विद्युत प्रकाश :
सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन से 12 किलोमीटर दूर है रणथंभौर का किला। इतिहास में कई लड़ाइयों का साक्षी रणथंभौर अब जाना जाता है टाइगर सफारी के लिए तो गणेश जी के मंदिर के लिए।
चौहान राजाओं ने ये किला 10वीं सदी में बनवाया था। इस किले से चौहान राजाओं ने कई लड़ाईयाँ लड़ी। लेकिन 1569 में इस किले पर अकबर का कब्जा हो गया। किले के आसपास बहुत बड़ा इलाका जंगल है। आजादी के बाद इस जंगल के संरक्षण की कवायद शुरू की गयी। 1973 में भारत सरकार ने रणथंभौर के जंगल को टाइगर रिजर्व (बाघों के लिए अभ्यारण्य) घोषित किया। 1980 में इस नेशनल पार्क का दर्जा मिला।
यहाँ आप बंद जीप में बैठकर टाइगर सफारी के लिए जा सकते हैं। रणथंभौर के बाघों पर शिकारियों की बुरी नजर रहती है। जब टाइगर देखने के इरादे से जायें, तो जंगल में कुलांचे भरते बाघ दिखायी देंगे ही इसकी कोई गारंटी नहीं रहती। इसलिए जब मैं रणथंभौर गया तब टाइगर सफारी में कोई रूचि नहीं दिखायी। हाँ, किला घूमने के लिए हमारा पूरा समूह निकल पड़ा। किले का दायरा भी बहुत बड़ा है.. घूमते घूमते थक जायेंगे। ऊँची ऊँची दीवारें बड़ा सा गेट।
भगवान के नाम आती है डाक – किले के अंदर है प्रसिद्ध गणेश जी का मंदिर। कहते हैं कहीं भी कोई शादी व्याह हो सबसे पहला कार्ड रणथंभौर के गणेश जी के नाम भेजा जाता है। यह शायद देश का एकमात्र मंदिर होगा जहाँ भगवान के नाम डाक आती है। डाकिया इस डाक को मंदिर में पहुँचा देता है। पुजारी इस डाक को भगवान गणेश के चरणों में रख देते हैं। घर में कोई भी मांगलिक कार्य है लोग गणेश जी को बुलाने के लिए यहाँ रणथंभौर वाले गणेश जी के नाम कार्ड भेजना नहीं भूलते। किले के आसपास कई तालाब भी हैं। इन तालाबों को अलग अलग नाम से जाना जाता है। पद्म तालाब, राजाबाग का तालाब, मलिक तालाब आदि।
(देश मंथन, 26 जून 2014)