भरोसे की नाव पर चलते हैं ‘रिश्ते’

0
188

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक 

माइक्रोस्कोप से मेरा पहला पाला दसवीं कक्षा में पड़ा था। मेरे टीचर ने मुझे वनस्पति शास्त्र की पढ़ाई में पहली बार प्याज के एक छिलके को माइक्रोस्कोप में डाल कर दिखाया था कि देखो माइक्रोस्कोप में ये कैसा दिखता है।

मैंने आँखें डाल कर प्याज के उस छिलके को देखा, मुझे उसमें हजार ऐसी तरंगें दिख रही थीं, जिन्हें हम कभी यूँ ही नहीं देख सकते। फिर कभी कुछ और देखा, कभी कुछ और। 

मेरे टीचर मुझे समझा रहे थे कि माइक्रोस्कोप उन चीजों को देखने का यंत्र है, जो चीजें हम अपनी सामान्य आँखों से नहीं देख सकते। 

इसी कड़ी में मैंने दही की एक बूंद स्लाइड पर रख कर माइक्रोस्कोप के नीचे रखा और ये देख कर हैरान रह गया कि बहुत से छोटे-छोटे किटाणु उसमें मौजूद थे। वो दिन था, आज का दिन है दही खाने में मुझे झिझक सी होती है। उसके बाद फिर कभी मेरे मन में माइक्रोस्कोप के नीचे झाँकने की इच्छा पैदा नहीं हुई। मेरे मन में ये बात बैठ गई कि जो चीज मुझे अपनी सामान्य आँखों से नहीं दिखती, उसे मुझे देखने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। हाँ, जिनके लिए वो शोध का विषय हो, वो बेशक माइक्रोस्कोप का सहारा ले सकते हैं। 

कल मेरे पास दो लोगों ने इनबॉक्स में संदेश भेजे। 

एक महिला को अपने पति के साथ नहीं रहना। उसे पति की बातें नहीं पसंद। उसे पति पर संदेह है।

एक सज्जन अपनी पत्नी के चरित्र को माइक्रोस्कोप में देखने की कोशिश में लगे हैं। वो उसके मेल, एसएमएस आदि को स्लाइड पर रख कर माइक्रोस्कोप के नीचे लगा रहे हैं। यकीनन उन्हें कुछ न कुछ जीवाणु दिख सकते हैं। 

मेरा सवाल है क्यों?

किसी भी रिश्ते में इतनी तस्दीक के बाद बचेगा क्या? किसी को अपनी पत्नी पर संदेह हो या किसी को अपने पति पर संदेह हो तो उसे उन रिश्तों को यूँ ही छोड़ देना चाहिए, बजाए इसके कि उसे माइक्रोस्कोप के नीचे डाल कर उसके जीवाणुओं को देखा जाए। संसार में किसी भी व्यक्ति के मन के करोड़वें हिस्से की स्लाइड बना कर अगर माइक्रोस्कोप के नीचे रखा जाए, तो मेरा यकीन कीजिए आदमी का आदमी से रिश्ता टूट जाएगा। 

रिश्तों में ‘स्पेस’ देने की आदत विकसित करनी चाहिए। जिन रिश्तों में प्यार हो, वहाँ संदेह के विषाणुओं की तलाश नहीं करनी चाहिए। संदेह के विषाणु देखने निकलेंगे तो माइक्रोस्कोप में कुछ न कुछ तो नजर आएगा ही, लेकिन जो सामान्य आँखों से नहीं दिख रहा, उसे देखने की जरूरत भी क्या है? हाँ, जिन मनोवैज्ञानिकों को इस पर शोध पत्र तैयार करने की जरूरत हो, उनके लिए सब ठीक है, लेकिन मेरा यकीन कीजिए, ‘रिश्ते’ भरोसे की नाव पर चलते हैं, जिनके पास भरोसे की नाव नहीं होती, उनके रिश्ते डूब जाते हैं। 

जो रिश्तों की स्लाइड बनाते हैं, उनके रिश्ते खत्म हो जाते हैं और कोई जरूरी नहीं कि रिश्तों की मेरी ये परिभाषा सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी, स्त्री-पुरुष के संदर्भ में हो। ये सच संसार में हर रिश्ते पर लागू है। 

मेरा मानना है और पहले भी मैं लिख चुका हूँ कि रिश्तों में दूसरे पर सिर्फ भरोसा करना चाहिए और खुद पर नियंत्रण। जो भरोसा नहीं करते उनके रिश्ते नहीं चलते। आप अपनी सबसे प्रिय खाने की वस्तु को माइक्रोस्कोप में डाल कर देख लीजिएगा, आप नहीं खा पायेंगे। आप अपने सबसे प्रिय रिश्ते को भी माइक्रोस्कोप में डालेंगे तो रिश्ते नहीं निभा पायेंगे। भगवान ने आँखों में जितनी शक्ति दी है, वो पर्याप्त है आपके जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिये। अपनी आँखों पर भरोसा कीजिये और वो सब खाइये जिसे खाते हैं। अपने मन पर भरोसा कीजिये और उन सभी रिश्तों को निभाने की कोशिश कीजिये, जिन्हें आपको निभाना है। 

बचपन में माइक्रोस्कोप की स्लाइड पर दही की एक बूंद डालने की भूल से मुझे आज भी दही खाने में मुश्किल आती है। आप क्यों ऐसी गलती करते हैं? सारी दुनिया को पता है कि दही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। काश मैंने उसे माइक्रोस्कोप में न डाला होता। दही छूट जाने का अफसोस मुझे आजतक है। सोचिये रिश्ते छूट जायेंगे, तो उसका अफसोस कितने दिनों तक रहेगा। 

इसलिये रिश्तों को जीने की कोशिश कीजिये। जब रिश्ते बहुत बिगड़ जायेंगे और सचमुच निभाने लायक नहीं रहेंगे, तो सबकुछ खुद-ब-खुद सामने नजर आने लगेगा। उसके लिये माइक्रोस्कोप की जरूरत नहीं पड़ेगी।

(देश मंथन, 13 मार्च 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें