समंदर की सैर

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‪‎संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

बहुत से लोग कभी बड़े नहीं होते। मैं भी उनमें से एक हूँ। 

जब मैं छोटा था तो माँ की छाती में सिर घुसेड़ कर सो जाता। माँ जानती थी कि अब मैं बिना कहानी सुने हटने वाला नहीं हूँ। हटने वाला क्या, माँ यह भी जानती थी कि कहानी सुनते हुए ही मैं सो जाऊँगा और सपने में उन कहानियों के पीछे उड़ता फिरूँगा। 

माँ को जब कैंसर हो गया और जब वो बहुत बीमार हो गयी, तब भी मैंने माँ की गोद नहीं छोड़ी। और जब मुझे इस बात का अहसास हो गया कि माँ अब चली जाएगी, हमेशा के लिए तो मेरा लालच और बढ़ गया। माँ की बीमारी के दिनों में मैं सिवाय स्कूल के कहीं और नहीं जाता। मेरे मन में धुकधुकी सी लगी रहती थी कि कहीं मैं घर गया और माँ तब तक चली गयी तो मेरा क्या होगा?

मैं स्कूल से घर आता, बस्ता बिस्तर पर पटकता और माँ के साथ दुबक जाता। माँ दिन भर जितनी भी तकलीफ में होती, उसकी सारी तकलीफ मेरे लिपटते ही खत्म हो जाती। वो मुझसे स्कूल की पढ़ाई के बारे में पूछती, फिर पूछती कि आज दोपहर में तुमने क्या खाया और फिर यह कहते हुए अलग हो जाती कि अभी स्कूल के कपड़े बदल लो, रात में कहानी सुनाऊँगी। 

मेरा मन नहीं करता था माँ से अलग होने का। पर कहानी सुनने के लालच में सब कर गुजरता। 

बहुत से बच्चे समय के मुताबिक बड़े हो जाते हैं, लेकिन मैं नहीं हुआ। माँ की छाती में मुझे घुसे देख घर के बाकी लोग मुझसे कहते कि तुम बड़े हो गए हो, अब माँ का आँचल छोड़ दो। जब भी कोई मुझसे यह कहता, मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगता कि हे भगवान, मुझे बड़ा मत करो। मुझे बड़ा नहीं होना। मैं माँ के बिना रह ही नहीं पाऊँगा। माँ के बिना भला कौन रह सकता है? माँ के बिना भला कौन रहा है? 

पर एक दिन माँ चली गयी। मुझे अपनी उम्र का ठीक से अंदाज नहीं है कि उस दिन मैं कितने साल का था, जब माँ का तन संसार से चला गया था, पर यह तय है कि जिस दिन माँ का शरीर गंगा नदी के किनारे जल रहा था, माँ धीरे-धीरे मेरे मन में और समाहित होती चली जा रही थी। 

उसके बाद मैंने कई बार माँ को अपने पास महसूस किया। किसी को यह बात मैंने बताई नहीं कि उसके चले जाने के बाद भी कई बार उसकी छाती में सिर घुसेड़ कर सोया हूँ। कई बार उससे मैंने फिर कहानियाँ सुनी हैं। इसीलिए मैंने आज यह कबूल किया कि कुछ लोग, जो कभी बड़े नहीं होते, मैं भी उनमें से एक हूँ। 

मैंने सौ बार यह बात आपसे साझा की है कि जब मैं फेसबुक पर लिखने आया था, तब न जाने कितने लोगों ने मुझसे कहा था कि संसार में इससे ज्यादा समय की बर्बादी नहीं हो सकती। यह बेतार का संसार सिर्फ बेकार बैठे लोगों का संसार है। कई लोगों ने मुझसे यह भी कहा था कि मुझे कुछ गंभीर काम करना चाहिए, गंभीर लेखन की ओर मुड़ना चाहिए। यहाँ तक कि मेरे फेसबुक से जुड़ने और आपसे रोज-रोज बतियाने को मेरी बेवकूफी तक बताया गया। 

