Tag: सोनिया गाँधी
नेशनल हेराल्ड मामले का फैसला आ सकता है लोकसभा चुनाव से पहले
‘मदारी’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
फिल्म ‘मदारी’ देख ली?
नहीं देखी तो कोई बात नहीं। पर मैंने देख ली। मैं अमूनन हर फिल्म देख लेता हूँ। अब आप इसे शौक कह लीजिए या मजबूरी। फिल्म कैसी है, इस पर मैं कतई टिप्पणी नहीं करूंगा और न ही मेरा काम है फिल्मों की समीक्षा लिखना। पर फिल्म में एक सीन की चर्चा मैं आज कर रहा हूँ, सिर्फ अपनी कल की पोस्ट को आगे बढ़ाने के लिए।
क्या गुल खिलायेगी कांग्रेस की अँगड़ाई

संदीप त्रिपाठी :
उत्तर प्रदेश पूरी तरह से चुनावी मोड में आ चुका है। कांग्रेस ने हिंदी हृदय प्रदेश में अपना अस्तित्व बचाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दी है। इस क्रम में बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने रोड शो किया। यह कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की स्टाइल है। शिखर पर जाना है तो सबसे मजबूत से लड़ो। नि:संदेह उत्तर प्रदेश से अगर प्रधानमंत्री हैं और लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने इस सूबे की 80 में से 73 (भाजपा-71, अपना दल-2) सीटों पर कब्जा किया हो तो प्रधानमंत्री की सीट शक्ति की सबसे बड़ी प्रतीक तो मानी ही जायेगी।
सोनिया जी, यह न 1975 है, न 1986, इसलिए कोर्ट का सम्मान करें

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
सोनिया गाँधी सही कह रही हैं कि वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं। वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं, इसीलिए कोर्ट का भी आदर नहीं कर रही हैं। इंदिरा गाँधी ने भी 1975 में अपने निर्वाचन को अवैध करार देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को नहीं माना था और देश में इमरजेंसी लगा दी थी। उस वक्त उन्होंने विपक्ष के साथ जो किया था, राजनीतिक दुर्भावना और दुश्मनी उसे कहते हैं, न कि भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट समन कर दे तो उसे कहते हैं।
बिहार में कार्यकर्ताओँ के हाथ में बाजी

संदीप त्रिपाठी :
बिहार के विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होंगे, ऐसे संकेत हैं। अभी कोई ऐलान नहीं हुआ है लेकिन चुनाव आयोग की तैयारियाँ ऐसी ही हैं। सियासी दल तो कब से इसी संकेत के इंतजार में बैठे थे। मुख्य चुनाव आयुक्त तो अगस्त के पहले हफ्ते में चुनावी तैयारियों का जायजा लेने बिहार का दौरा करेंगे लेकिन सियासी दल इससे पहले ही चुनाव प्रचार में जुट गये हैं।
यादें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आदमी जिन्दगी का सफर तय करता है। मोटर-गाड़ियाँ सिर्फ सड़कों का सफर तय करती हैं। समय के साथ जिन्दगी के सफर में आदमी बहुत कुछ सीखता है और नया होता जाता है, जबकि सड़क के सफर में मोटर-कार घिसती हैं और पुरानी पड़ती जाती है।
रात तय करती है सुबह किसकी होगी

दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
डूबती रात के अंधेरों में जब वासना से विरक्त होकर कोई अपने लक्ष्य से भिड़ता है तो जान लीजिए उसका मन किसी बड़ी दिशा की और बढ़ चुका है।