संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
ये कहानी है गीता की। ये कहानी है परी की। ये कहानी है हैवानियत की। ये कहानी है इंसानियत की।
आपने मेरी न जाने कितनी तस्वीरें हेमा मालिनी, ऐश्वर्या राय, बिपाशा बसु, सोनाक्षी सिन्हा, कैटरीना कैफ, आलिया भट्ट और ढेरों फिल्मी नायिकाओं के साथ देखी होंगी। आपने मुझे ढेरों खूबसूरत और मुस्कुराती नायिकाओं के बीच घिरे पाया होगा। पर आज यहाँ जो तस्वीर आप देख रहे हैं, वो बेहद खास है।
इस तस्वीर में जिस लड़की को आप देख रहे हैं, उसका नाम गीता है।
आइए आज आपको मैं पहले गीता की कहानी सुनाता हूँ, फिर सुनाऊँगा परी की कहानी।
गीता, शायद ये उसका नाम नहीं। दरअसल उसे अपना नाम पता ही नहीं। उसे तो यह भी नहीं पता कि वो कब और कहाँ पैदा हुई। वो कब बड़ी हुई। वो कब अपने घर से निकली। उसे कुछ भी नहीं पता। इसकी मानसिक हालत ठीक नहीं।
अपनी कहानी की नायिका गीता तक मैं कभी पहुँच ही नहीं पाता, अगर मैं हरदोई नहीं जाता। दो दिन पहले अपनी माँ Urmila Shrivastava के बुलावे पर मैं हरदोई गया। वहाँ मैं उनके सर्वोदय आश्रम गया। कभी न कभी मैं उस आश्रम की चर्चा करूँगा, पर आज मैं सिर्फ और सिर्फ गीता और परी की कहानी सुनाऊँगा। लेकिन ठहरिए।
वो सब चर्चा करेंगे। बस, जरा सा धैर्य।
मैं सर्वोदय आश्रम गया था वहाँ चल रहे स्कूलों को देखने के लिए। वहाँ पढ़ रहे बच्चों से मिलने के लिए। वहाँ पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं से मिलने के लिए। मैं बरामदे में बैठा था, अचानक अपने दोनों हाथ जोड़े हुए गीता मेरे सामने आ कर खड़ी हो गयी। मैंने बहुत गौर से उसे देखा। ये कौन है?
मेरे मन के सवाल को भाँपते हुए मेरे साथ आश्रम तक आये हरदोई के एसडीएम अशोक कुमार शुक्ला ने मुझे बताया कि ये गीता है और आपको प्रणाम कह रही है। मैंने अपने हाथ गीता की ओर जोड़ दिये।
मेरे मन में एक नहीं, हजार कहानियों ने जन्म ले लिया था।
कौन है ये? मुझसे मिलने क्यों आयी? क्या ये बोल नहीं सकती? पर इसकी आँखों में इतनी चमक है, ये कोई खास महिला है।
अशोक शुक्ला जी ने मुझे बताना शुरू किया कि ये कौन है, कोई नहीं जानता। हमने इसका नाम गीता रखा है। ये ठीक से बोल नहीं पाती, पर बातें सब समझती है। इसे आज आपके यहाँ आने की पूरी जानकारी थी। यहाँ आपके आने की चल रही तैयारियों को देख कर ये सुबह से बहुत खुश है।
पर ये है कौन?
