संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पांडव लाक्षागृह में बतौर मेहमान बुलाए गये थे और जब उसमें आग लग गयी तो वो फँस गये थे। कहीं से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था। अब कोई करे भी तो क्या करे। लाक्षागृह धू-धू कर जल रहा था। युधिष्ठिर विचलित थे। अब इसमें से कोई कैसे बाहर निकले। सबकी आँखों में यही सवाल था।
ये कौरवों की तरफ से रचा गया रिश्तों का लाक्षागृह था, जिसमें भस्म हो जाना पांडवो की नियती थी।
तभी अचानक सहदेव उठे। उन्होंने बहुत अदब से अपने बड़े भाई से कहा कि उन्हें इस जलते हुए लाक्षागृह से बाहर निकलने का रास्ता पता है।
युधिष्ठिर चौंके। “पता है? अरे, जब पता है, तो फिर बता क्यों नहीं रहे? तुम देख तो रहे हो कि हम पाँचों भाई इसमें जल कर भस्म होने वाले हैं।”
“पर भइया, कोई मुझसे पूछेगा, तभी तो बताऊँगा न! आप सब मुझसे इतने बड़े हैं, मैं अपने मन से कैसे बता सकता हूँ?”
युधिष्ठिर समझ गये कि सहदेव बिना पूछे कभी नहीं बोलते। उन्होंने सहदेव से पूछा, “मेरे भाई, बताना जरा इससे कैसे बाहर निकला जा सकता है?”
सहदेव ने कहा, “बड़ा आसान तरीका है, भैया। इधर एक सुरंग है, जिससे निकला जा सकता है। जब हम यहाँ आ रहे थे, तभी मुझे विदुर चाचा ने किसी षडयंत्र की आशंका में मुझे इस रास्ते के बारे में बताया था।”
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मुझे आज महाभारत की कहानी नहीं सुनानी। मुझे तो बस इतना बताना है कि पिछले दिनों मैंने अपनी एक पोस्ट में लिख दिया था कि इस संसार में सभी रिश्तों से बड़ा होता है, पति और पत्नी रिश्ता। सभी रिश्तों से महान होता है औरत और मर्द का यह रिश्ता।
“क्या कह रहे हो, संजय सिन्हा? एक माँ का बेटा ऐसा कह रहा है? क्या इस संसार में स्त्री-पुरुष का यही रिश्ता सबसे महान रिश्ता है? तुम हरदोई गए थे, वहाँ भी तुमने अपने भाषण में यही कह दिया था कि इससे बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता। क्यों? कैसे?”
जब मैंने तीन-चार दिन पहले अपनी पोस्ट में इस बात की चर्चा की थी, तब मैं इन सभी सवालों के जवाब देने के लिए तैयार था। मैंने अपनी उसी पोस्ट में यह लिख दिया था कि कोई अगर मुझसे पूछेगा तब बताऊँगा।
मेरे तमाम परिजनों ने अपनी प्रतिक्रिया जताई, पर किसी ने मुझसे मेरे ऐसा कहने और लिखने पर पूछा ही नहीं। जब किसी ने पूछा ही नहीं तो मैं अपने मन से क्यों बताता?
