, तुम उन्हीं की कहानियाँ लिखो। तुम रिश्तों की कहानियाँ सुनाया करो, जिन्दगी की कहानियाँ सुनाया करो। सुबह-सुबह लोग तुम्हारे पास राग राजनीति सुनने नहीं आते। यहाँ फेसबुक पर एक ढूंढो, लाख लोग राजनीति पर प्रोफेसर बने बैठे नजर आयेंगे। तुम उनके घर में सेंध मारने की कोशिश मत करो। 

संजय, मैं जानता हूँ कि बहुत बार तुम्हारा मन भी बिलबिला उठता होगा, अपने शहर और देश का हाल देख कर। ऐसे में ही तुम्हें इन्दिरा गाँधी, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के शासन की याद सताने लगती होगी। मैं जानता हूँ कि तुम इन दिनों दिल्ली की राजनीति से बेहद आहत हो, मैं समझता हूँ इस सच को। पर क्या करें दोस्त, तुम्हारे परिजनों को ऐसी खबरों की आदत पड़ गई है। वो सुबह-सुबह रिश्तों के भजन सुनना चाहते हैं, तुम्हारी वाल पर वो उन्हीं रिश्तों की तलाश करने आते हैं, जिन रिश्तों को उन्होंने कभी अपनी तो कभी उनकी गलती से खो जाने दिया है। वो तुम्हारी वाल पर आते ही इसलिए हैं ताकि उनकी भीगी पलकों पर ठंडी हवा के कुछ झोंके पड़ सकें। और तुम हो कि कभी-कभी झक्की हो कर अपनी मनमानी करने लगते हो। 

ध्यान रखो, राजनीति की बदबू से सड़ चुके इस देश में अब कोई राजनीति को गंभीरता से नहीं लेता। ढेर सारे पेशों की लिस्ट में ये भी एक पेशा है। यही एक पेशा है, जिसके लिए तुम्हें किसी तैयारी की नहीं, बस मौके की दरकार रहती है। जैसे ही मौका लगे पत्रकारिता छोड़ कर किसी नेता से गलबहियाँ कर बैठना। मैं तो कहता हूँ कि तुम्हारे बाल अभी काले हैं। काले बाल वालों को राजनीति में सीरियसली नहीं लिया जाता। अपने बालों पर फेयर एंड लवली लगाना शुरू करो। बालों को जरा गोरा बनाओ, फिर राजनीति पर लिखो। अगर तुम सचमुच चाहते हो कि तुम्हारे जेपी, इन्दिरा और इमरजंसी वाले पोस्टों को हजार लाइक मिलें, तो गंभीर छवि बनाओ। ऊँची-ऊँची बातें करने लगो। राजनीति है मजेदार चीज। बड़ी-बड़ी बातें करके इसे हासिल करो, फिर छोटी-छोटी हरकतें करके खुश रहो। 

खैर, मैं वही गलती कर रहा हूँ, जो नहीं करनी चाहिए। फिलहाल तुम रोज सुबह उठ कर या तो अपने परिजनों को खुश कर लो, या फिर राजनीति पर तीर चला लो। 

अरे! जेपी और इन्दिरा के इस दुनिया से गए करोड़ों साल बीत चुके हैं। अब उनके पीछे क्यों अपनी सुबह खराब करते हो। वो तो ये तुम्हारे लॉयल रिश्ते हैं, जो तुम्हारी बोरिंग पोस्ट को भी लाइक बटन दबा कर तुम्हारे हौसले को बढ़ाने की कोशिश कर देते हैं। लेकिन अगर तुम नहीं सुधरे, और वही सब अंट-शंट लिखते रहे तो तो धीरे-धीरे तीन सौ से दो सौ, दो सौ से पचास और पचास से पच्चीस लाइक तक पहुँच जाओगे। फिर कहोगे कि अब मैं फेसबुक पर नहीं लिखता। इसीलिए समय रहते तुम्हें समझा रहा हूँ कि सुधर जाओ। अपनी पोस्ट में रिश्तों की कहानियाँ लिखा करो। मुहब्बत जिन्दाबाद के नारे लगाओ। 

और हाँ, सुनो, थोड़ा लिखा, ज्यादा समझना। 

पत्र का जवाब देना। सोचना कि तुम्हारे परिजन वाकई में चाहते क्या हैं। 

मन करे तो मेरी बात मानना, न करे तो मत मानना। मेरा क्या है, आज यहाँ, कल वहाँ। 

तुम मेरे अपने हो, इसलिए इतनी बातें लिख बैठा। मेरी बात बुरी लगी हो तो माफ करना। 

तुम्हारा अपना,

(देश मंथन, 22 मई 2015)

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