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राजीव थे भारत के सबसे सांप्रदायिक प्रधानमंत्री!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मानसिक और वैचारिक तौर पर दिवालिया हो चुके जिन लोगों को 1984 के दंगों में 3 दिन के भीतर 3,000 लोगों का मार दिया जाना भीड़ के उन्माद की सामान्य घटना नजर आती है, उन्हीं लोगों ने, गुजरात दंगे तो छोड़िए, उन्मादी भीड़ द्वारा दादरी में सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या को देश में असहिष्णुता का महा-विस्फोट करार दिया था।
करोड़ टके का सवाल : कंगारूओं से धोनी एंड कंपनी पार पा सकेगी?
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
बताने की जरूरत नहीं कि रविवार को मेजबान भारत और आस्ट्रेलिया के बीच मोहाली में होने वाला ग्रुप बी का अंतिम लीग मैच, 'जो जीते सो मीर' यानी टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज से दो-दो हाथ करने के लिए टिकट पाने का होगा। एक कठोर सच यह भी है कि धोनी की सेना के लिए मुकाबला किसी तेजाबी परीक्षण से कम नहीं।
तुम्हारी गलती नहीं अफरीदी, विष के पेड़ में आम नहीं फलते
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
शाहिद अफरीदी एक बार फिर विवादों में घिर गये हैं। पहले तो उन्होनें टी-20 विश्वकप में भाग लेने के लिए भारतीय धरती पर कदम रखते ही यह बयान दे कर कि उनको तो अपने देश से भी ज्यादा प्यार भारत में मिलता है, पाकिस्तानियों के कोप भजन बने और फिर न्यूजीलैंड के साथ 22 मार्च को हुए मैच के पहले यह बयान दे कर कि उनको कोलकाता में काफी समर्थन मिला था और मोहाली में काफी कश्मीरी हमारे समर्थन में यहाँ पहुँचे हैं, अपनी आवाम के गुस्से को कम करने की कोशिश की। लेकिन इससे वो भारतीयों के निशाने पर फिर आ गये।
शवयात्रा में क्रिकेट
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
मैं ऊपर वाले प्रार्थना करता हूँ, कि जीते जी वह चाहे जैसा सलूक करे मेरे साथ। पर मेरी मौत उस दिन ना शेड्यूल करे, जिस दिन भारत और पाकिस्तान का वन डे क्रिकेट मैच हो।
जय भारत। जय पाकिस्तान। जय बांग्लादेश।
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
जब आप "भारत की बर्बादी के नारे" लगाएँ और "पाकिस्तान जिन्दाबाद" बोलें, तब यह देशद्रोह है, लेकिन अगर आप "भारत जिन्दाबाद" और "पाकिस्तान जिन्दाबाद" दोनों साथ-साथ बोलें और दोनों देशों की तरक्की की कामना करें, तो यह इस उप-महाद्वीप में शांति और सौहार्द्र की हमारी आकांक्षा है।
हम-दर्दों को दूर भगाओ, गम-दर्दों से राहत पाओ।
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
भारत जैसे जटिल देश की राजनीति भी बेहद शातिराना तरीके से खेली जाती है। इस ग्लोबल देश में व्यूह रचना¢एँ अब इस तरह से होने लगी हैं कि बिहार चुनाव को प्रभावित करना हो, तो दादरी में एक घटना करा दो और उसे राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दो। एक आदमी बलि का बकरा बनेगा, तो हजारों-लाखों नेताओं-कार्यकर्ताओं-पूंजीपतियों-ठेकेदारों की देवियाँ और अल्लाह खुश हो जाएंगे। एक अखलाक को बलि का बकरा बनाने से आपको मालूम ही है कि कितनों की देवियाँ और अल्लाह उनपर मेहरबान हो गये!
हेल्थ बना व्यापार
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिछले दिनों मैं सिंगापुर गया था। वहाँ मुझे एक कांफ्रेंस में शामिल होने का मौका मिला, जिसमें भारत के तमाम बिजनेसमैन आये थे।
व्यापारियों की उस बैठक में मुझे कुछ बोलना नहीं था, सिर्फ सुनना था।
जाति रे जाति, तू कहाँ से आयी?
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
भारत में जाति कहाँ से आयी? किसकी देन है? बहस बड़ी पुरानी है। और यह बहस भी बड़ी पुरानी है कि आर्य कहाँ से आये? इतिहास खोदिए, तो जवाब के बजाय विवाद मिलता है। सबके अपने-अपने इतिहास हैं, अपने-अपने तर्क और अपने-अपने साक्ष्य और अपने-अपने लक्ष्य! जैसा लक्ष्य, वैसा इतिहास। लेकिन अब मामला दिलचस्प होता जा रहा है। इतिहास के बजाय विज्ञान इन सवालों के जवाब ढूँढने में लगा है। और वह भी प्रामाणिक, साक्ष्य-सिद्ध, अकाट्य और वैज्ञानिक जवाब। हो सकता है कि अगले कुछ बरसों में ये सारे सवाल और विवाद खत्म हो जायें। वह दिन ज्यादा दूर नहीं।
पाकिस्तान : यह माजरा क्या है?
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
क्या पाकिस्तान बदल रहा है? पठानकोट के बाद पाकिस्तान की पहेली में यह नया सवाल जुड़ा है। लोग थोड़ा चकित हैं। कुछ-कुछ अजीब-सा लगता है। आशंकाएँ भी हैं, और कुछ-कुछ आशाएँ भी! यह हो क्या रहा है पाकिस्तान में? मसूद अजहर को पकड़ लिया, जैश पर धावा बोल दिया, सेना और सरकार एक स्वर में बोलते दिख रहे हैं, पाकिस्तान अपनी जाँच टीम भारत भेजना चाहता है, और चाहता है कि रिश्ते (Indo-Pak Relations) सुधारने की बातचीत जारी रहे। ऐसा माहौल तो इससे पहले कभी पाकिस्तान में दिखा नहीं! तो क्या वाकई पाकिस्तान में सोच बदल रही है? क्या अब तक वह आतंकवादियों के जरिये भारत से जो जंग लड़ रहा था, उसे उसने बेनतीजा मान कर बन्द करने का फैसला कर लिया है? क्या वहाँ की सेना भी उस जंग से थक चुकी है? क्या पाकिस्तान इस बार वाकई आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा या फिर वह बस दिखावा कर रहा है? क्या उस पर भरोसा करना चाहिए? टेढ़े सवाल हैं।
पाकिस्तान: एक अटका हुआ सवाल
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
पाकिस्तान एक अटका हुआ सवाल है। वह इतिहास की एक विचित्र गाँठ है। न खुलती है, न बाँधती है, न टूटती है, न जोड़ती है। रिश्तों का अजीब सफरनामा है यह! एक युद्ध, जो कहीं और कभी रुकता नहीं। एक युद्ध जो सरकारों के बीच है, और एक युद्ध जो जाने कितने रूपों में, कितने आकारों में, कितने प्रकारों में, कितने मैदानों में, कितने स्थानों में दोनों ओर के एक अरब चालीस करोड़ मनों में, दिलों में, दिमागों में सतत, निरन्तर जारी रहता है! यह युद्ध भी विचित्र है। कभी युद्ध करने के लिए युद्ध, तो कभी युद्ध के खिलाफ युद्ध! हाकी, क्रिकेट में एक-दूसरे को हारता देखने की जंग, तो जरा-सा मौका दिखते ही दिलों को जोड़ने की जंग भी!