खैर, कल रात अपनी पुरानी पोस्ट पर आए आखिरी कमेंट को मैं पढ़ रहा था। उसी पोस्ट पर आख़िरी कमेंट था, @sarika choudhary का। उन्होंने मुझसे पूछ ही लिया कि पति-पत्नी का रिश्ता सबसे अनमोल होता है, कैसे? आज बता ही दीजिए, सर।”
लो जी, सारिका जी ने पूछ लिया और अब सहदेव तैयार हैं बताने के लिए।
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कहा जाता है कि दुनिया में रिश्ते दो तरह के होते हैं। रक्त के रिश्ते, समाज के रिश्ते। और इन सबसे परे होता है पति-पत्नी का रिश्ता।
माँ, बेटा, भाई, बहन, दादा, दादी, नाना,नानी, बुआ, मौसी, चाचा, मामा ये सभी रिश्ते रक्त के होते हैं। ये रिश्ते ईश्वर की ओर से हमें बतौर उपहार मिले होते हैं। इसके अलावा ढेरों रिश्ते हम सामाजिक परिवेश में विकसित करते हैं। जैसे दोस्ती का रिश्ता, गुरु-शिष्य का रिश्ता, पड़ोसी का रिश्ता, बाकी लोगों से हमारा रिश्ता। पर इससे परे एक रिश्ता बनता है विवाह का रिश्ता।
“अरे भाई, यह सच तो सारा संसार जानता है।”
हाँ, सारा संसार इन रिश्तों के सच को जानता है। पर मैं यह कहना चाहता हूँ कि पति-पत्नी का रिश्ता इकलौता ऐसा रिश्ता होता है जिसमें तन और मन दोनों के बीच सामंजस्य बनता है। यह एक ऐसा रिश्ता होता है, जिसमें रक्त का संबंध नहीं होता। पर यही एक रिश्ता होता है, जिसे जीवन साथी का नाम दिया गया है। जीवन साथी, यानी जीवन भर का साथ। हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक तो ये इकलौता रिश्ता है जिसमें सात जन्मों के साथ की बात कही गई है। यह इकलौता रिश्ता है जिससे सृष्टि का निर्माण होता है।
मैं इस रिश्ते की शुद्धता और अशुद्धता पर आज चर्चा नहीं कर रहा। मैं इस रिश्ते के मेल और बेमेल होने की बात भी आज नहीं कर रहा। मैं दुनिया के तमाम पति-पत्नियों के बीच दरक रहे रिश्तों का तानपुरा भी आज नहीं बजाने जा रहा। मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि यह इकलौता रिश्ता है, जिससे मनुष्य का निर्माण होता है।
क्योंकि यह इकलौता ऐसा रिश्ता है, जिसमें दोनों के बीच किसी तरह रिश्ता नहीं होता, पर एक डोर इन्हें आपस में बांधे रहती है। और इस डोर का कोई नाम नहीं होता।
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मैंने सिर्फ इतना ही कहना चाहा था कि जिससे हमारा कोई रिश्ता नहीं होता, जिससे हमारा कोई सरोकार नहीं होता, जो हमारा या हमारी कोई नहीं होती, उसके साथ मनुष्य के निर्माण का रिश्ता साझा करते हैं। इस रिश्ते की अहमियत बाकी रिश्तों से इसीलिए ज़्यादा होती है, क्योंकि सचमुच संसार का निर्माण इसी से होता है। क्योंकि यह मनुष्य का मनुष्य के साथ इकलौता रिश्ता है जो कर्म प्रधान होता है, भाव प्रधान होता है। जहाँ रक्त का बंधन नहीं होता, कर्म का बंधन होता है।
क्योंकि मनुष्य स्वयँ इस रिश्ते का चयन करता है, अग्नि के सामने यह प्रतिज्ञा करता है कि सुख में, दुख में, जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में मैं तुम्हारे साथ रहूँगा, रहूँगी इसलिए यह कमिटमेंट का भी रिश्ता होता है।
जो रिश्ता कमिटमेंट का होता है, वही सबसे बड़ा होता है। जिस रिश्ते में मन, कर्म और वचन, तीनों की साझेदारी हो, वो रिश्ता अनमोल होगा ही।
बाकी सभी रिश्ते पवित्र हो सकते हैं, महान भी हो सकते हैं, निस्वार्थ भी हो सकते हैं, पर पति और पत्नी का रिश्ता जन्मों का होता है।
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सहदेव के बताने पर पांडव रिश्तों के लाक्षागृह से सही सलामत निकल आए थे। अब आपको सोचना है कि कहीं आप भी रिश्तों के लाक्षागृह में तो नहीं फंसे हैं। अगर फंसे हैं, तो सहदेव की मान लीजिए। रिश्तों के लाक्षागृह से निकलने का एक ही रास्ता है।
ये रास्ता है ईमानदारी और प्रेम का।
सहदेव ने रास्ता बता दिया है, यह अब आप पर निर्भर करता है कि आप इससे निकलना चाहते हैं या फिर…।
(देश मंथन, 29 मार्च 2016)