संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे दफ्तर के एक साथी को कुछ महीने पहले पिता बनने का सौभाग्य मिला है।
कल शाम मैंने उसे दफ्तर की कैंटीन में खाना खाते देखा। मैं यूँ ही उसके पास कुछ देर के लिए बैठ गया और उससे बातचीत करने लगा। मैंने उससे पूछा कि तुम अभी खाना खा रहे हो, तो क्या घर जाकर खाना नहीं खाओगे?
मेरे साथी ने कहा, “नहीं।”
मैंने उसे टोका, “तुम दोपहर में खाना यहीं खाते हो। रात में भी खाना यहीं खाते हो। इसका मतलब ये कि तुम घर में अपने परिवार के साथ खाना खाते ही नहीं।”
वो मेरी ओर देखने लगा। उसे मुझसे इस तरह की टिप्पणी की उम्मीद नहीं थी।
मैंने उससे आगे पूछा, “कुछ महीने पहले तुम पिता बने हो, बच्चा कितना बड़ा हो गया? अब तो वो उठने-बैठने लगा होगा।”
उसने अब धीरे कहा, “संजय तुमने आज बड़ी अजीब बात कह दी। सचमुच पिछले कई वर्षों से मैं अपनी पत्नी के साथ दोपहर या रात का खाना नहीं खा पाता। हमारी ड्यूटी ही अजीब है। हम घर जाते ही सिर्फ सोने के लिए हैं। और तुमने बच्चे के बारे में पूछ कर तो मुझे उलझन में ही डाल दिया।
“मैं जब घर पहुँचता हूँ, तो बच्चा सोया हुआ होता है। सुबह मैं उठते ही इतना व्यस्त हो जाता हूँ कि मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि वो बैठने लगा है या नहीं। वो जरूर बैठने लगा होगा। पर मैंने उसे ज्यादातर समय सोये हुए ही देखा है। सुबह कभी-कभी मेरे जागने से पहले नौकर उसे गोद में लेकर बाहर पार्क में चला जाता है, ताकि मेरे तैयार होने में मुझे मुश्किल न हो।”
इतना कह कर वो एक गहरी सोच में डूब गया।
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हम में से ज्यादातर लोग अपने काम में इतना व्यस्त होते हैं कि अपने घर-परिवार के लोगों, जिनके साथ रहते हैं, सोते हैं, जागते हैं, उन्हीं से नहीं मिल पाते। हमें ऐसा लगता है कि सब हमारे साथ ही तो हैं। पर हकीकत ये है कि हम साथ रहते हुए भी अपने रिश्तों से बहुत दूर रहते हैं।
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एक बार जंगल में एक शेर का बच्चा इधर-उधर घूमता हुआ बाकी जानवरों से पूछता फिर रहा था कि बहादुर कैसे बनते हैं?
बात शेरनी तक पहुँची। शेरनी ने अपने बच्चे को अपने पास बुलाया। उससे पूछा कि बेटा, तुम जंगल के दूसरे जानवरों से ये क्यों पूछ रहे थे कि बहादुर कैसे बना जाता है?
शावक ने बहुत मासूमियत से कहा, “माँ, मैं बहादुर बनना चाहता हूँ। मैं जानना चाहता हूँ कि शिकार कैसे किया जाता है। अभी तो मैं छोटा हूँ, अभी ही नहीं सीखा, तो कब सीखूँगा?”
माँ ने अपने बच्चे से कहा, “बेटा, तुम्हारे पिता इस जंगल के सबसे बहादुर जानवर हैं। सारा जंगल उनकी बहादुरी से थर्राता है। तुम उनसे सीखो, तुम इधर-उधर क्यों भटक रहे हो, बहादुरी सीखने के लिए?”
शेर के बच्चे ने धीरे से कहा, “माँ, पिताजी के पास समय ही कहाँ है? वो तो सुबह मेरी नींद खुलने से पहले ही शिकार पर निकल जाते हैं। जब वो आते हैं, तो मैं सो चुका होता हूँ। ये सही है कि वो हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं, वो हमारे लिए शिकार लेकर आते हैं, लेकिन मैं उनसे मिल ही नहीं पाता, तो सीखूँगा कब?
इसीलिए मैं बहादुरी का पाठ पढ़ने के लिए बाकी जानवरों के चक्कर काट रहा हूँ।”
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आप भी अपने घर, परिवार, रिश्तों को समय दीजिए।
वो रिश्तों की तलाश कहीं और करने लगें, इससे पहले आप सोचना शुरू कर दीजिए। अगर आज नहीं सोचेंगे, तो एक दिन बहुत देर हो जाएगी।
दफ्तर में तरक्की खूब मिल जाएगी, कई गाड़ियाँ और कई बगंले बन जाएँगे, बैंक में भी खूब बैलेंस हो जाएगा।
फिर जब आप चाहेंगे कि मिल कर इसका भोग किया जाए, तो आप पाएँगे कि आप अकेले हैं।
(देश मंथन, 06 जनवरी 2016)