विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
चंबल घाटी में मुरैना शहर से 25 किलोमीटर आगे छोटे से कस्बे में स्थित महात्मा गाँधी सेवा आश्रम जौरा वह जगह है जो देश भर के हजारों लाखों युवाओं को प्रेरणा देती है। इस आश्रम की स्थापना 1970 में हुई। दरअसल महान गाँधीवादी सुब्बराव महात्मा गाँधी के जन्म शताब्दी वर्ष पर चलायी गयी प्रदर्शनी ट्रेन के प्रभारी थे।
इस ट्रेन के संचालन के दौरान देश भर से जो चंदे की राशि आयी उसे सरकार ने सुब्बराव जी को समर्पित कर दिया। सुब्बराव जी चाहते थे कि यह राशि देश के निर्माण में लगे। तब चंबल घाटी देश का सबसे अशांत क्षेत्र था। सुब्बराव इस क्षेत्र में 1954 से लगातार आ रहे थे। यहाँ उनकी ओर से शिविर और गतिविधियाँ चलायी जा रही थीं। तब तय हुआ कि इसी क्षेत्र में गाँधी जी के नाम पर आश्रम खोला जाए। इस तरह महात्मा गाँधी सेवा आश्रम की नींव पड़ी। इसी आश्रम में 1972 में सैकड़ों बागियों ने हथियार डाले।
साल 1970 में ही देश भर के नौजवानों को देश हित में रचनात्मक कार्यक्रमों के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय युवा योजना की स्थापना की गयी। जौरा रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर दूर कस्बे के बाहर हास्पीटल रोड पर जमीन के एक टुकड़े पर आश्रम की नींव रखी गयी थी। अब यह आश्रम शहर के विस्तार के बाद शहर की जद में आ गया है। आप जौरा बस स्टैंड से उतरने के बाद किसी से भी गाँधी आश्रम के बारे में पूछेंगे तो वह पता बता देगा।
इस आश्रम में सुब्बराव ने जी लंबा वक्त गुजारा। चंबल में जब 1972 में बड़े-बड़े डाकूओं का आत्मसमर्पण हो गया तब उनके परिवारों के पुनर्वास का सवाल खड़ा हुआ। इस मामले में आश्रम ने बड़ी भूमिका निभायी। यहाँ पर डाकू परिवार के आश्रितों और क्षेत्र के दूसरे बेरोजगारों के लिए कई तरह के स्वरोजगार कार्यक्रम शुरू किए गये। आश्रम आज की तारीख में खादी का बड़ा केंद्र है। आश्रम के द्वारा निर्माण की गयी दरियों की दूर दूर तक माँग रही है।
इस आश्रम में महान गाँधीवादी कार्यकर्ता पीवी राजगोपाल ने लंबा वक्त गुजारा। श्री राजगोपाल आजकल एकता परिषद नामक संगठन से आदिवासियों और भूमिहीनों के बीच अलख जगा रहे हैं। पीवी राजगोपाल के बाद अब लंबे समय से डाक्टर रण सिंह परमार इस आश्रम के सचिव हैं। डाक्टर परमार ने पढ़ाई विज्ञान में पीएचडी तक की। पर वे सुब्बराव के सानिध्य में आकर समाज सेवा से जुड़ गये। आजकल आश्रम के खादी उत्पादों के तीन बिक्री केंद्र एक जौरा में, दूसरे मुरैना और ग्वालियर में चलाये जा रहे हैं। आश्रम ने हाल में क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन आरंभ किया है। इससे बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार मिला है। आश्रम के शहद का ब्रांड नाम ही चंबल है। श्री प्रफुल्ल श्रीवास्तव शहद परियोजना को आगे बढ़ा रहे हैं। आश्रम आजकल वर्मी कल्चर और कंपोस्ट खाद बनाने का भी प्रशिक्षण दे रहा है। इसके अलावा आश्रम सालों भर युवाओं के लिए कई तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाता है।
कई गाँधीवादी कार्यकर्ता निष्ठा भाव से आश्रम की गतिविधियों को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। 1992 में मैं पहली बार इस आश्रम में पहुँचा था तब मंतराम निषाद यहाँ हुआ करते थे। आजकल इस आश्रम में श्री लक्ष्मीनारायण और श्री प्रफुल्ल श्रीवास्तव से आपकी मुलाकात हो सकती है।
(देश मंथन, 24 अक्तूबर 2015)