पापड़, भुजिया, दालमोट मतलब बीकानेर

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

पापड़, भुजिया और दालमोट। मतलब बीकानेर। राजस्थान का बीकानेर शहर। बीकानेर कई बातों के लिए जाना जाता है।

आपको वो गीत तो याद ही होगा न… मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली चलके आई मैं अकेली बीकानेर से। (फिल्म राजा और रंक) पर बीकानेर सचमुच अलबेला शहर है। बीकानेर का फिल्मी कनेक्शन एक बार फिर बना जब धर्मेंद्र यहाँ से सांसद बने। हालांकि उनका सांसद के तौर पर यहाँ कार्यकाल अच्छा नहीं रहा, फिर उन्होने राजनीति से तौबा कर ली।

शाम होते होते बीकानेर पहुँचा हूँ। अगली ट्रेन रात 11.15 बजे है इसलिए पाँच घंटे का वक्त है तो थोड़ा शहर घूम लेते हैं। बीकानेर शहर में देखने के लिए जूनागढ़ पैलेस और लालगढ़ पैलेस जैसे बेहतरीन किले हैं। पास में एक करणी माता का मंदिर है। पर ये सब फिर सही। बीकानेर का रेलवे स्टेशन काफी सुव्यवस्थित है। चौड़े चौड़े प्लेटफार्म और खुला खुला स्टेशन। कुल छह प्लेटफार्म हैं यहाँ। स्टेशन का मुख्य भवन राजस्थानी शैली में बना है जो रात की रोशनी में जगमगा रहा है। बीकानेर नार्थ वेस्टर्न रेलवे का डिविजन भी है। मतलब यहाँ डीआरएम आफिस है। अक्सर डीआरएम आफिस से लगे रेलवे स्टेशन ज्यादा सजे संवरे दिखाई देते हैं। वैसे उत्तर पश्चिम रेलवे में बीकानेर डिविजन उत्कृष्ट सेवाओं के लिए पुरस्कृत भी हो चुका है। 

रेलवे स्टेशन के बाहर निकलते ही पापड़ भुजिया की दुकानें दिखाई देती हैं। सबसे सस्ता भुजिया (सेव) यहाँ 100 रुपये किलो मिल रहा है। अच्छी गुणवत्ता वाला 140 रुपये किलो तक है। बीकानेर के रसगुल्ले भी प्रसिद्ध है। बीकानेर से शुरू हुआ बीकाजी बहुत बड़ा ब्रांड बन चुका है।

दूसरा प्रमुख ब्रांड बीकानेर वाला है। पर बीकानेर में पापड़ भुजिया बनाने वाली अनगिनत इकाइयाँ हैं। यहाँ कुटीर उद्योग की तरह पापड़ , भुजिया का निर्माण होता है। यहाँ तकरीबन 25 लाख लोगों को इस क्षेत्र में रोजगार मिला हुआ है। साल 2010 में बीकानेरी भुजिया को इसके खास स्वाद के लिए ज्योग्राफिकल इंडेक्स भी मिल चुका है। कहा जाता है कि 1877 में महाराजा श्री डूंगर सिंह के कार्यकाल में बीकानेर चने के बेसन से भुजिया का निर्माण आंरभ हुआ। 

बीकानेर शहर की स्थापना राव बीका ने 1486 में की थी। राव बीका जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के बेटे थे। पर आजकल बीकानेर राजस्थान का चौथा बड़ा शहर है। शहर की आबादी सात लाख के आसपास है। ब्रिटिश काल में बीकानेर एक प्रिंसले स्टेट था। 1949 में यह भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बना।

बीकानेर का राज परिवार आज भी लालगढ़ पैलेस एक हिस्से में रहता है। हालांकि लालगढ़ पैलेस अब हेरिटेज होटल में तब्दील हो चुका है। आजादी के बाद बीकानेर राजघराने के महाराजा करणी सिंह राजनीति में सक्रिय रहे। वे 25 साल तक सांसद रहे। वैसे जाने माने कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग बीकानेर से आते हैं।   

बीकानेर रेलवे स्टेशन के पास रात के खाने के लिए विकल्प ढूंढने निकला तो लालजी का रेस्टोरेंट दिखा। हालांकि वहाँ खाने की दरें काफी ज्यादा थीं। मैं आनंद होटल एंड रेस्टोरेंट में पहुँचता हूँ। होटल की आंतरिक सज्जा शानदार है। यहाँ पर खाने की थाली 88 रुपये की है। पर थाली अत्यंत सुस्वादु रही। देखिए थाली में क्या क्या है।

थाली में है – चपाती, सलाद, पापड़, चावल, दाल, रायता, पनीर की सब्जी, सूखी सब्जी। हालांकि यहाँ पर थाली के अलावा आपके पास अलग अलग व्यंजन का भी विकल्प मौजूद है। इस रेस्टोरेंट में स्थानीय लोग बड़ी संख्या में जीमने पहुँचते हैं। डायनिंग हॉल के सामने इनकी साफ सुथरी रसोई दिखाई देती है। 

मैंने थाली का स्वाद लेने से पूर्व होटल के रिसेप्शन पर अपना मोबाइल चार्ज में लगा दिया। और अपनी सीट पर थाली का इंतजार करने लगा। आनंद रेस्टोरेंट में फ्रेशरूम का भी बेहतर इंतजाम है। स्टेशन के पास खाने के लिए बेहतरीन जगह है। यहाँ पर आप भुगतान कार्ड से भी कर सकते हैं। ये भी अच्छी बात रही। नोटबंदी के 50 दिन हो गये हैं पर बीकानेर के शहर के ज्यादातर एटीएम पैसा नहीं उगल रहे हैं। 

बीकानेर शहर में रात को खाने के बाद दूध पीने का भी चलन है। कड़ाही में उबलता गर्मागर्म दूध 20 या 25 रुपये प्रति ग्लास। बीकानेर से चलते वक्त आप रसगुल्ले (सफेद वाले) भी खरीद सकते हैं। वह यहाँ सस्ते मिलते हैं। ये रसगुल्ले रेलवे स्टेशन पर भी बिकते हुए दिखाई दिये। इसके अलावा शहर शुद्ध देसी घी के लिए भी प्रसिद्ध है।

मुझे बहुत खुशी हुई यह देखकर की स्टेशन रोड पर सुव्यवस्थित तरीके से एक पुस्तकालय और वाचनालय का संचालन किया जा रहा है। श्री जुबली नागरी भंडार बीकानेर 1908 से संचालित वाचनालय है। किताबें और पत्रिकाएं करीने से सजा कर रखी हैं।

पुस्तकालय के अंदर एक मंदिर भी है। हालांकि यहाँ पढ़ाई करने वाले बूढ़े-बुजुर्ग लोग ही ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। लोग अपनी पादुका उतार कर इस पुस्तकालय में प्रवेश करते हैं। अगली ट्रेन के इंतजार में थोड़ी देर इस पुस्तकालय में गुजारता हूँ। बीकानेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर भी पापड़ भुजिया और रसगुल्ले बिकते हुए देखता हूँ।

(देश मंथन,  18 अप्रैल 2017)

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