प्यार के दीप

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कभी-कभी हर आदमी की इच्छा अतीत में लौटने की होती है। 

बहुत साल पहले मैं रिपोर्टर हुआ करता था। मैं सुबह रिपोर्टिंग पर निकलता और देर शाम तक गाड़ी में खबरें लिखता हुआ लौटता। अपनी खबर संपादक के सामने रखता और जब तक संपादक खबर को पढ़ते, मैं उनकी आँखों में झाँकता रहता। मैं यह देखने की कोशिश करता था कि उनकी आँखें कब-कब चमकीं। उनकी आँखों की चमक ही मेरा रिवार्ड हुआ करता था। 

संपादक महोदय भी जानते थे कि वो मुझे भेजेंगे कुछ रिपोर्ट करने के लिए और मैं ढूँढ कर ले आऊँगा कोई और रिपोर्ट। 

जब से मैं खुद संपादक बन गया हूँ, मुझे रिपोर्टिंग पर जाने का बहुत कम मौका मिलता है। अब मैं रिपोर्टरों की कॉपी पढ़ता हूँ और उनके लिखे को पढ़ कर अपनी आँखें चमकाता हूँ। पर आज मेरा मन कर रहा है कि मैं रिपोर्टिग करूँ। शुद्ध रिपोर्टिंग।

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हरदोई, 19 मार्च। अगर आपको लगता है कि इस संसार में सिर्फ बुराई, नफरत और हिंसा की खेती हो रही है, तो आपको उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर हरदोई आना चाहिए। हरदोई आप ट्रेन से आ सकते हैं, बस से आ सकते हैं या फिर लखनऊ तक विमान से आ कर करीब सवा सौ किलोमीटर का सफर सड़क मार्ग से तय कर सकते हैं। 

हरदोई पहुँच कर काली मंदिर वाले मार्ग से होते हुए आप टंड़ियावाँ ब्ल़ाक के सिकंदरपुर गाँव का रास्ता किसी से पूछेंगे, तो रास्ता बताने वाला पहले आपसे पूछेगा कि आप सर्वोदय आश्रम जाना चाहते हैं क्या? आप चौंकेंगे। फिर आप हाँ में सिर हिलाएँगे और कहेंगे कि हाँ, हाँ, आश्रम ही जाना है। 

अब आप पाएँगे कि जिससे आपने रास्ता पूछा था, वो आपकी ओर बहुत सम्मान भरी निगाहों से देख रहा है और फिर वो बताने लगेगा कि साहब आप इधर से दाहिने मुड़िएगा और उस पेड़ के पास से बाएँ मुड़ कर सीधे चलते जाइएगा। सिंगल रोड है, सड़क थोड़ी खराब है, रास्ते में जरा अंधेरा मिलेगा पर जब आप वहाँ पहुँचेंगे तो प्यार के हजार दीप आपको दिखने लगेंगे। 

मैं उन्हीं रास्तों से होता हुआ हरदोई से करीब चालीस मिनट में सर्वोदय आश्रम पहुँच गया। बहुत साल पहले रमेश भाई ने आचार्य विनोबा भावे से प्रभावित होकर निर्मला देशपांडे के साथ मिल कर इस आश्रम की नींव रखी थी। आश्रम की नींव रखे जाने की कहानी फिर सुनाउँगा, क्योंकि आज तो मैं आपको बतौर रिपोर्टर कहानी सुना रहा हूँ, तो लंबी बात में नहीं जाऊँगा। रमेश भाई की तब नयी-नयी शादी हुई थी और घर-संसार बसाने की उम्र में उन्होंने खुद को समाज सेवा से जोड़ लिया था। रमेश भाई की शादी Urmila Shrivastava से हुई थी। 

उर्मिला श्रीवास्तव की सहेलियाँ जिस उम्र में सफेद घोड़े पर सवार राजकुमार के आने के सपने बुना करती होंगी, उस उम्र में उर्मिला जी को मिला खादी का साथ। जब गाँव शहर की ओर पलायन कर रहा था, उर्मिला जी को मिला एक ऐसा गाँव जहाँ की भूमि ऊसर थी। पर पति के साथ कदमताल करती उर्मिला जी ने समाज सेवा अपनी मंजिल मान लिया।

अफसोस, इस आश्रम की नींव रखने वाले रमेश भाई का अचानक निधन हो गया। फिर एक दिन निर्मला देशपांडे भी इस संसार से चली गयीं। 

और पीछे रह गया एक बहुत बड़ा सपना। सपना गरीबों को शिक्षा का। बेसहारा, परित्यक्ताओं के कल्याण का। और जिन्दगी को जीने की उम्र में ये सारा भार चला आया रमेश भाई की पत्नी उर्मिला श्रीवास्तव पर। 

रिपोर्टर संजय सिन्हा अपनी उधेड़बुन में डूबे हुए सिकंदरपुर गाँव के सर्वोदय आश्रम के सामने खड़े थे। 

