संग-संग खिलखिलाती सात बहनें – सेवेन सिस्टर फाल्स

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

चेरापूंजी में हमारा आखिरी पड़ाव है सेवेन सिस्टर फाल्स। जैसा की नाम से ही लगता है कि यहां सात झरने होंगे। हमारे यहां पहुंचने तक शाम के 5 बज गए हैं। जैसा कि आपको पहले भी बताया है कि चेरापूंजी में मौसम तेजी से बदलता है।

अभी धूप, अभी बादल, अभी बारिश। तो यहां सड़कों पर बादलों ने अपना डेरा डाल दिया है। और हमें दूर का नजारा दिखाई देना बिल्कुल बंद हो गया है।

मावसमाई गुफाओं में हमारी मुलाकात गुवाहाटी से आए एक प्रोफेसनल फोटोग्राफर से हुई, वे खास तौर पर सेवेन सिस्टर फाल्स में तस्वीरें उतारने के लिए अपना हाईटेक कैमरा लेकर आए थे। पर खराब मौसम के कारण ऐसा नहीं कर सके। खराब मौसम क्यों कहें, बादलों की मौजूदगी तो चेरापूंजी के आसमान की समान्य घटना है। पर आपके 10 फीट आगे बादल हों तो आगे कुछ नहीं दिखाई देता। जाहिर है हमें भी सेवेन सिस्टर फाल्स में कोई झरना बादलों के कारण नजर नहीं आया। सुरम्य घाटियों को बादलों ने ढक लिया था। लिहाजा सात बहनों ने मानो घूंघट काढ़ लिया था। जाओ मैं तुम्हारे मुंह नहीं लगती।

टैक्सी वाले भाई वांकी बताते हैं कि एक दिन पहले यानी 12  अक्तूबर को जिस टूरिस्ट को लेकर वे चेरापूंजी आए थे वह तो सारा दिन टैक्सी से बाहर निकल ही नहीं पाया। क्योंकि दिन भर बारिश होती रही। सिर्फ रामकृष्ण आश्रम में ही वह बाहर निकल पाया। हमारी किस्मत अच्छी थी कि आज सारे विंदुओं का नजारा कर पा रहे हैं।

सेवेन सिस्टर फाल्स नहीं दिखाई दिया पर हमें यहां पर बना सेवेन सिस्टर फाल्स गेस्ट हाउस जरूर दिखाई दे रहा है। तो यादगारी के लिए कुछ तस्वीरें हो जाएं।   

सेवेन सिस्टर फाल्स का मूल नाम नोहसिंगथियांग फाल्स है। मावसमाई गांव से इसकी दूरी तकरीबन एक किलोमीटर है। यहां पानी 315 मीटर (1035 फीट) की ऊंचाई से गिरता है और झरनों की औसत चौड़ाई 70 मीटर तक है। एक हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई से पानी गिरने के कारण यह देश के सबसे लंबे झरनों में गिना जाता है। ऊंचाई के लिहाज से यह देश का चौथा सबसे ऊंचा झरना है। अगर आप ऐसे समय इस वाटर फाल्स देखने पहुंचे हैं जब खिली खिली धूप हो तो आपको और भी सुंदर नजारे देखने को मिल सकते हैं। बारिश के  दिनों में आप पहुंचे तो आपको सात धाराओं में झरना कल कल झरता हुआ आपको दिखाई दे सकता है। कई बार तो यहां इंद्रधनुष भी बन जाता है तब सैलानियां इस नजारे को देखकर नाच उठते हैं।

चेरापूंजी के सारे नजारे देख लेने के बाद शाम ढलने को आ गई है और अब हमारे शिलांग वापस लौटने का समय हो चुका है। 

दिन भर कुदरत के नजारों का लुत्फ उठाते हुए हमें खाने का तो याद ही नहीं रहा। हम सुबह होटल से नास्ता करके ही चले थे। अब तय किया गया कि शिलांग चल कर ही पेट पूजा करेंगे। वापसी का वही रास्ता था जहां से हम नजारों का आनंद उठाते गए थे…पर शिलांग शहर में प्रवेश करने के साथ भारी ट्रैफिक जाम का सामाना करना पड़ा। अब हमने पुलिस बाजार जाकर खाने का इरादा छोड़ दिया। वांकी भाई ने हमें होटल नाइट इन में छोड़ दिया। रात का खाना हमने होटल में ही आर्डर किया। शिलांग की सर्द रात को हम महसूस कर रहे थे। दिनभर की थकान थी और अब ब्लैंकेट में घुस जाने की बारी थी।  

(देश मंथन,  25 मार्च 2017)

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