सासाराम का ऐतिहासिक गुरुद्वारा चाचा फग्गूमल

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

सासाराम शहर शेरशाह के मकबरे के लिए प्रसिद्ध है। पर इस शहर में सिख इतिहास से जुड़ी महत्वपूर्ण स्मृति है। शहर के जानी बाजार में है ऐतिहासिक गुरुद्वारा चाचा फग्गूमल, जहाँ सिखों के नौंवे गुरू तेगबहादुर जी 21 दिनों तक रहे और संगतों को अपने आशीर्वाद से निहाल किया।

पर सासाराम रेलवे स्टेशन पर इस ऐतिहासिक गुरुद्वार के बारे में जानकारी देती हुई कोई पट्टिका नहीं लगायी गयी है। रेलवे स्टेशन से इस गुरुद्वारे की दूरी महज दो किलोमीटर है। हालाँकि जाने का रास्ता सकरी गलियों से होकर है। श्रद्धालु शहर के धर्मशाला रोड से होकर गोला फिर नवरतन बाजार होते हुए जानी बाजार पहुँच सकते हैं। या फिर पोस्ट आफिस चौक से लश्करीगंज होते हुए जानी बाजार पहुँचा जा सकता है।

यहाँ तक पहुँचने का सुगम साधन रिक्शा ही है क्योंकि बड़ी गाड़ियों के पहुंचने के लिए अच्छी सड़के नहीं हैं। 2016 में सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी का 350वाँ प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। इसके लिए उनके जन्मस्थान पटना साहिब में भव्य तैयारियाँ की जा रही हैं। इस सिलसिले में थोड़ा सा ध्यान गुरुद्वारा चाचा फग्गूमल के आसपास के सौंदर्यीकरण पर भी दिया जाता तो बेहतर होता।

 

सासाराम में 21 दिनों तक तक रहे नवम गुरु तेगबहादुर

कहा जाता है नवम पातशाही गुरु तेगबहादुर के सुमिरन से नौ निधियों का घर में वास होता है। सासाराम के लोग धन्य रहे जिन्हें हिंद की चादर नवम पातशाही का कई दिनों तक आशीर्वचन सुनने को मिला। 1666 ईश्वी में गुरु तेगबाहदुर अपने लाव लश्कर के साथ पूरब की उदासी (यात्रा) पर निकले। इस यात्रा के दौरान नाम जपो किरत करो वंड छको का संदेश देते हुए वे काशी से पटना की यात्रा पर थे।

इस दौरान वे सासाराम में 21 दिनों तक रुके। यहाँ पर वे नानकशाही संत चाचा फग्गूमल की कुटिया में रहे। उनके साथ माता नानकी, उनकी धर्मपत्नी माता गुजरी, पत्नी भ्राता बाबा कृपाल चंद भी थे।

नवम पातशाही ने इस ऐतिहासिक शहर को पवित्र करने के साथ ही यहीं पर रहकर राग जैजैवंती महला, धूर की वाणी, रामु सुमरी रामु सुमरी इहे तेरे काजि है, मैया को सरनि तियागु प्रभू के सरनि लागू, जगत सुख मानु मिथिया झूठो सब साझु है.. की गुरुवाणी बक्शीश की थी। इसकी चर्चा गुरु ग्रंथ साहिबजी के 1352 पन्ने पर शोभायमान है।

इन ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि पंथ प्रमाणित ग्रंथ सूरज प्रकाश और तवारीख गुरु खालसा में भी होती है। गुरुनानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर और पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में इस पर शोध भी हो चुका है।

नवम पातशाही की कई स्मृतियाँ हैं यहाँ चाचा फग्गूमल पंजाब के फगवाड़ा शहर से पंथ प्रचार के लिए बिहार आये थे। उसके बाद वे यहीं के होकर रह गये। सासाराम के इस ऐतिहासिक गुरुद्वारे में नवम पातशाही से जुड़ी कई स्मृतियाँ हैं।

 

दर्शनी दरवाजा (छोटा दरवाजा) –  यह 45 इंच ऊँचा, 35 ईंच चौड़ा छोटा दरवाजा है जिससे होकर नवम पातशाही जी ने चाचा फग्गूमल की कुटिया में दर्शन दिया था। इस दरवाजे को मूल स्वरूप में आज भी देखा जा सकता है। नवम पातशाही द्वारा साध संगत को भेंट किया गया शस्त्र साहिब, चाचा फग्गूमल का खड़ाऊ और नाम सिमरनी माला के भी दर्शन इस गुरुद्वारे में किए जा सकते हैं। इस माला में 76 मनके हैं।

गुरुजी द्वारा लगाया गया 350 साल से ज्यादा पुराना बेर का पेड़ गुरुद्वारा परिसर में मौजूद है। यह पेड़ अब भी हरा भरा है। इसमें सालों भर फल लगते हैं। वहीं उस चौकी के दर्शन किए जा सकते हैं जिसपर गुरु जी अपनेसासाराम प्रवास के दौरान स्नान किया करते थे।

गुरुद्वारा चाचा फग्गूमल साल 2012 में नए दरबार साहिब का निर्माण किया गया है। इसका निर्माण में गुरुद्वारा बंग्ला साहिब के जत्थेदार संत बाबा हरिवंश सिंह की जी भूमिका है। अभी यहाँ लंगर हॉल और यात्री निवास का निर्माण कार्य कराने की कोशिशें जारी हैं। गुरुद्वारे में अरदास नियमित सत्संग श्री अकाल तख्त साहिब की मर्यादा में होता है।

सासाराम का दूसरा प्रमुख गुरुद्वारा है गुरुद्वारा गुरु का बाग। कहा जाता है यहीं पर नवम पातशाही गुरु तेगबहादुर जी ने अपना घोड़ा बांधा था। गुरुद्वारा चाचा फग्गूमल के पास ही गुरुद्वारा टकसाल संगत, गुरुद्वारा छोटी संगत, गुरुद्वारा बड़ी संगत जैसे गुरुद्वारे हैं। सासाराम शहर में सिख समुदाय के लोगों अच्छी खासी संख्या है जो इन गुरुद्वारों के इंतजामात देखते हैं।

(देश मंथन, 27 जून 2014)

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