हम सब तोते हैं – रंजीत सिन्हा

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डॉ. मुकेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक : 

सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा के निवास पर मुलाकातियों वाले रजिस्टर में आपको मेरा नाम नहीं मिलेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने दो रजिस्टरों वाली व्यवस्था खत्म कर दी है।

(चित्र : राजेंद्र तिवारी)

अब वहाँ केवल एक ही रजिस्टर है और उसमें भी उन्हीं लोगों के विवरण दर्ज किये जाते हैं जिनके बारे में सिन्हा साहब पूरी तरह आश्वस्त हों। उन्हें मुझ पर भरोसा नहीं था, क्योंकि उन्होंने किसी भी पत्रकार पर भरोसा करना छोड़ दिया था। इसके अलावा मुलाकात से इन्कार करने या किसी बयान से मुकर जाने के लिए जरूरी था कि उसके कोई सबूत न रहें और वे प्रशांत भूषण के हाथ न लगें। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि मैंने उनका इंटरव्यू नहीं किया। इंटरव्यू पढ़ कर आपको समझ में आ ही जायेगा कि मुलाकात हुई थी और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में हुई थी।

अलबत्ता रिसेप्शन पर ही मुझे आगाह कर दिया गया था कि इंटरव्यू थोड़ी सावधानी से करें। डायरी प्रकरण से वे पहले ही हिले हुए थे, मगर सुप्रीम कोर्ट ने जब से उन्हें 2जी मामले से बाहर किया है, वे छोटी-छोटी चीजों पर आपा खो देते हैं। उन पर यह भय सवार हो गया है कि सब उन्हें बाहर करने में लगे हुए हैं। कोई केस से बाहर करना चाहता है, कोई सीबीआई से और कोई घर से। इसलिए वे हर आदमी को शक की नजर से देखते हैं और जरा-सा खटका होने पर बिफर पड़ते हैं।

मैं डरते-सहमते जब लॉन में पहुँचा तो देखा सिन्हा साहब एक कोने में ढेर सारे पिंजरों के सामने खड़े हैं और कुछ बतिया रहे हैं। पास पहुँचा तो देखा सारे पिंजरों में तोते हैं और हर एक पर पिछले सीबीआई डायरेक्टरों के नाम लिखे हैं। केवल एक पिंजरा ऐसा था जिसमें लेबल तो लगा था, लेकिन नाम की जगह खाली थी। सिन्हा साहब गाने वाले अंदाज़ में कह रहे थे… तोता हूँ मैं तोता हूँ, हरे रंग का होता हूँ… जवाब में सारे तोते उन्हीं के अंदाज में दोहराते थे… तोता हूँ मैं तोता हूँ, हरे रंग का होता हूँ।

मैंने उन्हें नमस्कार किया तो वे मुस्करा कर बोले, आइये तोता शर्मा जी…

मैंने कहा जी मेरा नाम तो… बात काटते हुए उन्होंने कहा – नाम से क्या होता है, काम पर जाइये। जैसे सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है और इस लिहाज से हम सब भी तोते हैं, उसी तरह आप भी तोते हैं। फर्क यह है कि आप सरकार के नहीं, अपने अखबार मालिक के तोते हैं। वे जो रटाते हैं, वही आप बोलते रहते हैं। कोई अडानी का तोता है, कोई अंबानी का तोता है। कोई टाटा को तोता है, कोई बिड़ला का तोता है। कोई डालमिया का तोता है, कोई श्रीनिवासन का तोता है।

मैंने प्रतिवाद किया, नहीं बिल्कुल भी ऐसा नहीं है। लेकिन उन्होंने तुरंत बात काटते हुए कहा – देखिए, मैं सीबीआई में हूँ। अच्छी तरह से जानता हूँ कि किस पत्र-पत्रिका या चैनल ने कितनी स्टोरी दबायी और कितनी किसके कहने पर उछालीं, इसलिए मुझे मत बताइए कि ऐसा है या नहीं। लेकिन बात आपकी भर नहीं है, क्योंकि हम सब तोते हैं।

जी आपके कहने का मतलब…

देखिये, काँग्रेसी दस जनपथ के तोते हैं, केंद्रीय मंत्री मोदी के तोते हैं और मोदी आरएसएस के तोते। मुलायम, नीतीश, लालू आदि के तोतों को तुम मुझसे बेहतर जानते हो, उनके बारे में बताने की जरूरत नहीं है। इसी तरह छोटा अफसर बड़े का और बड़ा अफसर मंत्रियों का तोता होता है। अगर गौर से देखो तो हमारा मुल्क तोतों का मुल्क है। इसीलिए हर जगह हमें टें टें ही सुनाई देती है। सड़कों से लेकर टीवी तक। फर्क बस इतना है कि कुछ अच्छी नस्ल के तोते हैं, कुछ सामान्य नस्ल के। कुछ सुरीले अंदाज में टें टें कर सकते हैं तो कुछ कर्कश हो जाते हैं। कुछ मोटे-ताजे और भव्य हैं, कुछ मरियल और दयनीय हैं। कुछ बड़ी गाड़ियों और हवाई जहाजों में घूमते हैं, कुछ बैलगाड़ियों, बसों और रेल गाड़ियों में।

सिन्हा का तोता-पुराण सुन कर मैं एकदम से तोता-लोक में पहुँच गया। मुझे लगा मेरा देश सोने की चिड़िया नहीं तोता था, जो युगों-युगों से टें टें ही बोल रहा है। मुझे हर शाख पर, हर पेड़ पर, हर मुंडेर पर तोते ही तोते दिखने लगे। विधानसभाओं में, संसद में, पंचायतों में, स्कूल-कॉलेजों में, सभा-सेमिनारों में, हर जगह बस तोते ही तोते।

मैं तोतालोक में और विचरण करता इसके पहले सिन्हा की मधुर वाणी ने मुझे वापस बुला लिया। वे बोले – मैंने सीबीआई के लिए एक गीत लिखा है। अब से यह उसका संगठन-गीत भी होगा। सारे दफ्तरों में इसे लिखा जायेगा और हर सीबीआई कर्मचारी इसे सुबह-शाम गायेगा।

मैंने प्रश्नवाचक नजरों से उनकी ओर देखा…

उन्होंने उस गीत का सस्वर पाठ शुरू किया –

हरा-हरा तोता, पेड़ में चढ़ कर सोता

मीठे-मीठे फल खाता, बड़े मजे से उड़ जाता।

मैंने अचकचा कर उनको देखा और एकदम से बोल पड़ा – लेकिन यह तो बच्चों का गीत है। पता नहीं कब से बच्चे इसे याद कर रहे हैं और माँ-बाप के कहने पर अंकल-आंटियों को सुना रहे हैं।

सिन्हा ने चिढ़ कर कहा – होगा… होगा। मैंने भी बचपन में इसे गाया था। लेकिन इस पर किसी का कॉपीराइट नहीं था। अब मैंने सीबीआई के नाम पर कॉपीराइट करवा लिया है। एक्चुअली क्या है कि यह सीबीआई पर बिल्कुल फिट बैठता है न। इसके हर शब्द में अर्थ छिपा हुआ है। आपको ऐसे समझ में नहीं आयेगा। एक बार आप तोते की जगह मुझे रख कर सोचिए या किसी भी सीबीआई डायरेक्टर को रख कर सोचिए, आपको समझ में आ जायेगा कि मैंने इसे क्यों चुना है। फिर उन्होंने उत्साहपूर्वक उसकी व्याख्या शुरू कर दी। इसमें हरा रंग हरियाली यानी संपन्नता का प्रतीक है। सोने का मतलब मजे लेना है। मीठे-मीठे फल के बारे में बतलाने की जरूरत नहीं है, आप खुद समझदार हैं समझ जायेंगे। और बाद में तो सब बड़े मजे से उड़ ही जाते हैं। मैं भी बस उड़ने वाला हूँ।

आधे घंटे से तोता-तोता सुनते-सुनते मुझे लगने लगा कि मैं भी हरे रंग का हो गया हूँ, मेरे भी दो पंख निकल आये हैं और एक लाल चोंच भी। मुझे यह भी लगा कि मैं यहाँ से सीधे उड़ कर संपादकजी की टेबल पर बैठूँगा और टें टें करने लगूँगा। लेकिन यह क्या? संपादक जी की कुर्सी पर भी ऐनक लगाये कोई तोता ही बैठा है? (देश मंथन, 28 नवंबर 2014) 

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