जैसलमेर की शान – सोनार किला

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

मशहूर बांग्ला फिल्मकार सत्यजीत रे ने एक फिल्म बनायी थी सोनार किला। 1974 में रीलिज यह फिल्म बंगाली मानुष के बीच खूब लोकप्रिय हुई। यह 1971 के एक उपन्यास पर बनी फिल्म थी।

फिल्म पुनर्जन्म की कहानी पर आधारित थी। ये सब बातें क्यों बता रहा हूँ भला। दरअसल इस बांग्ला फिल्म की शूटिंग जैसलमेर के प्रसिद्ध किले में हुई थी। जैसलमेर आने वाले सैलानियों के लिए बड़ा आकर्षण है जैसलमेर का सोनारकिला। सोनार किला मतलब सोने का किला। यह विश्व विरासत के स्थलों में शुमार है साथ ही राजस्थान के शानदार और जीवंत किलों में से एक है।

जैसलमेर का यह किला शहर की शान है। यह शहर के केन्द्र में स्थित है। इसे ‘सोनार किला’ या ‘स्वर्ण किले’ के रूप में इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि यह पीले बलुआ पत्थर से बना है। यह किला सूर्यास्त के समय अगर देखें तो सोने की तरह दमकता है। इस किले का निर्माण 1156 ई में भाटी शासक जैसल द्वारा कराया गया। किला कुल सात साल में बनकर तैयार हुआ था। त्रिकुरा पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित यह किला शहर के कई हिस्सों स दिखाई देता है। किले के परिसर में कई खूबसूरत हवेलियाँ या मकान, मंदिर और सैनिकों तथा व्यापारियों के आवासीय परिसर भी हैं।

सोनार किला राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली का आदर्श उदाहरण है। सोनार किला 250 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यह 30 फीट की ऊंची दीवार से घिरा हुआ है। यह कुल 99 बुर्जों वाला किला है। किले की दिवारें 2.5 मीटर मोटी और 3.5 मीटर ऊंची हैं। पर किले के अंदर स्थानीय लोगों को निवास भी है। 1722 के बाद राजा अखे सिंह के शासन काल में लोग आकर किले में बसने लगे थे। शहर की एक चौथाई आबादी किले के अंदर रहती है। मजे की बात कि इसमें राजपरिवार का कोई नहीं रहता बल्कि पुष्करणा ब्राह्मण और जैन समाज के लोग रहते हैं। 

किला के परिसर में कई कुएं भी हैं जो यहाँ के निवासियों के लिए जल का स्रोत हैं। किले के अंदर आप दुकानें और बाजार देख सकते हैं। स्थानीय निवासी बाइक से आते जाते रहते हैं, इसलिए किले में हमेशा भीड़भाड़ रहती है।

इस किले में सूरज पोल और गणेश पोल, अखाई पोल, हवा पोल जैसे द्वार हैं। राजस्थानी में पोल मतलब द्वार। सभी द्वारों में अखाई पोल या प्रथम द्वार अपनी शानदार स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध है। इस प्रवेश द्वार को वर्ष 1156 में बनाया गया था और शाही परिवारों और विशेष आगंतुकों द्वारा यही प्रवेश द्वार उपयोग किया जाता था। किले की परिधि पांच किलोमीटर में है।

किले का दर्शनीय हिस्से में जाने के लिए मार्ग संकेतक बने हुए हैं। इसे बिना गाइड के भी घूमा जा सकता है। पर वहां गाइड भी उपलब्ध रहते हैं। वे किले के विभिन्न कक्ष को दिखाते हुए भाटी राजाओं की बहादुरी की दास्तां सुनाते हैं। किले की अंदर से बनावट अनगढ़ है। ज्यादातर कमरों में प्रकाश आने का बेहतर इंतजाम नहीं दिखाई देता। सीढ़ियां संकरी हैं। किले के अंदर की गैलरी में भाटी राजाओं की वंशावली उनकी तस्वीरें आदि देखी जा सकती हैं। राजतंत्र खत्म हो गया पर यहां राजशाही औपचारिक तौर पर जारी है। जैसलमेर के वर्तमान राजा महारावल बृजराज सिंह हैं जिनका राज्याभिषेक 13 मार्च 1982 को हुआ था। किले के कई कमरों की छत के निर्माण में लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। भाटी राजाओं में एक राजा हुए महाराजा शालिवाहन सिंह (1890-1914), उनके बारे में कहा जाता है कि वे साढ़े सात फीट लंबे थे।

एक बार फिर बात फिल्म सोनारकिला की। फिल्म का ज्यादातर हिस्सा कोलकाता से जैसलमेर की यात्रा का है। फिल्म का क्लाइमेक्स जैसलमेर के इसी किले में शूट किया गया है। यही कारण है कि हर साल बड़ी संख्या में बंगाली सैलानी जैसलमेर का सोनारकिला देखने आते हैं।

प्रवेश टिकट 

किले में प्रवेश के लिए 100 रुपये का टिकट है। किला दर्शकों के लिए सुबह 9 बजे खुल जाता है और सूर्यास्त तक खुला रहता है। बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी रोज इस किले को देखने आते हैं। किले के मुख्य द्वार से प्रवेश के बाद आप देखेंगे कि दोनों तरफ राजस्थानी कला शिल्प की दुकानें सजी हुई हैं। इन दुकानों के साथ साथ राजस्थानी कलाकार लोक संगीत की तान छेड़ते भी नजर आ जाते हैं।

(देश मंथन,  28 अप्रैल 2017)

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