संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आदमी चाहे तो किसी एक कण से भी जिंदगी में बहुत कुछ सीख सकता है।
मैंने बचपन में सुनी और पढ़ी तमाम कहानियों में से हाथी और मछली की कहानी को जीवन के सार-तत्व की तरह लिया। हालाँकि वहाँ तक पहुँचने के लिए मुझे राजा यदु और अवधूत की मुलाकात की कहानी भी माँ ने ही सुनायी थी।
माँ ने ही बताया था कि राजा यदु के मन में साधू अवधूत को देख कर ये सवाल उठा था कि इस शोक भरे संसार में भी कोई इतना प्रसन्न और निष्काम भाव से विचरण कर कैसे सकता है। माँ कहती थी कि हमारी पुरानी कहानियाँ जीवन की पाठशाला हैं। कहानियाँ सिर्फ मनोरंजन नहीं करतीं, संदेश भी देती हैं। आज मैं ज्यादा समय खर्च किए बिना उन दो गुरुओं की चर्चा करना चाहता हूँ, जिनसे सभी को कुछ न कुछ सीखने को मिलता है।
हाथी और मछली
अवधूत ने भी इन दोनों को अपना गुरु माना था। अवधूत के 24 गुरु थे। पृथ्वी, जल, आकाश, वायु आदि के बीच हाथी और मछली भी। अवधूत ने यदु को बताया था कि गाँव के लोग मिट्टी की हथिनी बना कर बीच जंगल में गड्ढा कर खड़ा कर देते। हाथी उस हथिनी के एक स्पर्श के लिए जब वहाँ पहुँचता तो गड्ढे में गिर जाता। इस तरह आदमी अपने से बड़े प्राणी को अपनी गिरफ्त में लेकर उसे अपनी मर्जी से नचाता फिरता।
अवधूत ने इस कहानी को सुना कर यदु की ओर देखा और कहा कि राजन, आप यही जानना चाहते हैं न कि मैं इस शोक रूपी संसार में भी इतना अविरल और निष्काम कैसे घूमता हूँ।
अवधूत ने यदु को समझाया कि जो लोग हाथी की तरह स्पर्श सुख को ही जीवन का आधार मानते हैं, वो इसी तरह गड्ढे में गिर कर फंस जाते हैं।
और मछली?
मछली तो बेचारी बहुत भोली होती है। वो मछुआरे के कांटे में फंसे चारे और उसमें छिपी चाल में फर्क नहीं कर पाती। वो ये तक समझने की जहमत नहीं उठा पाती कि इतनी आसानी से उसके लिए भोजन का इंतजाम क्यों कर हुआ है। हर रोज अपने ही परिजनों को उसी किनारे से लुप्त होते देख कर भी उसके पास ये सोचने की फुरसत नहीं कि वो चले कहाँ गये?
मछुआरा फिर आता है, चारा फेंकता है और चटोरी मछली उसमें फंस जाती है। उसे अपनी जिह्वा पर नियंत्रण ही नहीं।
मछली को अगर आदमी गुरु मान ले और अपनी चाहतों पर नियंत्रण रखना सीख ले तो वो जीवन रूपी झंझावातों से खुद को बचा सकता है।
आज दोनों कहानियों को जानबूझ कर विस्तार नहीं दे रहा।
आज दोनों कहानियों को इस उम्मीद में यहीं छोड़ कर आगे बढ़ रहा हूँ कि आप इसका सार निकालने की कोशिश करेंगे। आप मुझे समझाने की कोशिश करेंगे कि क्या सचमुच हम हाथी और मछली को यूँ फंसते देख कर भी खुद को फंसने से रोकने की कोशिश करते हैं?
माँ कहती थी कि ये पौराणिक कहानियाँ जीवन की पाठशाला होती हैं।
क्या सचमुच मैंने जीवन की पाठशाला से कुछ सीखा है?
मैं आज आत्ममंथन करुंगा।
सिर्फ आत्ममंथन।
(देश मंथन, 03 अप्रैल 2015)