Tag: Abhiranjan Kumar
राजीव थे भारत के सबसे सांप्रदायिक प्रधानमंत्री!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मानसिक और वैचारिक तौर पर दिवालिया हो चुके जिन लोगों को 1984 के दंगों में 3 दिन के भीतर 3,000 लोगों का मार दिया जाना भीड़ के उन्माद की सामान्य घटना नजर आती है, उन्हीं लोगों ने, गुजरात दंगे तो छोड़िए, उन्मादी भीड़ द्वारा दादरी में सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या को देश में असहिष्णुता का महा-विस्फोट करार दिया था।
फूट डालो, फ्रूट खा लो” की नीति पर चलते हैं पढ़े-लिखे लोग!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
कोई अगर "भारत माता की जय" या "वन्दे मातरम्" नहीं बोलता, तो न बोले, पर ऐसा भी न कहे कि मेरी गर्दन पर चाकू रख दोगे, तो भी नहीं बोलूँगा। न ही कोई सचमुच इस बात के लिए उसकी गर्दन पर चाकू रख दे कि बोलोगे कैसे नहीं?
जय भारत। जय पाकिस्तान। जय बांग्लादेश।
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
जब आप "भारत की बर्बादी के नारे" लगाएँ और "पाकिस्तान जिन्दाबाद" बोलें, तब यह देशद्रोह है, लेकिन अगर आप "भारत जिन्दाबाद" और "पाकिस्तान जिन्दाबाद" दोनों साथ-साथ बोलें और दोनों देशों की तरक्की की कामना करें, तो यह इस उप-महाद्वीप में शांति और सौहार्द्र की हमारी आकांक्षा है।
दुस्साहसी माँ-बाप ही बेटियों को जेएनयू भेजेंगे!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
अगले सत्र से जेएनयू में प्रवेश लेने वाली लड़कियों की संख्या में खासी गिरावट आ सकती है। पिछले एक महीने में ऐसे कई अभिभावकों से बातचीत हुई, जो अपनी बेटियों को उच्च-शिक्षा के लिए किसी अच्छी यूनिवर्सिटी में भेजना चाहते हैं, लेकिन जेएनयू का नाम आते ही वे काँपने लगते हैं।
अपनी विचारधारा के बारे में दो टूक
अभिरंजन कुमार :
मैं जब सड़क पर पैदल चलता हूँ या साइकिल चलाता हूँ, तो बाएँ चलता हूँ, ताकि आती-जाती गाड़ियों से अपनी रक्षा कर सकूँ। जब कार चलाता हूँ, तो दाएँ चलता हूँ, ताकि आते-जाते पैदल या साइकिल यात्रियों को मेरी वजह से परेशानी न हो। जहाँ कहीं दाएँ या बाएँ मोड़ हो और मुझे सीधा जाना हो, तो गाड़ी बीच की लेन पर ले आता हूँ।
हम-दर्दों को दूर भगाओ, गम-दर्दों से राहत पाओ।
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
भारत जैसे जटिल देश की राजनीति भी बेहद शातिराना तरीके से खेली जाती है। इस ग्लोबल देश में व्यूह रचना¢एँ अब इस तरह से होने लगी हैं कि बिहार चुनाव को प्रभावित करना हो, तो दादरी में एक घटना करा दो और उसे राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बना दो। एक आदमी बलि का बकरा बनेगा, तो हजारों-लाखों नेताओं-कार्यकर्ताओं-पूंजीपतियों-ठेकेदारों की देवियाँ और अल्लाह खुश हो जाएंगे। एक अखलाक को बलि का बकरा बनाने से आपको मालूम ही है कि कितनों की देवियाँ और अल्लाह उनपर मेहरबान हो गये!
बहन के साथ बिना इजाजत सेल्फी लेने वाले को आप सपोर्ट करेंगे?
अभिरंजन कुमार :
डीएम चंद्रकला ने क्या गलत कहा?
सचमुच इस देश के बुद्धि-विवेक को लकवा मार गया है। अगर हमारे काबिल दोस्त और पत्रकार भूपेंद्र चौबे सन्नी लियोनी से कुछ असहज करने वाले सवाल पूछ दें, तो हम उन्हें महिला की गरिमा के बारे में ज्ञान देने लगते हैं, लेकिन एक 18 साल का लड़का, जिसे नए कानूनों के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में किसी उम्रदराज जितनी ही सजा दी जा सकती है, अगर एक महिला डीएम के साथ बिना उनकी इजाजत सेल्फी बनाने लगे, उनके रोकने पर भी न रुके, फोटो डिलीट करने के लिए कहने पर भी डिलीट न करे और हीरोगीरी दिखाये, तो हम महिलाओं की गरिमा भूल कर उसके समर्थन में उतर आते हैं।
क्या अब कायर और पलायनवादी भी योद्धा कहे जाएँगे!
अभिरंजन कुमार :
रोहित के साथ अगर कुछ गलत हुआ, तो उसकी पड़ताल करो। गुनहगारों को सजा दो। लेकिन प्लीज उसे हीरो मत बनाओ। क्या हम अपने बच्चों और नौजवानों को यह बताना चाहते हैं कि कोई आत्महत्या करके भी हीरो बन सकता है?
सोनिया जी, यह न 1975 है, न 1986, इसलिए कोर्ट का सम्मान करें
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
सोनिया गाँधी सही कह रही हैं कि वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं। वह इंदिरा गाँधी की बहू हैं, इसीलिए कोर्ट का भी आदर नहीं कर रही हैं। इंदिरा गाँधी ने भी 1975 में अपने निर्वाचन को अवैध करार देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को नहीं माना था और देश में इमरजेंसी लगा दी थी। उस वक्त उन्होंने विपक्ष के साथ जो किया था, राजनीतिक दुर्भावना और दुश्मनी उसे कहते हैं, न कि भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट समन कर दे तो उसे कहते हैं।
आज गोडसे-भक्त कह रहे होंगे – थैंक्यू मीडिया..थैंक्यू कांग्रेस!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
आज कुछ चैनलों ने बताया कि कुछ लोग महात्मा गाँधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे का बलिदान दिवस मना रहे हैं। इन्हीं चैनलों ने यह भी बताया कि कार्यक्रम में 50 लोग भी नहीं जुटे। 125 करोड़ लोगों के देश में जिस विचार के लिए 50 लोग भी नहीं जुटे, उसे सारे चैनलों ने दिन भर अपनी प्रमुख हेडलाइंस में जगह दी।