संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक छोटा बच्चा अपनी आइसक्रीम पीछे छिपा कर एक बच्ची से यह कह रहा था कि देखो आसमान में कितने सुंदर पक्षी उड़ रहे हैं। लड़की जब आसमान की ओर देखती है तो बच्चा उसकी आइसक्रीम चाट रहा होता है और मन में सोचता है कि वह कितना स्मार्ट है जो अपनी आइसक्रीम छुपा कर दूसरे की आइसक्रीम का स्वाद ले पा रहा है।
लेकिन जिस पल लड़का उस लड़की की आइसक्रीम चाट रहा होता है, उसी पल लड़के की आइसक्रीम पीछे से एक कुत्ता चाट रहा होता है! यह एक कार्टून था, जिसे मैंने बहुत बचपन में देखा था। बचपन में भी उसे देख कर मैं बहुत देर तक हँसता रहा था कि देखो, कुदरत का न्याय कैसा होता है!
यही है ज़िंदगी का हिसाब। जिंदगी हर चीज का हिसाब अपने तरीके से पूरा करती है। कुछ लोग यह बात समझते हैं, और कुछ लोग नहीं समझते। जो लोग यह बात समझते हैं, वे कहते हैं बुरे काम का बुरा नतीजा। और जो नहीं समझते, वे जिस पल सामने वाले के हिस्से को मारते हैं, उसी पल कोई पीछे से उनके हिस्से को मार रहा होता है।
आदमी अगर अपने हिस्से से खुश होने लगे, अपनी चीजों का स्वाद लेने लगे और दूसरों की चीजों पर अपनी निगाह डालने से खुद को रोकने लगे तो उसकी जिंदगी कई गुना आसान हो जायेगी। यह बहुत मुश्किल अभ्यास नहीं है, लेकिन जिसने भी इसे आत्मसात कर लिया उसकी खुशी दोगुनी हो जाती है। आपकी कमीज से दूसरे की कमीज ज्यादा सफेद कैसे, यह तो जानने वाली विद्या हो सकती है, लेकिन आपकी कमीज से दूसरे की कमीज ज्यादा सफेद क्यों की सोच आपको दुखी कर सकती है।
सुनने में यह बात भले छोटी लगे, लेकिन हकीकत में यह बहुत बड़ी बात है। दूसरों की खुशी से दुखी होने का फलसफा आपको बीमार, बहुत बीमार कर सकता है। जो लोग अपनी खुशियों को नहीं जी पाते, वे धीरे-धीरे खुद को खत्म करने लगते हैं। उनकी खुशियाँ पीछे छिपायी आइसक्रीम की तरह कुत्ता पूरी तरह चाट लेता है तब पता चलता है कि ओह! यह क्या किया मैंने, यह क्या हुआ मेरे साथ?
आप सोच रहे होंगे कि यह मैं कौन-सी ज्ञान की बात लेकर आ गया? दरअसल किसी एक परिजन ने बहुत उदास होकर मैसेज किया कि उनके जीवन में दुख ही दुख है, वे समझ नहीं पा रहे कि जीवन की डोर को कहाँ से पकड़ें? उन्हें लगता है कि उनके सारे साथी बहुत आगे निकल गये और वे कुछ नहीं कर पाये। वे खुद को कोस रहे हैं।
मुझे किसी का कहा याद आने लगा कि कोई अगर हर रोज किसी पेड़ को भी कोसने लगे कि यह फल नहीं दे रहा, यह किसी काम का पेड़ नहीं तो पेड़ धीरे-धीरे सूख जाता है, आदमी तो आदमी ही है। खुद को कोसना छोड़ कर कुछ करने की कोशिश करनी चाहिए। दोस्तों की आइसक्रीम को छोड़ कर अपने हिस्से की आइसक्रीम चाटनी चाहिए। जिंदगी रूपी आइसक्रीम सबके पास होती है। जो इसका स्वाद लेना जानते हैं, वे इसका स्वाद लेते हैं। जिनकी निगाह दूसरों की आइसक्रीम पर होती है, वे भले उसे आसमान में चिड़िया दिखा कर उसे मूर्ख बना लें, लेकिन हकीकत में खुद मूर्ख बन जाते हैं।
तो उठिए, अपनी आइसक्रीम ढूँढ़िए और अपने जीवन के पेड़ को कोसना बंद कीजिए। कामना कीजिए कि आपके वृक्ष में फल आये, बजाय इसके कि दूसरों के फल देख कर खुद को कोसें। आपको अपनी कमीज गंदी लग रही हो तो सामने वाले से उसकी कमीज की सफाई का राज पूछिए, न कि उसकी कमीज की सफेदी को देख कर तकलीफ मनायें।
(देश मंथन, 20 सितंबर 2014)