पर मैं नहीं माना। 

मैं रोज एक कहानी लेकर आपके पास आता रहा। 

एक बार मैंने आपको एक छोटे से कीड़े की कहानी सुनाई थी। मैंने बताया था कि कैसे समंदर में किनारे पर एक पत्थर से चिपक कर ढेरों कीड़े रहा करते थे। एक दिन एक छोटे से कीड़े ने अपने बड़ों से पूछा कि हम पत्थर से चिपक कर क्यों रहते हैं, तो बड़े कीड़े ने कहा था कि इसे छोड़ दोगे तो समंदर की लहरों में तुम डूब जाओगे। हम यहीं पैदा होते हैं, यहीं मरते हैं। 

पर उस छोटे कीड़े ने उस पत्थर को छोड़ दिया। वो नहीं डूबा। उसने पूरे समंदर की सैर की। एकदिन तैरता हुआ वो उसी पत्थर के पास पहुँचा, जहाँ बाकी सब पत्थर से चिपक कर बैठे थे, तो उसने सुना कि कुछ कीड़े आपस में बातें कर रहे थे कि देखो, यह कीड़ा हमारी तरह है। पर पत्थर छोड़ कर घूम रहा है। 

जब छोटे कीड़े ने कहा कि मैं वही हूँ, जिसे तुमने कहा था कि डूब जाओगे, तो बाकी कीड़े चिल्लाए, नहीं तुम अलग थे। तुम जन्म से ही अलग थे। तुम मसीहा हो। 

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कोई मसीहा नहीं होता। 

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माँ कहती थी कि तुम बहुत से लोगों से रिश्ते जोड़ना। आने वाला समय एकाकी होगा। एक ऐसा वक्त आएगा, जब आदमी के पास सबकुछ होगा, बस आदमी नहीं होगा। आदमी खुद को आजाद कहेगा, पर वो होगा अकेलेपन के जेल में। इसलिए रिश्तों की कद्र करना, उनसे जुड़ना। मुझे यकीन है कि सबकी माँओं ने ऐसा कहा होगा। पर बहुत से लोग जो बड़े हो गए, उन्होंने माँ की बात नहीं मानी। मैं नहीं बड़ा हुआ, इसलिए माँ की बात मानता रहा।

आज मेरे पास 15 हजार लोगों का परिवार खड़ा है। वो 15 हजार लोग, जिनसे मैं रोज बतियाता हूँ। वो 15 हजार लोग, जिनसे मुझे मुहब्बत है, जो मुझसे मुहब्बत करते हैं। 

अब मुझसे कई लोग कहते हैं कि तुम अलग थे, तो मैं इतना ही कहता हूँ कि कोई अलग नहीं होता। बस आदमी जो चाहता है, वो पाता है। 

मैंने माँ की कहानियाँ चाही थीं, उनका प्यार चाहा था, दोनों मुझे हासिल हैं। ये आपका प्यार ही है, जो मेरी कहानियाँ अब मेरे टीवी चैनल को भी भाने लगी हैं। अब उन्हीं कहानियों को ऑडियों-वीडियो फॉर्मेट में करके रोज टीवी पर दिखाने का फैसला भी हुआ है। साथ में वो कहानियाँ आजतक वेबसाइट पर भी दिखेंगी। 

दो साल पहले मैंने पत्थर छोड़ा था, आज समंदर की सैर कर रहा हूँ। 

संजय सिन्हा की कहानियों ने अपना आकार बढ़ा लिया है। अपने चाहने वालों की गिनती बढ़ा ली है। और यह सब मुमकिन हुआ है, सिर्फ और सिर्फ आपके प्यार की वजह से। आप यूँ ही मुझसे प्यार करते रहिएगा। आप प्यार करते रहेंगे, मैं कभी बड़ा नहीं होना चाहूँगा।

(देश मंथन 01 सितंबर 2015)

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