“संजय जी, मैं भी नहीं जानता। एक दिन यह हमें हरदोई रेलवे स्टेशन पर पड़ी मिली थी। कुछ दरींदों ने इसके साथ बलात्कार कर इसे गर्भवती कर के छोड़ दिया था। जब यह हमें स्टेशन पर यूँ ही लावारिस हालत में मिली थी, तब इसे खुद भी नहीं पता था कि इसके साथ क्या हुआ था। इसके पेट में आठ महीने से अधिक का बच्चा पल रहा था। किसका बच्चा है, किसने एक लाचार लड़की के साथ ऐसी हरकत की, यह इतना भी बताने की स्थिति में नहीं थी।
हम इसे अस्पताल ले कर गये। वहाँ इसकी एक बेटी हुई। मानसिक रूप से विक्षिप्त एक महिला के माँ होने की जानकारी हमने अखबारों के जरिए लोगों तक पहुँचाई कि शायद कोई इसे पहचान ले, अपने साथ ले जाए। कुछ लोग आगे तो आए, लेकिन बच्ची को गोद लेने के लिए। बच्ची को तो आप देख ही रहे हैं, एकदम परी की तरह है।
हमारे सामने समस्या थी कि अगर बच्ची को हम किसी को दे दें, तो माँ का क्या होगा। माँ को साथ ले जाने के लिए कोई तैयार नहीं था। फिर हमने उर्मिला जी से संपर्क किया। उन्होंने कहा कि माँ और बेटी दोनों को इस आश्रम में ले आइए।
पिछले दो सालों से दोनों यहीं हैं। हमने माँ को नाम दिया गीता और बेटी को परी।
आज परी इस आश्रम में सबकी चहेती है। इसे यहाँ कई माँएँ मिल गयी हैं। ये सारा दिन इस गोद से उस गोद में उछलती फिरती है।
और गीता अपनी बेटी को बड़ी होती हुई देख रही है। इलाज के बाद इसकी भी स्थिति कुछ सुधरी है। इसे मालूम है कि संजय भइया यहाँ आ रहे हैं। उसने हमसे कई बार इशारे में कहा कि भइया को नमस्ते करुँगी।”
***
मैं गौर से गीता की ओर देख रहा था। मेरे सामने संसार की सबसे सुंदर दो आँखें चमक रही थीं। दोनों हाथ जुड़े हुए थे। बहुत धीमी और रुकी हुई आवाज में वो कहने की कोशिश कर रही थी, ‘नमस्ते’।
मैंने गीता को अपने साथ कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। गीता बैठी।
मैं संजय सिन्हा, जिसने न जाने कितनी सुंदर फिल्मी हीरोइनों के साथ तस्वीरें खिंचवाई हैं, आज पीछे खड़ा था, संसार की इन दो सबसे खूबसूरत आँखों के साथ तस्वीर खिंचवाने के लिए।
अगर लियोनार्दो द विंची होते, तो इस तस्वीर को देख कर कह उठते, यही है मोनालिसा।
***
गीता के साथ तस्वीर खिंचवाने के बाद परी भी मेरे पास आयी। अपनी एक और माँ की गोद में।
मैंने उसकी तस्वीर खींचनी चाही तो उसने मेरी ओर देखा और मचलने लगी, मानो कह रही हो, “मामा, मेरे लिए खिलौने नहीं लाए?”
***
मैं हरदोई से दिल्ली लौट आया हूँ, पर गीता और परी की कहानी भी मेरे साथ चल कर आयी हैं।
यौन शोषण की शिकार महिलाओं की तस्वीरें हम आम तौर ढक कर, छुपा कर ही अखबारों में और टीवी पर दिखलाते हैं।
पर पहली बार मुझे लग रहा है कि ढकना और छुपना तो उसे चाहिए जिसने इस दुष्कर्म को अंजाम दिया है। इन दो मासूम आँखों का क्या कसूर है, जिन्हें हम ढकने और छुपने को बाध्य करें।
मैं झुक कर सलाम करता हूँ उन लोगों को जिन्होंने गीता को एक नई जिन्दगी दी। मैं झुक कर सलाम करता हूँ उस प्रशासनिक अधिकारी को, जिन्होंने गीता को मेरी माँ तक पहुँचाया।
हर काल की कहानी में रावण है, तो राम भी हैं।
मेरा प्रणाम राम को। मेरा संदेश रावण को…देखो रावण, इस तस्वीर को गौर से देखो। अगर पहचान पाओ, तो पहचानो अपनी दरिंदगी को। तुम मर सको तो मर जाओ अपनी शर्मिंदगी के आँसुओं में डूब कर। तुम्हें मर ही जाना चाहिए।
(देश मंथन, 15 मार्च 2016)