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मैं आश्रम की पूरी कहानी फिर कभी सुनाऊंगा। पर आज मैं आपको ले चलता हूँ यहाँ की उस शिक्षा व्यवस्था से रूबरू कराने, जहाँ उन लड़कियों को शिक्षा दी जा रही है, जिनकी पढ़ाई किसी वज़ह से छूट गयी और उम्र बढ़ती चली गयी। इस आश्रम ने उन लड़कियों को स्कूल से दुबारा जोड़ने की अनोखी मुहिम शुरू की। बड़ी उम्र की लड़कियों को, जिन्हें दुबारा स्कूल जाने में शर्म का अहसास होता था कि अब छोटी बच्चियों के साथ कैसे बैठ कर पढ़ाई करेंगे, उन्हें उकसाया गया कि शिक्षा से जुड़ो। आत्मनिर्भर बनने का ये सबसे कारगर उपाय है। गाँव की लड़कियों को समझा कर, मना कर यहाँ तक लाया गया उनका रिश्ता शिक्षा से दुबारा जोड़ा गया।

सुन कर आश्चर्य होगा, पर बहुत ही अजीब सिलेबस है यहाँ का। एक ही कक्षा में अलग-अलग उम्र की लड़कियाँ पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी और पाँचवीं कक्षा में साथ-साथ पढ़ती हैं। पढ़ाई के इस नायाब तरीके को यहाँ नाम दिया गया है, ‘उड़ान’।

सारी लड़कियाँ एक साल तक साथ पढ़ती हैं, फिर उनकी योग्यता और उम्र देख कर अगले साल उन्हें अलग-अलग कक्षाओं में भेज दिया जाता है। 

आपको पढ़ कर आश्चर्य हो सकता है, पर सच्चाई यही है कि इसी स्कूल को ध्यान में रखते हुए और यहाँ की पढ़ाई को फॉलो करते हुए अगस्त 2004 में पूरे देश में कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय की नींव रखी गई। हैरानी की बात ये है कि भारत सरकार की बहुत महत्वाकांक्षी योजना की इस सच्चाई के विषय में आप तब तक नहीं जान पाएँगे, जब तक आप खुद हरदोई के इस स्कूल तक पहुँच न जाएँ। मुमकिन है कि एकदिन पूरे संसार में पढ़ाई की यह योजना अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ दे और हरदोई गुमनामी में खो जाए, पर अगर मेरी यह रिपोर्ट अगर जिन्दा रही, तो याद रखिएगा कि सरकार की उस अमूल्य योजना का सूत्रपात यहीं से हुआ है। कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय का सिलेबस यहीं से लिया गया है। 

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मैं कभी भारत में शिक्षा विषय पर अगर किताब लिखने बैठा, तो इस स्कूल का नाम मेरी सूची में सबसे ऊपर रहेगा। 

पर आज मैं आपको चंद तस्वीरें दिखला कर अपनी बात यहीं रोक दूँगा। 

यहाँ गिनती और पहाड़ा सिखाने का अपना तरीका है। मैंने इससे अधिक व्यावहारिक गणित की पढ़ाई कहीं नहीं देखी। बात सिर्फ गणित की नहीं, यहाँ संगीत की पढ़ाई भी अलग अंदाज में होती है। और तो और यहाँ अखब़ार निकलाना तक पढ़ाई में शामिल है। आप देखिए एक तस्वीर, ‘मेरा अखबार’। उसे देख कर तो मेरे कदम रुक ही गये थे। मैं न जाने कितने स्कूलों में गया हूँ, पर यहाँ तो प्राइमरी स्कूल में ही बच्चों को अखबार की पूरी सरंचना की पढ़ाई करायी जा रही है। उन्हें बताया जा रहा है कि अखबार क्या होता है, खबरों का चयन कैसे होता है, इसकी छपाई कैसे होती है, इसकी अहमियत क्या होती है। 

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आप कभी हरदोई आएँ तो इस आश्रम में आना मत भूलिएगा। सचमुच यहाँ सिकंदरपुर गाँव में प्यार के हजार दीप आपका इंतजार कर रहे हैं। 

हर रिपोर्टर अपनी रिपोर्टिंग में शब्दों की सीमा से बंधा होता है, इसलिए मुझे रुकना पड़ रहा है।

मैं तो रुक रहा हूँ, पर आपकी आँखों की चमक इस वर्चुअल संसार में मुझे सिर्फ आपके लाइक बटन से ही पता चलेगी। संपादक तो मेरी रिपोर्ट पढ़ते रहते थे, मैं लाइक बटन गिनता रहता था। मैं जानता हूँ यहाँ भी मुझे मेरी रिपोर्टिंग पर आपकी आँखों की चमक रूपी लाइक खूब दिखेगी।

और हाँ, तीन साल के बाद जब आप यहाँ आएँ, तो उस आम के पेड़ से तोड़ कर मीठे-मीठे आम खाना मत भूलिएगा, जिसे ‪#‎ssfbFamily‬ की ओर से आपके लिए मैंने लगाया है।

(देश मंथन 19 मार्च 2016)

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