आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मार्केटिंग-प्रधान युग में हर ज्ञान को आखिर को सेल और मुनाफे के तराजू पर ही तुलना है। कितना बेच लिया और कितना कमा लिया, हर तरह के ज्ञान के शीर्ष पर ये ही दो सवाल हैं। जिसकी सेल संभव नहीं, उसका खेल खत्म मान लिया जाता है। जैसा कि हमारे वक्त के बड़े कामेडियन- स्कालर कपिल शर्मा के कहे का आशय है-बिकता है सब कुछ, बेचनेवाला चाहिए।
किसी दिन न्यूक्लियर बम मुनाफे के लिए बिक्री के लिए ना मिलने लग जायें। फिर एक के साथ एक फ्री की तर्ज पर हर दाऊद और बगदादी दो, दो न्यूक्लियर बम तो कम से कम रखेगा।
पुरानी महाभारत कथा में युधिष्ठिर के ज्ञान की परीक्षा एक यक्ष ने ली थी। अब तो सारा ज्ञान मार्केटिंग में ही निहित है।
अब यक्ष-युधिष्ठिर के बीच सवाल-जवाब कुछ यूँ होते-
सवाल -इस पृथ्वी का उद्देश्य क्या है। बच्चे क्यों जन्म लेते हैं।
युधिष्ठिर-ताकि वो बेबी सोप्स, बेबी पाऊडर, बेबी-डाइपर की कंपनियों के उत्पादों के टारगेट बनकर इन तमाम कंपनियों को लाभ पहुँचा सकें।
दूसरा सवाल -सृष्टि-चक्र में बच्चे जवान क्यों होते हैं।
युधिष्ठिर -ताकि वे वैलंटाइन-डे कार्ड खरीद सकें, तमाम कंपनियों के मुनाफे बढ़ा सकें। ताकि वह बर्गर और कोला कंपनियों को वैलंटाइन-पैकेज खरीद सकें।
तीसरा सवाल था-इंसान को मृत्यु का डर क्यों लगता है।
युधिष्ठिर-ताकि तमाम बीमा कंपनियाँ अपनी इंश्योरेंस पालिसी बेच सकें।
चौथा सवाल-इंसान बूढ़ा क्यों होता है।
युधिष्ठिर- ताकि तमाम मुचुअल फंड और बीमा कंपनियाँ अपने पेंशन प्लान बेच सकें। ताकि कंपनियाँ बुजुर्गों को सीनियर सिटीजन-डाइपर बेच सकें।
पाँचवा सवाल -इंसान पुनर्जन्म क्यों लेता है।
युधिष्ठिर- मोबाइल कंपनियाँ इतनी तरह के हैंड-सेट बना रही हैं कि बंदा एक ही जन्म इन सारे हैंड-सैटों का उपभोग नहीं कर सकता। हर बड़ी मोबाइल कंपनी हर छह महीने में एक नया मोबाइल लाँच कर देती है। एक जन्म में बंदा इन सारे मोबाइल हैंड-सैटों का उपभोग ना कर सकता। इसके लिए उसे कई जन्म लेने की आवश्यकता होती है, इसलिए पुनर्जन्म की जरूरत होती है।
अभी मार्केटिंग विरोधी एक प्रोफेसर मेरे पास आये हैं, तमाम तरह की मार्केटिंग-योजनाओं का सख्त विरोध करती हुई किताब लिखी है।
उनकी चिंता का तात्कालिक विषय है-इस किताब की सही-सैट मार्केटिंग कैसे की जाये।
(देश मंथन 12 अगस्त 2016)